Friday, December 5, 2014

इकबाल के राज के लिए 56 इंच का सीना नहीं शुद्ध मंशा चाहिए

गांधी के आदर्श शासन की कल्पना में शासन न्यूनतम होना है। इस दौर को देखें तो उस कल्पना का नकारात्मक आभास हुए बिना नहीं रहता। भ्रष्टाचार और हरामखोरी पूरे प्रशासन को लगातार निकम्मेपन की ओर धकेलता दिखता है। आज सुबह जम्मू कश्मीर के उरी, मोहरा सेना कैम्प पर आतंकवादियों के हमला और छत्तीसगढ़ के सुकमा में माओवादियों के हमले में जवानों को मारे जाने की बात फिलहाल भी करें तो कल मध्यप्रदेश के मऊ के मानवरहित रेलफाटक पर स्कूल वैन हादसे में मारे गये बच्चे, परसों तड़के बीकानेर के मुक्ताप्रसाद नगर में एटीएम पर असफल होने के बाद श्रीगंगानगर जाने वाले मार्ग पर स्थित पेट्रोल पम्प पर लूट जैसे मामले राज के इकबाल की उपस्थिति दर्ज नहीं करवाता है।
कहते हैं बच्चों को लेकर जा रही उस वैन के ड्राइवर ने वाहन चलाते वक्त अपने कानों में संगीत ठूंस रखा था, इसलिए उसे रेलगाड़ी की सीटी सुनाई दी और ही बच्चों के द्वारा सचेत करने की चिल्लाहट। वाहन चलाते वक्त जब सभी ज्ञानेन्द्रियों को सचेत और चेतन रखने की जरूरत होती है तब उसने कान बन्द कर रखे थे। ऐसा इसलिए हुआ कि यातायात को सुचारु रखने के जिम्मेवार परिवहन और पुलिस दोनों विभाग देश के कुछ बड़े शहरों को छोड़ दें तो उगाही के अलावा पूरी तरह कहीं मुस्तैद नहीं दिखते। ऊपर तक 'महीना' भिजवाने के अलावा ये अन्य किसी ड्यूटी को जरूरी समझते ही नहीं।
बीकानेर को ही लें, सीमाई संभाग तीन तरफ से पाकिस्तान, पंजाब और हरियाणा से घिरा है। कहने को पुलिस यहां मुस्तैद भी है, आए दिन अवैध शराब के जखीरे पकडऩा और पंजाब-हरियाणा से यहां आकर वारदातों को अंजाम देने का हौसला अपराधियों को हासिल कैसे हो जाता है। मानते हैं अधिकांश वारदातों को अंजाम देने वालों को पकड़ लिया जाता है तो अच्छे प्रशासन की पहचान इतनी भर ही है, नहीं, इसे उस कटी नाक को बचाने की कवायद भर माना जा सकता है। राज का इकबाल उसे कहेंगे कि पड़ौस के अपराधी इस क्षेत्र को चरागाह समझने की हिम्मत ही करें।
राज के इकबाल का उदाहरण खुद मुख्यमंत्री वसुन्धरा ने 'सरकार आपके द्वार' की बीकानेर यात्रा के दौरान अनौपचारिक बातचीत में बताया। हनुमानगढ़ जिले के नहरी पानी की अवैध वितरिका के माध्यम से पड़ौसी प्रदेश के दबंगों के सीमावर्ती खेतों को पता नहीं कितने वर्षों से सींचा जा रहा था। स्थानीय किसान इसलिए बेबस थे कि प्रशासन इस पर आंख मूंदे रहा। सिंचाई विभाग को प्रशासन से हिम्मत मिले तो क्यों पचड़े में पड़ेगा। हनुमानगढ़ के वर्तमान कलक्टर पीसी किसन ने इसे अपनी ड्यूटी माना और दशकों से चल रही उन अवैध वितरिकाओं को बन्द करवा दिया। ये वितरिकाएं जिनके खेतों को सींच रही थीं वे पड़ौसी प्रदेश में केवल सत्ताधारी रहे हैं, बल्कि अनाप-शनाप धन और बाहुबल के दुरुपयोग के लिए बदनाम भी हैं। अन्दाज लगाया जा सकता है कि पानी बन्द होने के बाद उन्होंने अपने इस अवैध हक के लिए किस-किस तरह के हाथ-पैर नहीं मारे होंगे। पीसी किसन टस से मस नहीं हुए। यह कथा खुद इस सूबे की मुखिया ने बताई। वैसे सभी जानते हैं कि इन सत्तासीनों में अधिकांश खुद ऐसी ही हड़पू गतिविधियों में लगे रहते हैं।
ऐसे ही उदाहरण बीकानेर की वर्तमान कलक्टर आरती डोगरा का बताया जा सकता है।  पिछली 14 अगस्त को ही उन्हें पता चला कि बीकानेर में एक सरकारी नेत्रहीन आवासीय विद्यालय है, जो सरकारी अव्यवस्थाओं का शिकार है। संवेदनशील डोगरा ने तत्काल उसकी सुध ली और इन तीन महीनों में वहां जितना कुछ करवा सकती थीं, उन्होंने करवाया। इस किए धरे से ज्यादा कारगर प्रभाव यह हुआ कि वहां के शिक्षकों और कर्मचारियों को यह अहसास हो गया कि यह स्कूल अनाथ नहीं है। स्टाफ को लग गया कि ज्यादा कोताही अब नहीं कर सकते, वे निगरानी में गये हैं।
यह दोनों छोटे-छोटे उदाहरण राज के इकबाल के ही हैं। ऐसी धाक यदि सभी वापरने लगे तो छप्पन इंच के सीने की जरूरत ही कहां। देश के प्रधानमंत्री अपने आभासी छप्पन इंची सीने के साथ इन छह महीनों में कुछ कर सके हैं क्या? उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों और उनकी पार्टी के वरिष्ठों के अनर्गल बोल भी उनका यह आभासी सीना बन्द नहीं करवा पाया तो पाकिस्तान और चीन को वे कैसे निपटेंगे। ये दोनों ही देश मोदी के हिसाब से नहीं अपने-अपने हिसाब से चल रहे हैं। देश में भ्रष्टाचार, कालाधन और महंगाई तीनों को ही अभी तक तो हताश होते नहीं देखा गया। इन मोदी सहित शासन-प्रशासन चलाने वाले सभी को समझ लेना चाहिए कि राज इकबाल से चलता है और इकबाल शुद्ध मंशा के बिना चेतन नहीं होता।

5 दिसम्बर, 2014

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