सत्ता-राजनीति की बात ऋतु-चक्र के हवाले से करें तो अपने देश-प्रदेश में यह
चक्र पांच वर्षों का है और उसमें भी राजस्थान का चुनावी-चतुर्मास लगभग 18 महीनों का। विधानसभा चुनाव से शुरू हो
जाने वाला यह मौसम लोकसभा, पंचायतों,
जिला परिषदों और स्थानीय निकायों के चुनावों सहित डेढ़ वर्ष चलता ही है। विधानसभा चुनावों की गर्माहट से निपटे तो लोकसभा
चुनावों की झिरमिर शुरू हो गई। केन्द्र में और अब तक सूबे में राज भोग रही भाजपा
जहां अभी ताजा हार से उबरने की कोशिश में ही है वहीं सूबे की सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस लोकसभा
चुनावों की तैयारी में लग गई है। प्रदेश कांग्रेस संगठन की कमान सचिन पायलट के हाथ
भले ही हो लेकिन चुनावी घोड़े दौड़ाते व्यावहारिक राजनीति के शातिर अशोक गहलोत नजर
आ रहे हैं। मुख्यमंत्री का पद संभालते ही जहां वे शासन-प्रशासन को दौड़ाते दिखे,
वहीं इस व्यस्तता में भी गहलोत संगठन को चेतन
रखने से भी नहीं चूक रहे।
शासन संभाले महीना होने से पहले ही लोकसभा चुनाव की तैयारी में लग कर अशोक
गहलोत ने एक अच्छे संगठनकर्ता होने की एक बानगी और दे दी है। प्रदेश के विभिन्न
लोकसभा क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की अलग-अलग बैठकें लेकर
उन्होंने फीडबैक लेना शुरू कर दिया है। इन बैठकों में अशोक गहलोत ने अपने
इर्द-गिर्द प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे के साथ-साथ
क्षेत्रीय क्षत्रपों को भी बिठाकर बखूबी अहसास करवा दिया कि राजस्थान में कांग्रेस
की आकाशगंगा में कौन किस स्थिति में है।
बात अब बीकानेर लोकसभा क्षेत्र की कर लेते हैं। भाजपा से शुरू करें तो वर्तमान
सांसद और केन्द्रीय राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल की उम्मीदवारी बावजूद देवीसिंह
भाटी की चुनौती के सुरक्षित है। एक तो पार्टी में अर्जुनराम के लिए किसी अन्य
दावेदार ने चुनौती देने जैसी हैसियत अभी तक नहीं बनायी है। इधर खुद देवीसिंह की
हैसियत 2003-04 वाली तो दूर की
बात 2013 में खुद—2018 में पुत्रवधू के हार जाने और पार्टी वरिष्ठों
के साथ अपने व्यवहार के चलते उनके रुतबे की गत ऐसी हो ली कि पार्टी हाइकमान में भी अब
उनकी सुनी जाएगी, नहीं लगता। हां,
देवीसिंह भाटी मेघवाल की हार में कुछ योगदान
जरूर दे सकते हैं यदि वे हार रहे हैं तो! कुल जमा बात यही कि हराना-जीतना तो जनमत
के अधीन है लेकिन बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से अर्जुनराम मेघवाल की भाजपा से
उम्मीदवारी को लेकर संशय नहीं लगता। इतनी चतुराई तो मेघवाल भी बरत रहे हैं कि कुल
जमा दो जनों की हो चुकी भाजपा हाइकमान—नरेन्द्र मोदी और अमित शाह दोनों के वे अन्दर तक घुस लिए हैं।
बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में उम्मीदवारी का असल पेच है तो वह कांग्रेस के लिए
है। उसमें कुछ राहत इस बात की है कि क्षेत्र के स्वयंभू क्षत्रप रामेश्वर डूडी ने
अपना रुतबा अपनी ही कारगुजारियों से कम कर लिया जिसके चलते आगामी लोकसभा चुनाव में
अपनी बात डूडी खम ठोककर मनवा पाएंगे—ऐसा दम उनका अब लग नहीं रहा। हालांकि डूडी अपने लाभ के लिए उम्मीदवारी का
