Friday, July 21, 2023

गोचर संरक्षण : समझोता स्वागत योग्य, लेकिन प्रश्न भी

 गोचर-ओरण के संरक्षण और इस तरह की भूमि के अन्य कार्यों में उपयोग करने के विरोध में विधायक देवीसिंह भाटी और संत समाज का सात दिन से कलक्टरी पर चल रहा धरना कल राज्य सरकार के हस्तक्षेप व संभागीय आयुक्त की मध्यस्थता में हुए समझौते के बाद समाप्त हो गया है। वर्षों पहले गोचर-ओरण और जोहड़ पायतान के नाम पर जनहित के लिए दानदाताओं द्वारा दी गई भूमि के संरक्षण के मुद्दे पर लगभग सभी सहमत हैं और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए विधायक भाटी के आंदोलन के बाद हुआ समझौता स्वागत योग्य है। पर सहमति के बिन्दुओं को देखा जाए तो इसका सबसे बड़ा शिकार शरह नथानिया गोचर भूमि में से प्रस्तावित रिंग रोड ही हुआ है। समझौते के अनुसार तो रिंग रोड बनाने के लिए 2 फरवरी, 2012 को जारी राज्य सरकार का आदेश ही वापस ले लिया जाएगा। सहमति के इस बिन्दु को इस मायने में विडम्बना ही कहा जा सकता है कि इसी समझौते में यह भी प्रावधान है कि सार्वजनिक प्रयोजन के लिए गोचर, ओरण, जोहड़ पायतान की भूमि के आवंटन से पहले ग्रामसभा या नगरपालिका-निगम जैसे संबंधित निकाय की सहमति ली जाए और विवाद हो तो राज्य सरकार के स्तर पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति इस पर अंतिम फैसला करे। इस प्रावधान का उपयोग किये बिना रिंग रोड बनाने का फरवरी का आदेश ही वापस लेने की घोषणा कर दी गई। पर गंगाशहर में गोचर में ही प्रस्तावित सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के मामले में यह रास्ता निकाला गया कि इसके लिए आवंटित भूमि के बराबर भूमि गोचर के लिए आरक्षित की जाएगी। 'विनायक' पहले ऐसा ही सुझाव दे चुका है कि सार्वजनिक महत्त्व के अति आवश्यक कार्यों के लिए गोचर भूमि लेने की जरूरत हो तो इसके बराबर राजस्व भूमि अन्यत्र गोचर के लिए आवंटित कर दी जाए। अर्थात् जनहित भी प्रभावित नहीं हो और गोचर का रकबा भी यथावत बना रहे।

पट्टी पेड़ा के मामले में सहमति में रिंग रोड व ट्रीटमेंट प£ांट से अलग विकल्प पर सहमति हुई है। पट्टी पेड़ा के लिए गोचर के बजाए अन्यत्र भूमि आवंटन का समझौता हुआ है!

कुल मिलाकर गोचर-ओरण संरक्षण के लिए हुए समझौते पर किसी को आपत्ति नहीं पर बीकानेर में यातायात का दबाव कम करने के लिए अति महत्त्व के सावर्जनिक हित से जुड़ी रिंग रोड इसकी भेंट चढ़ गई। राज्य सरकार पूरी तरह समर्पण करते हुए रिंग रोड बनाने संबंधी आदेश ही वापस लेने पर सहमत हो गई और इसके विकल्पों पर विचार करना तक भी मुनासिब नहीं समझा गया।

—दीपचन्द सांखला

16 जुलाई, 2012

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