Friday, December 12, 2014

जनप्रतिनिधियों को सांप क्यों सूंघ जाता है?

राजस्थान निर्माण के समय जिन रियासतों की महती भूमिका रही है उनमें से एक बीकानेर भी है। लोक में तो यहां तक प्रचलित है कि बीकानेर मूल के एक प्रतिष्ठित संत की तब उनकी संसारी भूमिका में लॉबिंग के चलते जोधपुर रियासत ने लगभग तय ही कर लिया था कि वह अपना विलय भारत की बजाय पाकिस्तान में करेगा। इसके झूठ-साच का तो पता नहीं पर जिस तरह बहुत कुछ धारणाएं हम लोक में उसके प्रचलन के आधार पर बनाते हैं ऐसे में इसे सिरे से कैसे खारिज किया जा सकता है?
आज यह मुद्दा इसलिए उठाना पड़ा कि खादी की अवधारणा जैसी-तैसी भी बची है उसे बचाये रखना इसलिए जरूरी है कि इसके साथ केवल बहुतों का रोजगार जुड़ा है बल्कि खादी बापरने और खादी ही पहनने का संकल्प लिए लोग समाज में अभी भी हैं। इस रोजगार से जुड़े लोग पिछले कुछ दिनों से उद्वेलित इसलिए हैं कि खादी ग्रामोद्योग आयोग के बीकानेर स्थित डिविजनल कार्यालय को जोधपुर स्थानान्तरित करने का निर्णय हुआ है। खादी से जुड़ी संस्थाओं के पदाधिकारियों और कर्मचारियों का यह मानना है कि पहले से ही संकट से घिरे इस अभियान की परेशानियां इस निर्णय से बढ़ेंगी ही। इस दफ्तर से जुड़े कार्य-व्यापार के लिए उन्हें इसके बाद जोधपुर आना-जाना पड़ेगा। इनका एक तर्क यह भी है कि जोधपुर से कई गुना अधिक संस्थाएं बीकानेर में कार्यरत हैं, इसके बावजूद ऐसा निर्णय किया जाना अनुचित है।
आजादी के बाद माना जाता है कि राजस्थान के निर्माण के समय देशी रियासतों में जयपुर के बाद बीकानेर का ही सर्वाधिक योगदान रहा बावजूद इसके बीकानेर के साथ लगातार सौतेला व्यवहार किया जाता रहा है। राजधानी जयपुर को, उच्च न्यायालय जोधपुर को और प्रदेश का सबसे बड़ा महकमा शिक्षा विभाग का मुख्यालय बीकानेर के हिस्से आया था। इस महकमे का भी हश्र लगातार क्या हो रहा है किसी से नहीं छुपा। उच्च अधिकारियों का बस चलता तो इस महकमे को वे कब का ही जयपुर ले जा चुके होते। क्योंकि जो भी उच्च अधिकारी यहां आता है उनमें से अधिकांश की यहां टिके रहने की इच्छा नहीं होती। बड़ी छाकटाई से इसके हिस्सों को लगातार जयपुर स्थानान्तरित किया जा रहा है ताकि इन अफसरों को जयपुर में टिके रहने के बहाने मिलते जाएं। हाल ही में इसके : खण्डों को जयपुर स्थानान्तरित करने के आदेशों को यहां से जीते और हारे, दोनों तरह के जनप्रतिनिधियों ने नजरअन्दाज किया। छिट-पुट विरोध केवल विभाग के कर्मचारियों ने ही किया जिसे उनका 'रोने में राग' मान कर नजरअन्दाज किया जा रहा है।
पासपोर्ट बनाने का काम पहले ही सीकर चला गया है। चिन्ताजनक बात यह है कि यहां के सांसद और क्षेत्र के विधायकों के अलावा जो नेता जनप्रतिनिधि होने का दम भरते हैं उनमें से कोई इस तरह के मुद्दों पर पर्याप्त सक्रियता नहीं दिखाते, कोई इन्हें ज्यादा से ज्यादा घुद्दा देता भी है तो औपचारिक बयान देकर इतिश्री कर लेते हैं जबकि शहर की इन जरूरतों को यहां बनाये रखने की असल जिम्मेदारी इन्हीं की है। शहर के साथ बड़ी प्रतिकूलता यही है कि हम ऐसों को अपना जनप्रतिनिधि मान लेते हैं जो या तो इन मुद्दों की गंभीरता को नहीं समझते और ऐसी समझ हो भी तो इस चतुराई के साथ चुप्पी साध लेते हैं कि क्यों बाथैड़े में पड़ें। सांसद अर्जुनराम मेघवाल से लेकर शंकर पन्नू, रेवंतराम पंवार, डॉ. बीडी कल्ला, देवीसिंह भाटी, गोपाल जोशी, गोपाल गहलोत, सिद्धीकुमारी, मानिकचन्द सुराना, वीरेन्द्र बेनीवाल, भानीभाई, नन्दकिशोर सोलंकी, भंवरसिंह भाटी और रामेश्वर डूडी जैसे जो अपने को तोपें कहलवाने में संकोच नहीं करते इन सभी को सांप क्यों सूंघ जाता है जब बीकानेर के हितों के साथ ऐसे कुठाराघात होते हैं? पाठक जरा याद करके बतायें कि ऊपर जिन कुठाराघातों का उल्लेख किया है, उन पर इन नेताओं में से कोई सक्रिय है क्या?

12 दिसम्बर, 2014

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