Friday, July 14, 2023

मुरलीधर व्यास– 1

 इकतालीस साल पहले आज ही के दिन दोपहर बाद अपने बड़े भाई के साथ पीबीएम अस्पताल के सड़क की तरफ के अन्तिम डब्ल्यू कॉटेज में पहुंचा तो मुरलीधर व्यास भारी वेदना में थे-बहुत धुंधली-सी यादें हैं-मात्र 10 वर्ष का ही था तब। इसी दिन की रात्रि को 11.30 बजे के लगभग प्राण त्याग दिये थे व्यासजी ने। हमारा परिवार व्यासजी का समर्थक परिवार था। शायद इसीलिए मात्र सात वर्ष की उम्र में 1967 के चुनावों में पहली बार सार्वजनिक रूप से सक्रिय हुआ था-तभी व्यासजी की चुनावी रैली के बहाने बिना परिजनों के शहर की पहली परिक्रमा की। अपने दादा की शवयात्रा के बाद व्यासजी की  शवयात्रा दूसरी थी जिसमें शामिल हुआ-अच्छी तरह याद है तब के नगरपालिका अध्यक्ष गोपाल जोशी पीताम्बर पहने भैंसाबाड़े के आगे माल्यार्पण कर शवयात्रा में शामिल हुए और चौखूंटी स्थित आचार्यों के श्मशान में दाग के समय तब की कोलायत विधायक कान्ता कथूरिया बेहोश हो गई थी। सुथारों की बड़ी गुवाड़ से निकली शवयात्रा कोटगेट, रतन बिहारी पार्क होते हुए चौखूंटी पहुँची थी। बिना किसी घोषणा के शहर का पूरा बाजार बन्द था।

यह सब लिखने का मकसद यह भर बताना है कि आजादी के बाद हुए राजनीतिज्ञों में से किसी को जननेता सचमुच कहा जा सकता है तो वह मुरलीधर व्यास ही थे। आज के महाराष्ट्र स्थित वर्धा जिले के हिंगनघाट में जैसलमेरी पुष्करणा परिवार में 4 जुलाई, 1918 को जन्मे मुरलीधर व्यास ने पांचवीं तक शिक्षा वहीं से प्राप्त की। पांचवीं से दसवीं तक पढऩे को उन्हें वर्धा आना पड़ा। वहीं छात्रावास में रह कर पढ़ाई की। सन् 1936 से 1941 के उन दिनों महात्मा गांधी भी अधिकांश समय वर्धा में रहते थे-गांधी के साथ-साथ वहां प्रवास पर रहे सभी नेताओं को देखने समझने का मौका व्यास को मिला। क्योंकि उन दिनों गांधी के आश्रम में होने वाले सभी कार्यक्रमों में उस नवभारत विद्यालय के छात्रों की सक्रिय भागीदारी रहती थी जिसमें मुरलीधर व्यास पढ़ते थे। व्यास हरफनमौला थे-कविता लिखते, नाटक लिखते-करते कुश्ती में जोर आजमाते, अन्य खेलों में भी भाग लेते। इसके अलावा तत्समय होने वाले सभी कार्यक्रमों में नेतृत्व स्तर की भागीदारी करते। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में व्यास जेल भी गये।

व्यास के दो चाचा बीकानेर में रहते थे-इसीलिए उनका यहां आना जाना था-यज्ञोपवीत भी यहीं हुआ और शादी भी। हिंगनघाट में शिक्षक के तौर पर काम करने के बाद सन् 1948 में मुरलीधर बीकानेर ही आ गये। यहां पहले पुष्करणा स्कूल में और बाद में जैन पाठशाला में अध्यापकी की। जैन पाठशाला में अध्यापकी के दौरान उनकी सार्वजनिक सक्रियता बढ़ गयी थी-तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी और वे 'हॉल टाइमर' हो गये। आजीविका का कोई निश्चित साधन नहीं रहा तो उन्होंने घर-परिवार तो जैसे-तैसे चलाया, लेकिन मुरलीधर आजीवन अपना घर नहीं बना पाये। वर्धा में जयप्रकाश नारायण आदि के सम्पर्क में आने से कांग्रेस की बजाय व्यास ने समाजवादी विचारधारा के अपने को ज्यादा नजदीक पाया बीकानेर आते ही 1948 में यहां समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक और पार्टी का प्रान्तीय अधिवेशन आयोजित हुआ। सभी समाजवादी दिग्गज इनमें शामिल हुए। व्यास की इसमें सक्रिय भागीदारी थी।

आजादी के बाद सन् 1951 में नगरपालिका के पहले चुनाव हुए-समाजवादी पार्टी और व्यास इन चुनावों में सक्रिय हुए। फिर सन् 1952 में हुए देश के पहले आम चुनाव में लोकसभा और राजस्थान विधानसभा के चुनाव साथ साथ ही हुए। मुरलीधर ने बीकानेर लोकसभा क्षेत्र और बीकानेर विधानसभा क्षेत्र, दोनों से चुनाव लड़ा। 1951 के नगरपालिका और 1952 के इन आम चुनावों में समाजवादी पार्टी की बीकानेर में यह पहली दस्तक थी। लोकसभा चुनावों में तो व्यास उल्लेखनीय उपस्थिति नहीं दर्ज करवा पाये, हालांकि विधानसभा का चुनाव भी वे नहीं जीत पाये और न ही दूसरे नम्बर पर रहे पर क्षेत्र में उन्होंने अपनी पहचान इस चुनाव से बना ली थी।

क्रमश:

दीपचन्द सांखला

30 मई, 2012

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