Thursday, January 10, 2019

पाती भंवरसिंह भाटी के नाम


भंवरसिंहजी!
मुश्किलों को आसान कर सकने की आपकी कूवत के लिए बधाई। यह बधाई 2013 और 2018 के चुनाव जीतने की है। आम जनता की कुछ उम्मीदों पर भी इसी तरह आप अपने को साबित कर पायें, ऐसी मंशा भी आपकी है तो शुभकामनाएं स्वीकारें।
आगे बात करें इससे पहले दूसरी बात कर लेते हैं। टीवी चैनलों पर एनिमल प्लानेट या जंगली जीवन पर ऐसे ही कार्यक्रम देखने वाले इसे जानते-समझते हैं कि जंगल का राजा कहलाने वाले शेर का हश्र एक समय बाद क्या होता हैनयी पीढ़ी द्वारा उसे जंगल से खदेड़ दिया जाता है। बताने का मकसद यही है कि आप बजाय मगरे का शेर बनने के भंवरसिंह बने रहेंगे तो उस हश्र से भी बचे रहेंगे।
प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े विधानसभा क्षेत्रों में से एक कोलायत के वासियों ने आपसे उम्मीदें ज्यादा इसलिए भी पाल रखी होंगी कि अब तक के इनके नुमाइन्दों ने क्षेत्र में समग्रता के हिसाब से कुछ किया ही नहीं।
पार्टी और सूबे की सरकार ने आप पर भरोसा कम नहीं किया है। सूबे की जर्जर होती उच्च शिक्षा की पूरी जिम्मेदारी के साथ राजस्व, उपनिवेशन एवं जल उपयोगिता जैसे महत्त्वपूर्ण महकमों में सहयोगी भी बनाया है।
उच्च शिक्षा की बात करें तो पहले-पहल तो आप कोलायत के महाविद्यालय को सुचारु करेंगे ही, इसे कहने की जरूरत नहीं। उच्च शिक्षा के हिसाब से पूरे राजस्थान के संदर्भ में बात करें तो अच्छे-खासे आधारभूत ढांचे और भारी-भरकम तनख्वाहों के बावजूद सूबे की उच्च शिक्षा में स्थिति न केवल दयनीय है, बल्कि शोचनीय भी है। जनता से वसूले गये राजस्व के दुरुपयोग का यह महकमा बड़ा उदाहरण है। उच्च शिक्षण संस्थानों के इन परिसरों में से अधिकांश में पढऩे-पढ़ाने और खेलकूद का माहौल ही नहीं है। राजस्थान के बड़े कॉलेजों में से एक और बीकानेर के डूंगर कॉलेज के सन्दर्भ से ही बात करें तो समझ में आ जाता है कि 'सफेद हाथीÓ होना क्या होता है। इस तरह के भारी-भरकम संस्थानों को दो से तीन कॉलेजों में बांटना जरूरी है। कभी इसकी कवायद हुई थी लेकिन विचारहीन व कोरे भावुक लोगों के विरोध के चलते वह बंटवारा सिरे नहीं चढ़ पाया। राजस्थान में ऐसे सफेद हाथी कई होंगे। अत: बंटवारे के साथ ही उच्च शिक्षा का पुनर्गठन जरूरी है। अनेक कॉलेजों में ना केवल प्राचार्य के पद खाली पड़े है बल्कि कुछ विषयों में तो लम्बे समय से व्याख्याता ही नहीं हैं। सूबे में सरकारी कॉलेजों में शिक्षा की पुनप्र्रतिष्ठा के लिए जरूरत तो आयोग की है लेकिन एक उच्चस्तरीय समिति बना उससे सुझाव लेकर समूल काम करने की जरूरत है जिसमें शिक्षा के साथ-साथ खेल-कूद को भी पर्याप्त महत्त्व दिया जाये।
कोलायत के कॉलेज को व्यवस्थित करने के साथ ही कुछ ग्रामीण केन्द्र ऐसे भी तय किए जाने चाहिए जहां नये कॉलेज खोले जाने जरूरी हैं। ऐसे ग्रामीण कॉलेजों में पाठ्यक्रम भी स्थानीयता के हिसाब से तय किए जा सकते हैं। इसमें यह भी ध्यान रखा जा सकता है कि ग्रामीण विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए अपने घर से 50 से 70 किलोमीटर दूर नहीं जाना पड़े।
