Thursday, July 27, 2023

मिड-डे मील : करुणा-दया और हया

 ये सरकारें भी अजब-गजब की हैं। दिखावा लोककल्याण का करती हैं लेकिन भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का कोई जतन नहीं करती। लगने तो यह लगा है कि जितनी भी लोककल्याणकारी योजनाएं लाई ही इसलिए जाती हैं कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिले-जिनके जीवन स्तर को सुधारने के नाम पर यह योजनाएं चल रही हैं, वे तो लाभान्वित कम हो रहे हैं और योजनाओं को अंजाम देने वाले ज्यादा! सरकारी कर्मचारी हैं तो उनमें से अधिकतर छठे वेतन आयोग के लागू होने के बाद के वेतन के अलावा इन योजनाओं से ऊपर की कमाई जम कर करते हैं, इन योजनाओं से जुड़े व्यापारी, ठेकेदार भी पैसा पहुंचाकर निर्भय हो जाते हैं। सरकारी बाबू-रोकड़िये-अधिकारी को हिस्सा पहुंचाकर ठेकेदारों-व्यापारियों को लगने लगता है कि अब तो उन्हें कुछ भी करने की छूट है।

कल की ही खबर है। छपी आज है, टीवी के समाचारों में कल ही गई थी। सुभाषपुरा स्थित मदरसे में मिड-डे मील-पोषाहार के नाम पर अखाद्य परोसा जा रहा था-जिसको खाने से बच्चों को उबकाइयां आने लगी-यह कल ही हुआ हो ऐसा नहीं है, कई दिनों से चल रहा होगा-कल तो जब हद ही हो गई बात तब चौड़े आई। यह योजना सभी सरकारी स्कूलों में चल रही है-कहते हैं इस योजना से छात्र-छात्राओं के पेट कम पलते हैं और इसको अंजाम देने वालों की अय्याशी ज्यादा-अय्याशी इसलिए कहा कि सरकारी मुलाजिमों का पेट तो तनख्वाह से आराम से पल सकता है और ठेकेदार है तो उनको कागजों में मिलने वाली दरों से। बेईमानी फिर वे अय्याशी के लिए ही करते होंगे।

मिड-डे मील के साथ तो एक बात और है। कई जगह तो यह बनता ही नहीं-चूंकि कई स्कूलों के बच्चे तो इसे खाकर धाप चुके हैं। ऐसा मिलता ही नहीं है कि जिसे खाया जा सके, और जहां बनता है वहां आधा-पड़ता ही बनता है-शेष राशि की बंदरबांट हो जाती है-रही बात सरकार से मिलने वाले धान की तो उसे वे अनुकम्पा करके पोषाहार बनाने वालों को घर ले जाने की छूट दे देते हैं।

इस तरह की हराम की जिन्सों की-धन की तुलना लोक में बहुत ही भद्दे तरीके सेगूसे की जाती रही है। पता नहीं नई पीढ़ी इससे कितनी वाकिफ है! होना तो यह चाहिए कि अस्वच्छ तरीकों से और सड़ी-गली या घुन लगी चीजों से बनने वाले पोषाहार को इसके जिम्मेवार लोग खाकर दिखाएं-ऐसा कहने भर से ही उन्हें उबकाइयां आने लगेंगी। खैर, उन्हें यह तो कल्पना करनी ही चाहिए कि ऐसा खाना खुद उनके बच्चों को खिलाया जाए तो! लगता है हराम के पैसे की यह हवस करुणा-दया और हया सभी को लील रही है।

दीपचन्द सांखला

04 सितम्बर, 2012


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