सचिन तेंदुलकर ने कल जब बहुप्रतीक्षित 100वां शतक लगाया तो एकबारगी बजट की चर्चाएं भी ठिठक गई थीं, इस सौवें शतक के लिए न केवल सचिन बल्कि देश के खेलों के कमोबेश सभी प्रेमी भी चरमोत्सुक थे। लेकिन जब इसी मैच में भारत बांग्लादेश से हार गया तो टीवी आदि पर ऊल-जुलूल भी कुछ आने लगा, जैसे सचिन का चमत्कार भी देश के काम नहीं आया या यह भी कि सचिन की लगभग सभी बड़ी सफलताएं टीम के लिए शुभ नहीं रहीं यानी ऐसे मैच टीम ने हारे ही हैं या दबे मुंह यह कहने से भी नहीं चूके कि सचिन की सफलताओं में टीम का या टीम के खिलाड़ियों के किसी ना किसी प्रकार के बलिदान का योगदान होता है। इस तरह हम यह भूल जाते हैं कि जिस सचिन के लिए हम भारतरत्न देने की हिमायत करते हैं या भावावेश में भगवान तक कहने से भी नहीं चूकते उस प्रतिभा का हम कितना अपमान कर रहे होते हैं। देखा है कि छोटी-मोटी हार के बाद हम किस तरह उस खिलाड़ी के पुतले जलाने को उतारू हो जाते हैं। बल्कि उनके घरों पर पत्थरबाजी में भी शर्म नहीं करते। दरअसल, इन खेलों को खेल की भावना से खेलने और देखने की बजाय जुनून से यह सब करेंगे तो परिणाम खिलाड़ियों के पुतले जलाने, उनके घरों पर पत्थरबाजी करने, उन्हें सिर पर बैठाये घूमने और भगवान तक कह देने के रूप में ही सामने आयेंगे।
रही बात सचिन को भारतरत्न देने की वो तो देर-सबेर मिल ही जायेगा और यदि नहीं भी मिलता है तो कम कद के खिलाड़ी सचिन का कद न तो कम होगा ना ही ज्यादा। हां, यह जरूर हो सकता है नोबेल समिति की तरह एक से अधिक बार नामांकित होने के बावजूद गांधी को नोबेल न देने के मलाल का प्रकटीकरण पहले केवल वक्तव्यों से और फिर आधिकारिक दस्तावेजी बयान देकर भारत सरकार कभी सचिन के लिए भी करे।
--दीपचंद सांखला
17 मार्च, 2012
No comments:
Post a Comment