लॉलीपोप दिखा कर लगातार इधर-उधर जाकर अप्रासंगिक हो चुके रेवंतराम को पार्टी में
चाहे ले आए हों, डूडी उनके टिकट
के लिए कुछ कर पाएंगे भी, नहीं लगता।
भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे मदनलाल मेघवाल को भी डूडी ने खाजूवाला से
उम्मीदवारी दिला देने का आश्वासन जता समयपूर्व सेवानिवृत्ति दिलवा दी थी। मदन मेघवाल को खाजूवाला से टिकट जब नहीं दिलवा
पाये तो आश्वस्त किया कि बीकानेर क्षेत्र से लोकसभा की उम्मीदवारी दिलवा देंगे।
देखना यही है कि डूडी रेंवतराम और मदन मेघवाल में से किसके लिए कोशिश करेंगे।
कांग्रेस से एक उम्मीदवार शंकर पन्नू भी पुन: हो सकते हैं लेकिन ज्यादा मुफीद उनके
लिए गंगानगर लोकसभा क्षेत्र ही रहेगा।
बीकानेर में कांग्रेस से उम्मीदवार कौन हो सकता है? इसकी भूमिका पिछले विधानसभा चुनावों में ही बन चुकी।
रामेश्वर डूडी ने जिले की टिकटों के वितरण में जिस तरह हस्तक्षेप किया और मतदान
पूर्व जो कारस्तानियां की उसके चलते वे ना केवल जिले में अकेले पड़ गये बल्कि
लोकसभा क्षेत्र के आठवें विधानसभा क्षेत्र अनूपगढ़ से कांग्रेसी उम्मीदवार रहे
कुलदीप इन्दौरा भी उनके साथ नहीं हैंं। 21 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव हारने के बावजूद कुलदीप इन्दौरा बीकानेर से
लोकसभा के टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। हाल ही में जयपुर में मुख्यमंत्री,
प्रदेश अध्यक्ष और पार्टी प्रभारी की उपस्थिति
में जो बैठक हुई उसमें क्षेत्र के कुल आठ में से दो विधानसभाई क्षेत्रों से रहे
कांग्रेसी प्रत्याशियों ने आश्चर्यजनक ढंग से गोविन्द मेघवाल की उम्मीदवारी का
पक्ष लिया है। ऐसे में पार्टी के लिए किसी अन्य को उम्मीदवार बनाना मुश्किल होगा—चाहे इसके लिए खाजूवाला में उपचुनाव ही क्यों
ना करवाना पड़े क्योंकि गोविन्द मेघवाल वर्तमान में खाजूवाला से विधायक हैं,
उन्होंने वहां लोकसभा क्षेत्र की आठों विधानसभा
क्षेत्रों में से सर्वाधिक 31 हजार वोटों से
अपनी जीत दर्ज की है। गोविन्द मेघवाल को उम्मीदवारी देने में कोई रणनीतिक अड़चन आए
तो उनकी बेटी सरिता चौहान उम्मीदवार हो सकती है। सरिता चौहान ना केवल
खाजूवाला पंचायत समिति की प्रधान हैं बल्कि पूरे खाजूवाला विधानसभा क्षेत्र में
अपने पिता के साथ सक्रिय भी रहती हैं। कांग्रेस यदि महिला उम्मीदवारी का कोटा तय
करती है तो उस स्थिति में भी सरिता को प्राथमिकता मिल सकती है।
अंत में बात रामेश्वर डूडी की फिर कर लेते हैं। ऐसा सुनते हैं कि डूडी चूरू
लोकसभा सीट से उम्मीदवारी पाने की कोशिश में लगे हैं। संबंधों को परोटने में डूडी
का जो तरीका रहा है, उसके चलते चूरू
तो क्या प्रदेश के किसी भी लोकसभा क्षेत्र में डूडी की दाल गलती नहीं लग रही है, चूरू में तो हरगिज नहीं। चूरू के प्रभावी जाट नेता नरेन्द्र बुडानिया की हाइकमान
तक अंतरंग पहुंच है और जहां तक हो जिसे वे चाहेंगे, संभाग के इस दूसरे जाट प्रभावी क्षेत्र से उम्मीदवारी भी
उसी को हासिल होगी।
—दीपचन्द सांखला
24 जनवरी, 2019
No comments:
Post a Comment