Thursday, January 31, 2019

बाल सुलभ बीकानेरियों को बहलाने के लिए कल्ला-अर्जुन ही काफी थे......


देश के परिवहन मंत्री नितिन गडकरी 28 जनवरी को बीकानेर में थे, अवसर था सांसद और मेघवाल समाज के अर्जुनराम मेघवाल खेमे के सामूहिक विवाह समारोह का। किसी निजी मकसद से भी अच्छा काम हो रहा हो तो आलोचना कैसी। अर्जुनराम मेघवाल प्रतिवर्ष यह एक अच्छा सामाजिक काम कर रहे हैं। इस आयोजन में प्रतिवर्ष साथी केन्द्रीय मंत्रियों को बुलाते हैं। इस बार नितिन गडकरी और संतोष गंगावार दो केन्द्रीय मंत्री आए। चूंकि दोनों की यात्रा को सरकारी यात्रा बनाना था सो ना केवल इसके लिए शिलान्यास-उद्घाटन के काम निकलवाए गए बल्कि गडकरी द्वारा किये जाने वाले शिलान्यास को उसी पॉलिटेक्निक कॉलेज के मैदान में रखा जहां सामूहिक विवाह आयोज्य था। इस मैदान तक पहुंचने में हवाई अड्डे के रास्ते में गंगासिंह विश्वविद्यालय परिसर पड़ता है, हालांकि छात्रसंघ चुनाव हुए कई महीने बीत गये, छात्रसंघ कार्यालय का उद्घाटन अब तक बाकी था, अत: लगे हाथ पदाधिकारियों ने वह भी करवा लिया। आधे से भी कम बचे इस सत्र में विश्वविद्यालय के लिए छात्रसंघ अब कितना कुछ कर पाएगा कह नहीं सकते। लेकिन मगरे के शेर देवीसिंह भाटी को गडकरी आईना जरूर दिखा गये। हुआ यह कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् प्रभावी छात्रसंघ के प्रभावी पदाधिकारी देवीसिंह खेमे से हैं सो अर्जुनराम मेघवाल का अतिथियों में नाम तक नहीं था, ऐसे में मंच पर जगह मिलने का प्रश्न ही कहां? देवीसिंह भाटी और अर्जुनराम मेघवाल के बीच के छत्तीस के आंकड़े की जानकारी बीकानेर में सभी को और सूबे में अनेक को होगी। केन्द्र के नेताओं को नहीं होगी, ऐसी जानकारी होने की कोई वजह भी नहीं है। देवीसिंह पार्टी सरकार के केन्द्रीय परिदृश्य में लगभग नदारद हैं। कहते है अर्जुनराम मेघवाल से आयोजकों की 'छुआछूतÓ का गडकरी को जैसे ही पता चला, छात्रसंघ कार्यालय का फीता मात्र काटकर, समारोह के मंच पर गये बिना अगले कार्यक्रम के लिए वे वहां से प्रस्थान कर गये। इस सब में किरकिरी किनकी हुई कयास लगाते रहें।
यह तो हो ली निन्दा सुख की बात, अब जो शहर को गडकरी चांद दिखलाकर गये हैं, उस रोप-वे यातायात की बात कर लेते हैं। अभी से नकारात्मक क्यों होवें, हमारा शहर कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या समाधान के लिए गत उनतीस वर्षों से रेल बायपास की बाट जिस तरह जोह रहा है, उम्मीद करें कि यातायात के रोप-वे जैसे नये साधन की शुरुआत देश में हमारे ही शहर से हो। हालांकि शहर के जो संकरे मार्ग प्रस्तावित हैं वहां टू-वे तो क्या सिंगल-वे ट्रॉली चलाना भी तकनीकी रूप से संभव है क्या? दूसरा संशय यह है कि केन्द्र सरकार इसके लिए कोई आर्थिक मदद नहीं करेगी। ऐसी नाउम्मीदगी में गडकरी इस सब्जबाग की माला को उस नगर निगम के गले में डाल गये हैं जिसके पास रोजमर्रा के सामान्य कामों के लिए ही आर्थिक संसाधन नहीं होते। हालांकि गडकरी ने यह सुझाव दिया है कि निगम इस योजना