Tuesday, January 29, 2019

बीकानेर : बिछती चुनावी बिसात--दो (24 मार्च, 2012)

उन्नीस सौ पचहत्तर में देश में लगे आपातकाल के बाद उन्नीस सौ सतहत्तर में हुए आम चुनाव ऐसे थे जिसमें कम से कम उत्तर भारत में हर नागरिक की उत्साहजनक भूमिका देखी गई। हो सकता है उन्नीस सौ बावन में हुए पहले आम चुनाव भी ऐसे ही माहौल में हुए हों।
सतहत्तर के इन चुनावों में लोकसभा के पहले चुनाव से क्षेत्र की नुमाइंदगी कर रहे पूर्वशासक घराने के डॉ. करणीसिंह आपातकाल में राजघरानों के खिलाफ हुई कार्यवाहियों से सहम गये थे और उन्होंने चुनाव ना लड़ना तय कर लिया था। उधर बीकानेर लोकसभा सीट से कई पार्टियों के विलय से बनी जनता पार्टी के उम्मीदवार हरीराम मक्कासर हुए और कांग्रेस से चौ. रामचन्द्र। ये दोनों ही इस लोकसभा क्षेत्र के उस आधे भाग से आये थे जो पंजाब और हरियाणा की तरफ था। इस चुनाव में जनता पार्टी का चुनाव कार्यालय महात्मा गांधी रोड स्थित 5, डागा बिल्डिंग को बनाया गया। पांच-सात दिन में ही माहौल ऐसा बना कि जनता के मन से आपातकाल का भय काफूर हो गया था। दिन-ब-दिन डागा बिल्डिंग के आगे लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। इसी माहौल में एक युवक जिस शाम भी अपनी खुली जीप में यहां पहुंचता लोगबाग उसे घेर लेते। यह युवक देवीसिंह भाटी थे जो उस समय हरीराम के लिए लगे हुए थे और बाद में उन्नीस सौ अस्सी के चुनावों से आज तक कोलायत विधानसभा क्षेत्र से अजेय ही बने हुए हैं।
लोकसभा चुनावों के बाद उन्नीस सौ सतहत्तर में ही हुए विधानसभा चुनावों में जनता पार्टी से कोलायत से रामकृष्ण दास गुप्ता को टिकट दिया गया, तब उनकी जीत तय थी। इसी तरह बीकानेर विधानसभा सीट से जनता पार्टी प्रत्याशी महबूब अली की जीत भी तय मानी जा रही थी। इसीके चलते इन दोनों ही क्षेत्रों के सीटिंग कांग्रेसी एमएलए गोपाल जोशी और कान्ता खतूरिया--दोनों ही दीखती हार का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये। स्थितियां ऐसी बनी कि कांग्रेस को प्रत्याशी ढूंढ़े नहीं मिल रहे थे। तब बीकानेर से वही गोकुलप्रसाद पुरोहित कांग्रेसी उम्मीदवार बने जिनको गोपाल जोशी ने उन्नीस सौ बहत्तर के चुनावों में टिकट की दौड़ से बाहर कर दिया था। लेकिन कोलायत का मामला दूसरा था वहां इस चुनौती को स्वीकार करने को कांग्रेसी युवक विजयसिंह आगे आ गये थे। लेकिन उन्नीस सौ अस्सी के चुनावों में जब माहौल कांग्रेस के अनुकूल होता लगा तो अपने सम्बन्धों के बल पर कान्ता खतूरिया मैदान में पुनः लौट आयीं। तब से अब तक बार-बार उम्मीदवार बदलने के बावजूद कांग्रेस इस क्षेत्र से जीत नहीं पायी। कांग्रेस यदि उन्नीस सौ अस्सी के चुनावों में विजयसिंह को पुनः उतारती तो हो सकता है कोलायत में फिज़ा दूसरी होती, नहीं भी होती तो भी देवीसिंह भाटी आज की तरह चुनौतीविहीन नहीं ही होते। हालांकि उन्नीस सौ अस्सी में मांगने पर भी टिकट न दिये जाने के बाद विजयसिंह भी राजनीति में सक्रिय नहीं देखे गये। बाद में उन्नीस सौ इक्यानवें में तो उनका असमय निधन भी हो गया।
कांग्रेस ने उन्नीस सौ अस्सी से दो बार कान्ता खतूरिया, एक बार गोपाल जोशी, दो बार रघुनाथसिंह भाटी और दो बार हुकमाराम बिश्नोई को उतार कर सारे पैंतरे आजमा कर देख लिए। पिछले चुनाव में परिसीमन से अलग हुए शहरी क्षेत्र के बाद कांग्रेस ने हुकमाराम पर पुनः दावं लगाया पर पार नहीं पड़ी। यह तो स्थिति तब है जब देवीसिंह के पास विकास के नाम पर डॉ. बीडी कल्ला द्वारा बना रखी जैसी कोई फेहरिस्त भी नहीं है। देवीसिंह भाटी अब तक सार्वजनिक कामों पर नहीं, व्यक्तिगत किये गये कामों के बल पर ही क्षेत्र में अपने सम्बन्ध बनाये हुए हैं। इसी के चलते गाहे-बगाहे न केवल वे अपनी पार्टी को आंख दिखाते हैं बल्कि अलग पार्टी बना चुनाव जीत कर शीशा भी दिखा दिया। देवीसिंह भाटी के इसी माहौल के चलते न केवल उनकी पार्टी में बल्कि कांग्रेस में भी कोलायत क्षेत्र में चुनावी राजनीति करने की कोई नहीं सोचता। देवीसिंह के बाद उनके बनाये इस माहौल की विरासत सम्हालने वाला फिलहाल कोई नहीं दिख रहा। परिसीमन से पहले हुए दो हजार तीन के चुनावों में गोपाल गहलोत ने एक बार जरूर साहस दिखाया था लेकिन परिसीमन बाद फिर पुरानी स्थिति बन गई है।
दोनों ही पार्टियों से कोई संभावनाशील बिश्नोई या राजपूत नवयुवक यदि राजनीति को प्रोफेशन के रूप में अपनाकर कोलायत में उतरे तो भविष्य उसका हो सकता है। क्योंकि यह जाति आधारित राजनीति अभी तो कई चुनाव और चलनी है।
क्रमशः
दीपचंद सांखला
24 मार्च, 2012

No comments: