Saturday, December 13, 2014

'न भूतो' बहुमत की रोशनी में वसुन्धरा और नरेन्द्र मोदी

किसी सरकार की वर्षगांठ के उत्सव से आमजन को कोई लाभ या राहत मिलती हो, कह 'नहीं' सकते लेकिन ऐसे मौकों पर मीडिया या कहें टीवी-अखबारों का थोड़ा-बहुत घोघा जरूर बूरा जाता है।
प्रदेश की कमान संभाले वसुंधरा को एक वर्ष पूरा हो गया है। राजधानी जयपुर में आज जश्न का आयोजन है। प्रदेशभर से पार्टी कार्यकर्ता अपने-अपने नेताओं के साथ पहुंच रहे हैं। मीडिया जहां अपने-अपने बल पड़ते तरीकों से सरकार के पिछले वर्ष के काम-काज की पड़ताल कर रहा है वहीं हष्ट-पुष्ट सरकार और लुंज-पुंज विपक्ष किए और किए का लेखा-जोखा जनता को बताना चाह रहे हैं।
पड़ताल का मोटा-मोट परिणाम तो यही लगता है कि सरकार ने इस एक वर्ष में चाहे बहुत कुछ किया हो लेकिन उनमें से दृश्यमान कुछ भी नहीं। खुद मुख्यमंत्री ने इसकी स्वीकारोक्ति करते हुए कह ही दियाजनता ने हमें पांच साल के लिए चुना फिर एक वर्ष में ही परिणामों पर इतनी उतावली क्यों। साथ में उन्होंने करके दिखा पाने के कारणों की एक फेहरिस्त भी पिछली सरकार को भुंडाते हुए पेश कर दी। वहीं विपक्ष में जैसी-तैसी भी कांग्रेस है, वह अपनी सरकार के किए और भाजपा के चुनाव घोषणा में दिखाए सब्जबागों की रोशनी में इस सरकार को जनता के साथ एक धोखे से कम घोषित नहीं कर रही।
दरअसल वसुन्धरा को इस बार जो ' भूतो' बहुमत हासिल हुआ उसका श्रेय खुद वसुन्धरा को कम और पार्टी के तब घोषित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आक्रामक और प्रभावी प्रचार शैली को ज्यादा है। इसे मानने से इनकार नहीं है कि मोदी प्रचार के ये तौर-तरीके नहीं अपनाते तो वसुन्धरा के पाले में 163 नहीं 100 के आगे-पीछे की संख्या में ही विधायक होते। ऐसे में वसुंधरा सरकार बना भी लेती तो अपने बूते इस हासिल के लिए वह शायद कुछ ऐसा करतीं जो दीखे।
शासन पर वसुंधरा के दुबारा काबिज होने के समय से ही पार्टी सुप्रीमो नरेन्द्र मोदी के साथ उनकी जो ट्यूनिंग बिगडऩे लगी, बजाय सुधरने के लगातार बिगड़ती ही जा रही है। वसुंधरा को पिछले कार्यकाल की तरह पार्टी की ओर से खुल्लम-खुल्ला की छूट है और ही सहयोग। वसुंधरा जिस मिजाज की हैं उसमें वह इस तरह की परिस्थिति में काम करने की अनुकूलताएं नहीं पातीं। इसी का परिणाम है कि प्रदेश की यह भाजपा सरकार आम-अवाम के लिए कुछ करती नहीं दीख रही। लोक प्रचलित कैबत के हवाले से बात करें तो काम करने के 100 बहाने हो सकते हैं, करने के लिए तो एकमात्र इच्छाशक्ति की जरूरत होती है और वसुंधरा इस एक वर्ष में वही नहीं बटोर पाई।
केन्द्र में भी इस पार्टी की सरकार ' भूतो' बहुमत के साथ बनी, बावजूद इसके उसकी स्थिति प्रदेश की वसुंधरा सरकार से कुछ अलग नहीं दिख रही। ऐसे में तुलना करें तो नरेन्द्र मोदी बिना किसी बन्धन और स्पीड गवर्नर के भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो वसुंधरा को पार्टी हाईकमान और सुप्रीमो की ओर से किसी भी तरह की अनुकूलता मिलने की स्थिति उसके पक्ष में बहाना है।
मोदी अपनी अक्षमताओं को छुपाने के लिए नये-नये अभियान, नारे और शगूफे दे कर भरमाने का क्रम जारी रखे हुए हैं। मोदी को आज की डाफा चूक (किंकर्तव्यविमूढ) वसुन्धरा को देख यह समझ लेना चाहिए कि जनता को काम होते दिखना ज्यादा जरूरी है बजाय इसके कि उसे दूसरे-दूसरे तरीकों से भ्रमित करें।
ऐसे में लगता है वसुंधरा शासन के मामले में ज्यादा परिपक्व हैं। उन्हें अनुकूलता मिले तो समय और परिस्थितियों के अनुसार नरेन्द्र मोदी से बेहतर परिणाम दे सकती हैं, जबकि मोदी बावजूद सभी अनुकूलताओं के काबिलीयत नहीं दिखा पा रहे हैं तो यही कहा जा सकता है वे शायद काबिल शासक साबित नहीं हो सकें।
'विनायक' ने पहले ही कहा है कि गुजरात का शासन चलाने और भारत जैसे देश का शासन चलाने में अन्तर जमीन-आसमान का है। मोदी को यह समझ नहीं आया और भी जाए तो अपनी नाकाबिलीयत के चलते कुछ कर पायें तो देश और आम-अवाम के लिए यह बहुत निराशाजनक होगा। भाजपा को जो भुगतना है वह अपने किए का चुकाना होगा। मारो-मारो वही ज्यादा करते हैं जिनके पास मारने का सामथ्र्य नहीं होता, मोदी क्या ऐसे ही स्वांग से नहीं गुजर रहे हैं!

13 दिसम्बर, 2014

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