Tuesday, December 16, 2014

सिडनी संकट का सुखद पटाक्षेप

आस्ट्रेलिया के सिडनी में लिंट चॉकलेट कैफे संकट में सोलह घंटे फंसे सत्तरह बंधकों में दो भारतीय भी थे। इंफोसिस में कार्यरत ये दोनों युवा अपने सिडनी कार्यस्थल से दो किलोमीटर दूर इसे कैफे में कॉफी पीने के लिए आए थे। आस्ट्रेलिया की घडिय़ां भारतीय घडिय़ों से साढ़े पांच घण्टे आगे चलती हैं। अत: आस्ट्रेलिया के सुबह साढ़े नौ बजे शुरू हुई इस वारदात के समय भारत की घडिय़ों में तड़के के चार बजे थे।
आस्ट्रेलिया में शरण पाये ईरानी मूल के सिरफिरे हारुन मोनिस ने अकेले इस दौरान दुनिया के बहुत से लोगों की सांसें ताक पर और आंखें टीवी पर अटकाए रखीं।
इस पूरे घटनाक्रम से आस्ट्रेलिया ने सिखा दिया कि ऐसे संकटों का सामना हाकों से किया जा सकता है और हंगामों से। आस्ट्रेलियाई सरकार अधिकृत तौर पर बहुत जरूरी सूचनाओं को ही उन अधिकृत जरूरतमंदों को बताने के लिए बाध्य हुई जिन्हें बताना जरूरी थी। तभी कल पूरे दिन बंधकों और बंधक बनाने वालों की संख्या में उतार चढ़ाव होता रहा। बहुत धैर्य से वहां की सरकार ने इस अभियान को न्यूनतम मानव हानि के साथ पूरा किया। ऐसी ही सूचना भारत सरकार को मिली तो बिना विदेश मंत्रालय से सलाह किये संसदीय कार्यमंत्री वैंकेया नायडू शायद बाजी मारने की फिराक में मीडिया से मुखातिब हो लिए। मोदी सरकार में पता ही नहीं चल रहा कि कौन से मंत्रालय की जिम्मेदारी किसके पास है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अधिकृत तौर पर कुछ कह के ट्वीट करके कहती हैं। जिस मसले को अधिकृत तौर से विदेश मंत्रालय को संभालना था उसे संसदीय कार्यमंत्री हथिया लेते हैं और बिना यह आगा-पीछा सोचे कि इससे दूसरे तरह के संकट खड़े हो सकते हैं, मीडिया को पेल देते हैं। चेताया जाता है तो सफाई देने फिर लौट आते हैं। इतना ही नहीं जिस कम्पनी के भारतीय बंधक कर्मचारी थे उससे भी भारत सरकार ने सम्पर्क साध कर इस घटना पर फिलहाल सार्वजनिक तौर पर चुप रहने की हिदायत नहीं दी। उधर वैंकेया नायडू सफाई दे रहे थे तो इधर इंफोसिस ने सार्वजनिक कर दिया। यद्यपि यह संकट अकेले हारून मोनिस की उपज था अन्यथा किसी संगठित गिरोह का होता तो दूसरे तरह के संकट भी खड़े हो सकते थे।
चूंकि राजग की सरकार से इससे पहले भी बड़ी भूल 1999 में कंधार संकट के समय हो चुकी है जिसमें तब के विदेशमंत्री जसवंतसिंह अपहृत इंडियन एयर लाइन्स की फ्लाइट सं. 814 के यात्रियों को छुड़ाने के लिए छोड़े गये आतंकवादियों के साथ कंधार पहुंच जाते हैं। इस तरह की वाहवाहियां लेने की उतावल अकसर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में देखी जाती है। जबकि देश और विदेश के महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय तात्कालिकता के आधार पर भले ही हों लेकिन लम्बा आगा-पीछा देखा समझा जाता है।
खैर, जिन तीन की मौत की पुष्टि हुई उनमें एक तो खुद वह बंधक बनाने वाला ही था। दोनों भारतीय युवा पूरी तरह स्वस्थ और सुरक्षित हैं, उम्मीद की जानी चाहिए कि नियम कायदे की जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद वे अपने अपने परिजनों का जी-जमाने एक बार देश लौट आएंगे।
इस वारदात को अंजाम देने वाले हारुन मोनिस का पिछला रिकार्ड अच्छा नहीं है। बावजूद इसके वह 1996 से आस्ट्रेलिया में शरण पाए है, अचम्भे की बात है। यौन कुण्ठित हारुन का आस्ट्रेलिया में ही आपराधिक रिकार्ड है, यौन दुराचारों से लेकर हत्याओं तक के मामले आस्ट्रेलिया में दर्ज हैं। ऐसे में यह वहां के स्थानीय कानूनों का ही लोचा माना जायेगा जिसमें ऐसे लोग इतने बेधड़क होकर देश की सरकार की साख को ही ताक पर रख देने की सनक कर गुजरते हैं। ऐसी आशंकाएं हमारे देश में भी आस्ट्रेलिया से कम नहीं हैं लेकिन यहां भ्रष्टाचार के चलते पोल इतनी है कि कुछ भी संभव हो सकता है। यहां हजार-पांच सौ में कहीं से भी आकर मूल निवासी प्रमाण पत्र तक हासिल किए जा सकते हैं। दूसरी तरफ बिना कुछ दिए पीढिय़ों से एक ही मकान में रहने और जाये-जन्मे को सम्बन्धित दफ्तर में बाबू घर का पड़ोसी होते हुए भी ऐसा प्रमाण-पत्र देने को तैयार नहीं होता।

16 दिसम्बर, 2014

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