को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत किसी निजी कंपनी को सौंप दे। कोई निजी कम्पनी तैयार तभी होगी जब उसे इसमें आर्थिक लाभ दिखेगा। मतलब यही कि राधा नाचेगी तभी जब तेल नौ मण होगा। सिटीबस सेवा यहां एक से अधिक बार आर्थिक कारणों से दम तोड़ चुकी है। केन्द्र की सरकार में वर्क डिलीवर करने वाले एकमात्र मंत्री की छवि वाले गडकरी की जल परिवहन योजना नदियों में पर्याप्त पानी का इंतजार कर रही है। निर्मित सड़कों की लंबाई का आंकड़ा डबल बताने में इस सरकार को सड़क की लम्बाई नापने के उस अन्तरराष्ट्रीय मानक का सहारा मिल गया जिसमें टू-लेन सड़क की लम्बाई डबल, थ्री लेन को तीन गुना और इसी तरह फोर और सिक्स लेन की सड़कों की लम्बाई चार और छह गुना बताई जाने लगी है। मोदी सरकार से पूर्व भारत में सड़कों की लम्बाई इकहरी मापी जाती थी। गडकरी जगह-जगह सड़कें डबल करने का जो दावा करते फिर रहे हैं उसका राज अन्तरराष्ट्रीय मापक प्रणाली ही है।
खैर! गडकरी पराये हैं, बहलाकर गये कोई बात नहीं। विकास के मामले में राजस्थान के उपेक्षित इस क्षेत्र की तकलीफ यही है कि कल्ला, भाटी और मेघवाल यहां की बदौलत जो राज भोगते रहे हैं, गिनाने को उनके पास भी उपलब्धियां खास नहीं हैं। कल्ला और देवीसिंह भाटी 1980 से नुमाइंदगी कर रहे हैं, पूछिए इस क्षेत्र के लिए उन्होंने उल्लेखनीय क्या किया। कल्ला तो फिर चतुर हैं, वे इस दौरान शहर में हुए रूटीन के कामों की फेहरिस्त अपनी उपलब्धियों में गिनाते रहे हैं वहीं देवीसिंह भाटी के पास शहर की छोड़ें, कोलायत ग्रामीण के लिए गिनाने को भी कुछ उपलब्धियां नहीं हैं। सिद्धिकुमारी का इस शहर से लेना-देना चुनाव तक ही रहता आया है, चुनाव के बाद वे कहीं नजर आयीं हो तो बताएं। केन्द्र की सरकार में क्षेत्र को अर्जुनराम मेघवाल के तौर पर बीते सत्तर वर्षों में पहली बार नुमाइंदगी मिली, बहुत उम्मीदें थीं। मेघवाल भी कुछ खास करवा नहीं पाए। ले-दे के हवाई सेवा को गिनवाते रहते हैं या ईएसआई अस्पताल जिसका शिलान्यास कल हुआ, वह भी बनकर चालू हो जाए तब मानें। लेकिन ये दोनों उपलब्धियां क्या इतनी बड़ी हैं? यह दोनों भी रूटीन की हैं, हवाई सेवा तो देशव्यापी योजना में मिलनी ही थी। हां, ईएसआई अस्पताल मान सकते हैं, इनकी घोषणाएं सीमित होती है, अर्जुनराम मेघवाल कोशिश नहीं करते तो किसी अन्य शहर में जा सकती थी।
अपने को सन्तोषी मानें या मासूम हमारी नियति क्या इन नेता-जनप्रतिनिधियों से छले जाने या बहलने भर ही है। कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या के समाधान की गाड़ी को कल्ला बायपास जैसी डेड रेलवे लाइन की ओर शटिंग कराने में फिर से जुट गये हैं। कल्ला को शायद यह भान नहीं है कि पांच वर्ष का समय कितना छोटा होता है। पूर्व विधायक गोपाल जोशी ने भी अपने दस वर्षों की विधायकी में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं करवाया-बल्कि जो कुछ हो रहा था उसे स्वार्थवश उन्होंने होने नहीं दिया।
दीपचन्द सांखला
31 जनवरी, 2019

No comments: