Monday, December 15, 2014

प्रभारी मंत्री रिणवा की पहली बीकानेर यात्रा

बीकानेर जिले के नये प्रभारी और वन, पर्यावरण और खान मंत्री राजकुमार रिणवा को मिली इस नई जिम्मेदारी के बाद कल पहली बार बीकानेर आए। चूंकि प्रदेश सरकार का एक साल पूरा हुआ सो इस अवसर पर स्थानीय जिला जनसम्पर्क कार्यालय ने एक फोटो प्रदर्शनी के आयोजन के बाद पत्रकारों के साथ उनकी बातचीत आयोजित की। ग्यारह बजे घोषित इस कार्यक्रम में मंत्री बारह-बीस पर पहुंचे। वहां पहुंचे पत्रकारों, सम्बन्धित सरकारी अधिकारियों और पार्टी कार्यकर्ताओं में से किसी को भी इस बीच इस देरी पर असहज होते नहीं देखा गया। मानो इस तरह की देरी भुगतना अब उन सब की आदत में शामिल हो। किसी ने बात भी की तो जवाब मिला कि समय पर कौनसा नेता आता है, प्रतिप्रश्न सटीक था। लेकिन क्या नेता और मंत्री का समय पर पहुंचना प्रधानमंत्री मोदी की 'गुड गवर्नेंस' में नहीं आता। यह गुड गवर्नेंस क्या केवल सरकारी कारकुनों को हड़काने के लिए ही है।
खैरमंत्रीजी ने पहुंचते ही करीने से आयोजित फोटो प्रदर्शनी का उद्घाटन कर डाकबंगले के हॉल में आयोजित कार्यक्रम में 'जिला दर्शन-2014' पुस्तिका का विमोचन किया। बाद इसके इसी स्थान पर आयोजित प्रेसवार्ता में मंत्री को पत्रकारों के मुखातिब होना था। इसके लिए एक पत्रकार मित्र ने पार्टी कार्यकताओं से उस हॉल से बाहर जाने का निवेदन भी कर दिया। बावजूद इसके पार्टी कार्यकर्ता वहीं ठुंसे रहे। होना तो यह चाहिए था कि मंत्री कार्यकर्ताओं को बाहर जाने का कहते लेकिन लगता नहीं नये-नये बने इन मंत्री को इस तरह की औपचारिक जरूरतों का भान हुआ हो। आयोजक विभाग के अधिकारी-कर्मचारी की सीमाएं ऐसे माहौल में कुछ कहने-सुनने की समझ में आती है लेकिन इस अव्यवस्थित-सी प्रेसवार्ता के लिए मंत्री ही ज्यादा जिम्मेदार हैं।
पत्रकारों ने तकनीकी विश्वविद्यालय, मेगाफूड पार्क, केन्द्रीय विश्वविद्यालय जैसे चिढ़ाने वाले मुद्दे भी उठाए तो शहर की रेल फाटकों की समस्या के समाधान और जिप्सम और बजरी के अवैध खनन पर अंकुश की बात भी हुई। लेकिन सवाल-जवाब से लगा कि जिले के प्रभारी मंत्री बिना होमवर्क के धमके। उन्हें इनमें से किसी भी मुद्दे की प्राथमिक जानकारी तक नहीं थी। वे जवाब में बार-बार यही बताते रहे कि शहर की सूरसागर जैसी समस्या से मैं अवगत हूं। अब उन्हें यह कौन बताए कि अधकचरे समाधान के बाद सूरसागर की समस्या पहले जैसी विकराल नहीं रही।
केन्द्रीय विश्वविद्यालय की उम्मीदें और लगभग घोषित हो चुके मेगाफूड पार्क और शुरू हो चुके तकनीकी विश्वविद्यालय को बन्द करना शहर को चिढ़ाना ही है। वहीं उन्हें यह नहीं पता कि शहर जिन रेल फाटकों की समस्या को चौबीसों घण्टे भुगत रहा है उनके समाधान के विकल्पों की बात तो दूर उन्हें इनकी जानकारी तक भी नहीं। रही बात बजरी और जिप्सम के अवैध खनन पर अंकुश लगाने के उनके आश्वासन की, उसके लिए शायद अलग तासीर के शासक की जरूरत होगी। शौकीया राजनीति से शासन में आए राजकुमार रिणवा जैसों के बस की बात तो ये हरगिज नहीं है। इस अवैध खनन में लगे लोगों की पहुंच कांग्रेस और भाजपा सहित रिणवा से जिन ऊंचे लोगों तक है वहां तो हाथ डालने से पहले रिणवा भी सोचेंगे।
इस प्रेसवार्ता में उनके बराबर में बीकानेर (पश्चिम) के विधायक गोपाल जोशी भी बैठे थे, राजनीति में रिणवा से लगभग पचास वर्ष वरिष्ठ जोशी मात्र 'मिट्टी के माधो' ही बने रहे। बीकानेर से सम्बन्धित प्रभारी मंत्री की इस प्रेसवार्ता में उनकी इस जीरो सक्रियता का मानी कहीं यह तो नहीं है कि वे चुक गये हैं या वे अब पूरी तरह निराश हो चुके हैं। रही बात बीकानेर (पूर्व) की विधायक सिद्धीकुमारी की तो उन्हें इस शहर से मतलब अब शायद वोट लेने जितना भी नहीं है। आम-अवाम ने उनकी पांच वर्ष की निष्क्रियता और बिना कोई खास चुनावी मेहनत के बावजूद उन्हें वोट दिए हैं, इस सब को वह शायद अपनी बपौती मान चुकी हैं? शायद इसीलिए वह जनता के बीच ज्यादा जाना अपनी तौहीन मानने लगी हो।

15 दिसम्बर, 2014

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