Friday, January 11, 2019

स्थानीय प्रशासन और गोविंद मेघवाल (6 मार्च, 2012)

किशनलाल मृत्यु प्रकरण को लेकर कलक्ट्री पर आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे गोविन्द मेघवाल ने सामाजिक क्रान्ति मंच की ओर से जिला मुख्यालय के घेराव का आह्वान किया हुआ था। आह्वान के मुताबिक आन्दोलन स्थल पर लोगों की आमदरफ्त हमेशा से ज्यादा थी। सुन यह भी रहे थे कि कुछ सनसनीखेज अंजाम देने के लिए आन्दोलनकारी सम कर आये थे। अगर यह सच है तो अंगुली स्थानीय प्रशासन पर उठती है कि उसकी गुप्तचर एजेंसिया क्या कर रही थी। वह भी तब जब राज्य की विधानसभा चल रही हो। सामान्यतः देखा गया है कि विधानसभा के सत्र के दौरान स्थानीय प्रशासन बीकानेर में हुई कल जैसी बल प्रयोग की कार्रवाईयों से बचता है। लेकिन बीकानेर में कल हुई यह बदमजगी स्थानीय प्रशासन की असफलता तो दर्शा रही है। बचाव में यह कहा जा सकता है कि जिले की पुलिस के पास स्थाई कप्तान नहीं है। लेकिन केवल इस बिना पर प्रशासन को कल की घटना के लिए छूट नहीं दी जा सकती है।
अब बात कर सकते हैं सामाजिक क्रांति मंच के मुखिया और दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक महासभा के ‘मास्टर माइन्ड’ गोविन्द मेघवाल की। गोविन्द मेघवाल को पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने खाजूवाला (सु) से टिकट नहीं दिया तो उन्होंने बगावत कर मंच बनाया और चुनाव लड़ा। यद्यपि वे चुनाव हार गये लेकिन उनकी हार भी सम्मानजनक थी। इस सम्मानजनक हार के चलते ही वह अपने विधानसभा क्षेत्र में लगातार सक्रियता बनाये हुए हैं और यह भी कि संभवतः अगले चुनाव तक वह अपनी स्थिति और बेहतर बनाने में सफल होंगे।
किशनलाल प्रकरण पर उनकी पूरी भूमिका इसी के मद्देनजर देखी जानी चाहिए। आजकल की राजनीति जिस मुकाम पर है उसके हिसाब से तो गोविन्द मेघवाल सही चल रहे हैं। लेकिन केवल इसलिए उनके कदमों की समीक्षा व्यापक हितों और राजनीतिक मूल्यों के आधार पर न करें, उचित नहीं होगा।
किशनलाल प्रकरण पर उनकी मांग के अनुसार सरकार ने जांच सीआइडी को सौंप दी है। गोविन्द मेघवाल के लिए इसमें एक अनुकूलता यह भी है कि जांच अधिकारी अशोक राठौड़ हैं। गोविन्द मेेघवाल के अशोक राठौड़ के साथ निजी सम्बन्धों के चलते राठौड़ की जांच पर मेघवाल को कोई संशय होना नहीं चाहिए लेकिन इसके बावजूद अपने समर्थकों के साथ धरने, क्रमिक अनशन और घेराव के साथ कलक्ट्री पर उनका जमे रहना प्रश्न खड़े करता है। क्या गोविन्द मेघवाल पर्याप्त सुर्खियां बटोरने के लिए कल हुई बदमजगी का ही इन्तजार कर रहे थे?                                     
                                              -- दीपचंद सांखला
6 मार्च, 2012

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