Saturday, December 20, 2014

संघ, मोदी और अच्छे दिनों का टूटता भ्रम

अश्विनी मिन्ना अपनी अलग तरह की प्रतिष्ठा वाले अखबार 'पंजाब केसरी' के मालिक और हरियाणा के करनाल से  भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा में सांसद हैं। मिन्ना मूलत: जालन्धर पंजाब के उस प्रभावी परिवार से हैं जिनका अकाली दल के साथ हमेशा आंकड़ा छत्तीस का रहा है। शायद इसीलिए अपने मूल क्षेत्र से दूर करनाल से ऐसे समय में उन्होंने दावं खेला जब भाजपा का अनुकूल समय था।
आज इस विरुदावली की जरूरत इसलिए हुई कि कल सुबह 'पंजाब केसरी' के -संस्करण में एक खबर चली जो बाद में खुद पंजाब केसरी से गायब हो गई। खबर की पूंछ अन्य किसी मीडिया समूह ने पकडऩे की जरूरत नहीं समझी। इसके कारणों के खुलासे की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सम्बन्धित उस गंभीर खबर में बताया गया कि मोदी ने एक जरूरी बैठक कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नीति निर्धारकों को बता दिया है कि संघ उसके अनुवर्ती संगठन और इन संगठनों से जुड़े दिग्गज अपने हिन्दूवादी ऐजेन्डे को लागू करने के प्रयासों को नहीं छोड़ते हैं तो वे प्रधानमंत्री का पद छोड़ देंगे। मोदी इन दिनों गिरिराज सिंह, साध्वी निरंजन ज्योति और योगी आदित्यनाथ जैसों के बयानों से काफी खफा दिख रहे हैं।
आज की बात की शुरुआत में अश्विनी मिन्ना का परिचय यह बताने के लिए जरूरी था कि उनके अखबार के बैनर से ब्रेक हुई इस खबर की प्रामाणिकता और उसे गायब करने के कारणों के कयास हम आसानी से लगा सकें। उक्त खबर इतनी जल्दी गायब हुई कि बहुत से लोग उसे देख ही नहीं पाये। लेकिन सोशल साइट्स को दाद देनी होगी कि बहुत कम लोगों के लिए ही सही इस खबर को इस माध्यम ने बचाये रखा।
यह खबर यदि सही थी, चूंकि पंजाब केसरी ने बे्रक की तो इस पर संशय करने का कोई कारण नहीं बनता है। मान लेते हैं सही थी और इसे गायब करना पार्टी को सरकार के इस हनीमून पीरियड में जरूरी लगा होगा। पार्टी के सांसद का ही यह अखबार है। अत: खबर को गायब करवाने में पार्टी को ज्यादा मशक्कत भी नहीं करनी पड़ी होगी। इसकी पड़ताल छोड़ भी दें तो मानना पड़ेगा कि इस खबर की अन्तर्निहित ध्वनियां बहुत कुछ खोलती है। जैसा माना जाता रहा है कि मोदी राज केवल और केवल अपने हिसाब से चला रहे हैं, उक्त घटनाओं से लग रहा है कि ऐसा पूरी तरह सच नहीं है। संघ का सरकार में प्रभावी हस्तक्षेप है और इस हस्तक्षेप के चलते ही गिरिराज सिंह, निरंजन ज्योति जैसे मंत्री बने और आदित्यनाथ को उत्तरप्रदेश के पिछले उपचुनावों में तीन सर्वेसर्वाओं में से एक बनाना पड़ा।
लगभग सुप्रीमो कार्यशैली के साथ मोदी बेहद स्वकेन्द्रित भी हैं और किसी भी तरह के हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करते हैं, ऐसा वे गुजरात के अपने बारह वर्षों के शासन से जाहिर कर चुके हैं। एक बात ऐसे में समझ यह रही है कि मोदी कुछ कर दिखा अपने शासन को अमरता प्रदान करना चाहते हैं लेकिन संघ परिवार का ऐजेन्डा उसमें बड़ी बाधा है। चूंकि मोदी का स्वभाव इस तरह की परिस्थितियों में काम करने का नहीं रहा और उन्हें लगने लगा हो कि आम-अवाम उनके शासन की पिछले शासन से तुलना करते हुए कहीं यह धारणा बनाने लगे कि मोदी के शासन से तो मनमोहनसिंह का पिछला शासन ही ठीक था।
यह बात अलग है कि पूरी स्वतंत्रता के बावजूद जनता को चुनावों में दिए भ्रमों में से मोदी कितनों को अमली जामा पहना पाएंगे। यदि ऐसा समझ में उन्हें लाने लगा हो तो हो सकता है अपनी छाकटाई से वे भूंड का ठीकरा इस तरह से संघ परिवार पर फोडऩे की आधारभूमि तैयार करने लग गये हैं। कल की 'पंजाब केसरीकी खबर मोदी की ऐसी मंशा को उजागर करती है। इस राज को अभी उन्हें कम से कम साढ़े चार साल और चलाना है। उम्मीद करनी चाहिए कि मोदी बहुत कुछ नहीं भी कर पायें और अच्छे दिन भी आएं तो कम-से-कम जिस दौर को आम-अवाम भुगत रहा है उससे बुरा दौर तो आए।

20 दिसम्बर, 2014

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