Tuesday, December 9, 2014

स्वच्छ राजस्थान, महापौर और पार्षद मण्डल

बीकानेर नगर निगम के नये बोर्ड ने सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। क्यों करें स्थानीय निकाय से लेकर प्रदेश और देश के शासन की कड़ी से कड़ी जनता ने जो जोड़ दी है। प्रधानमंत्री मोदी के 2 अक्टूबर को दिए स्वच्छ भारत के नारे को लोगों ने इतना हाथों-हाथ लिया कि नेताओं को कचरा साफ करने को ही नहीं मिला। इसलिए फोटो खिंचवाने की जहां जरूरत होती तब अधिकांश जगह कचरा ही नहीं होता, सो पहले कचरा बिखेरा जाता और फिर उसे उठाते हुए फोटो खिंचवाए जाते। लोक में कैबत प्रचलित है कि हलवाई का काम करने वाले के पास काम नहीं हो तो उसे लड्डू तोड़-तोड़ कर फिर बांधते रहना चाहिए, इस तरह काम खत्म ही नहीं होगा।
मोदीजी की कही को टेर देने के लिए प्रदेश सरकार ने कल से स्वच्छ राजस्थान सप्ताह की शुरुआत की है। बीकानेर में इस अभियान का आगाज भीनासर स्थित मुरली मनोहर मन्दिर के आगे से महापौर नारायण चौपड़ा ने की। एक अखबार में इस अवसर का जो फोटो छपा है उसमें महापौर अपने पार्षदों के साथ जहां झाड़ू निकाल रहे हैं वहां गन्दगी कचरा जैसा कुछ भी नहीं है। लोक में एक और कैबत है कि जीमे हुए को जिमाना आसान होता है, वैसे ही जहां गन्दगी ही हो वहां सफाई की रस्म अदायगी आसान होती है।
खैर फोटो की बात से ध्यान आया कि कल जब महापौर ने पार्षदों की बैठक बुलाई तो एक निर्दलीय पार्षद सम्भवत: अन्यत्र व्यस्त होने के चलते बैठक में नहीं पहुंच पायी इसकी सूचना उन्होंने अपने पति को दी होगी और पति महोदय चूंकि निगम कार्यालय के नजदीकी एक सरकारी दफ्तर में कार्यरत हैं, अपनी पत्नी की एवज में पहुंच गये बैठक में। बैठक में उन्होंने पूरे समय अपनी पत्नी की नुमाइन्दगी की। अब यह नहीं पता कि निगम मण्डल की व्यवस्थाओं में इसकी आधिकारिक छूट है कि नहीं। पार्षद मण्डल बैठक की व्यवस्था करने वाले अधिकारी और महापौर ने पार्षद के पति को पार्षद के प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी है तो माना जाना चाहिए कि ऐसा अधिकृत प्रावधान बना लिया गया होगा। ऐसे में महिलाओं को तैतीस की बजाय पचहत्तर प्रतिशत आरक्षण दे दिया जाय तो किस मर्द को एतराज होगा। हां छोटे-बड़े सभी दैनिकों के फोटोग्राफर पार्षद के पति की बैठक में उपस्थिति की फोटो नहीं ले पाए होंगे तभी सुबह के अखबारों में कोई फोटो नहीं लगा, या हो सकता है कोई दाबाचिंथी हो गई होगी।
महापौर शहर की जरूरतों के लिए कुछ कर पायेंगे या नहीं इस पर अभी से सन्देह करना उचित नहीं लगता। हालांकि नगर निगम का जो ढर्रा है उसमें किसी चुने प्रतिनिधि के लिए कुछ कर पाने की गुंजाइश नहीं लगती। हां कमीशन की हिस्सेदारी और पार्षदों को ठेके मिलने में दिक्कत शायद ही कोई आये। पुराने ठेकेदार भी इस पर ज्यादा एतराज नहीं जतातेवे मान लेते हैं कि जनता ने इन्हें जिता कर ठेके लेने का हक दे दिया है। वैसे नये महापौर नारायण चौपड़ा के लिए ज्यादा अनुकूलता की बात यह रही है कि वह थोड़ा कुछ भी करेंगे तो पिछले महापौर से अच्छा ही कहलाएंगे। कांग्रेस की गत प्रदेश-देश में कुछ भी हुई हो, भानीभाई ने अपनी महापौरी में कुछ किया होता तो बीकानेर शहर में तो ऐसी गत नहीं होती। इसलिए कह सकते हैं कि नारायण चौपड़ा को शहर के लिए 'घणी खेचळ' करनी नहीं पड़ेगी। थोड़ा बहुत करके ही पिछले से भळे तो अपने को कहलवा ही लेंगे।

9 दिसम्बर, 2014

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