यह महकमा लम्बे समय से बंधे-बंधाए ढर्रे पर चल रहा है। उम्मीद करते हैं कि इसमें अब सकारात्मक आमूल बदलावों के साथ कुछ नवाचार भी देखने को मिलेंगे।
कृषि और जल उपयोगिता संबंधी जिन महकमों में आप सहयोगी हैं, उनसे संबंधित मामलों में कुछ नवाचारों के साथ यह भी उम्मीद करते हैं कि स्वार्थगत और सनक से मुक्त निर्णय करवाने में आप सक्षम होंगे। आपके क्षेत्र और आसपास के इलाकों के संबंध से इसे गजनेर लिफ्ट कैनाल के हश्र से समझ सकते हैं। विस्तारित मूल योजना में आपके पूर्ववर्ती देवीसिंह भाटी ने और पार्टी में आपके वरिष्ठ डॉ. बीडी कल्ला ने हस्तक्षेप किया जिससे गजनेर लिफ्ट कैनाल के मूल लाभान्वितों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है।
इन दोनों दिग्गजों ने इस गजनेर लिफ्ट कैनाल के साथ जो भी किया वह ना तकनीकी तौर पर सही था ना मानवीय आधार पर। भूरासर माइनर की कथा के बारे में आपको बताने की जरूरत नहीं। निहित स्वार्थों के चलते वशीभूत हो मूल योजना में ऐसे परिवर्तन करने को कभी जायज नहीं ठहराया जा सकता। इसी तरह डॉ. कल्ला ने तकनीकी आधार पर खारिज शोभासर जलाशय की योजना जिद करके पूरी करवाई जबकि तकनीकी विशेषज्ञ इसे बीछवाल जलाशय के पास ही बनवाना चाहते थे जिसके कई लाभ भी थे। ऐसे बड़े जलाशय संभव होते मुख्य नहरों के पास ही बनते हैं ना कि वितरिकाओं के पास। शोभासर जलाशय का पानी गजनेर लिफ्ट से कानासर वितरिका के माध्यम से पहुंचता है और इस तरह 52 किमी. पानी को ज्यादा दौड़ाने से लागत ज्यादा आ रही है। छीजत के साथ कानासर वितरिका सिंचित क्षेत्र के किसानों के हिस्से में भी डाका डाल रही है जबकि ये लोग मूल गजनेर लिफ्ट योजना से भूरासर माइनर निकालने की दबंगई से पहले ही पीडि़त थे। शोभासर जलाशय के नीचे जिप्सम की पट्टी होना भी भविष्य में आस-पास की जमीन को दलदली बना देने की आशंका को प्रबल करता है।
खैर! यह सब लिखने का मकसद इतना ही है कि आपको देखना यह है कि इस हो चुके के बावजूद गजनेर लिफ्ट के मूल लाभान्वितों के साथ कितना न्याय कर पाते हैं। ध्यान रखने की बात ज्यादा यह है कि प्रभावशाली लोगों की इस तरह की सनकों और दबंगई से सूबे व क्षेत्र की अन्य कोई योजना आपके रहते प्रभावित ना हो।
कोलायत के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए पांच साल वैसे तो कम हैं लेकिन आप इच्छाशक्ति दिखाएंगे तो संभव भी है। कोलायत उत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ है, उसे पुष्कर तीर्थ जैसी प्रतिष्ठा कैसे हासिल हो, इस पर योजनागत काम होना चाहिए। इस सरोवर में कमल बेल की बड़ी समस्या से स्थाई छुटकारा दिलाने के अलावा इर्द-गिर्द की खनन गतिविधियों पर पुख्ता अंकुश लगाना भी जरूरी है। कोलायत के चारों तरफ जगह-जगह वेस्टेज की जो अकूरडिय़ां खड़ी हैं उनका निपटारा भी जरूरी है, ये इस क्षेत्र रूपी देह में मस्सों की तरह अब भद्दी नजर आने लगी हैं। इस सबके लिए आप क्या कर सकते हैं?
उम्मीद करते हैं-आप अपने कार्यकाल में क्षेत्र के नहीं बल्कि सूबे के पूर्ववर्तियों व वरिष्ठों से कुछ अलग छाप छोड़ेंगे।
दीपचन्द सांखला
10 जनवरी, 2019

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