बीते चार वर्षों से देश अजब अनर्गलताओं से गुजर रहा है। इससे पूर्व जब केन्द्र
में कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकारें रहीं तब यही लग
रहा था कि देश में या तो घोटाले हो रहे हैं या बलात्कार। लगातार बढ़ती महंगाई से
जनता में रोष व्याप्त हो रहा था। तब लगभग तय हो गया था कि यह सरकार तो वापस नहीं
आनी, वही हुआ। संप्रग सरकार के
खिलाफ आक्रोश बढ़ाने में संघानुगामियों ने अन्ना हजारे जैसे डाफाचूक का ओर योगधंधी
रामदेव व धर्मधंधी रविशंकर जैसों का भरपूर उपयोग किया। इस बीच दूसरे विकल्प के तौर
पर भारतीय जनता पार्टी ही थी जो उस समय सुन्नपात में थी और आत्मविश्वासहीन भी।
भाजपा की ऐसी परिस्थितियों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और
उनके सर्किट अमित शाह ने धनबल के आधार पर योजनाबद्ध तरीके से पूरी पार्टी का अपहरण
कर लिया। लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी
जैसे वरिष्ठ नेता हक्का-बक्का रह गये तो सुषमा स्वराज और राजनाथसिंह जैसे दूसरी
लाइन के नेता मोदी-शाह के चंवर डुलाने लगे। चुनाव हुए, अप्रत्याशित तौर पर स्पष्ट बहुमत के साथ नाम मात्र के राजग
गठबंधन के बैनर से भाजपा सत्ता में आ गई।
मोदी सरकार के पांच वर्ष बीतते न बीतते उपलब्ध्यिां गिनें तो बलात्कारों की
दरों में कोई कमी नहीं आयी, संप्रग सरकार के
सभी घोटाले ना केवल काफूर हो लिए बल्कि खुद कांग्रेसनीत राज में उनके जो मंत्री
घोटालों में अन्दर हुए थे, एक-एक कर सभी
बाहर आ लिए। महंगाई का बढऩा लगातार जारी है। जिन मुद्दों पर नरेन्द्र मोदी ने 2013-14 का चुनाव लड़ा उन पर कोई सत्ताधारी अब बात तक
नहीं करना चाहता। भ्रष्टाचार का इंवेट हो लिए चुनाव पहले से ज्यादा खर्चीले हो
गये। चुनावी खर्च, पार्टी और उसके
नेताओं के खर्चे उठाने के लिए कांग्रेस और अन्य पार्टियां जिन भ्रष्ट तौर-तरीकों
से पैसे जमा करती थी, मोदी-शाह ने उसका
तरीका बदल लिया। उन्हें लगा कि इस नये तरीके से बदनाम कम होंगे। बदले तरीके में
कुछ घराने तय कर लिए कि पार्टी के चुनावी और नेताओं के खर्चें यही घराने उठायेंगे-बदले
में उनके लिए लूट के सभी दरवाजे खोल दिए गए। यह तरीका मोदी ना केवल गुजरात में
कारगर तौर से आजमा चुके थे बल्कि प्रमोद महाजन की असमय मृत्यु के बाद पार्टी के
केन्द्रीय संगठन से संबंधित सभी खर्चों की पूर्ति वे इसी तरह से करवाने लगे।
अंबानी-अडानी जैसे बड़े समूहों से लेकर मेहुल, नीरव मोदी जैसे छुटभैयों को इसी के मद्देनजर परोटा जाने लगा
है। प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी की अब तक की विदेश यात्राएं देश के लिए कम और इन
घरानों के लिए ज्यादा हुई हैं।
मोदी की बड़ी कमजोरी अधिनायकवादी तरीके से राज करने की रही है। गुजरात में
विपक्ष और तटस्थ मीडिया की लगभग समाप्ति के बाद उन्होंने वहां निर्बाध राज चलाया।
दिल्ली के राज को वे उस तरह मैनेज नहीं कर पाये जिस तरह गुजरात में कर लिया करते
थे। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते उन्होंने प्रगति के सभी मानकों और आंकड़ों में 7 से 14 वें नम्बर पर रहने वाले अपने प्रदेश का गुजरात मॉडल के नाम पर ढिंढोरा ऐसे
पिटवाया कि वह सभी प्रदेशों में सिरमौर है। मोदी को जब यह समझ आ जायेगा कि भारत
जैसे देश को चलाना गुजरात को हांकने जैसा नहीं है, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
कहने को मोदी राज के बड़े घोटाले सामने नहीं आ रहे, क्योंकि उन्हें पुराने तरीके से अंजाम नहीं दिया जा रहा।
रफाल की खरीद और कृषि व स्वास्थ्य बीमा जैसी भारी गड़बडिय़ां हैं। लेकिन इनके चौड़े
आने के सभी रास्ते इस राज में बन्द कर दिये गये हैं। आरटीआइ के जवाब नहीं दिये जा
रहे है। वहीं महालेखा परीक्षक (CAG) और संसदीय समितियों को कुछ करने जैसा
छोड़ा ही नहीं हैं। जबकि ऐसे ही माध्यमों से संप्रग सरकार की गड़बडिय़ां सामने लाईं
गई थी।
कोढ़ में खाज यह कि नोटबंदी और अनाड़ीपने से जीएसटी लागू करने जैसी मुर्खताओं
से देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया गया। मोदी सरकार अपनी अक्षमताओं
को बीते 70 वर्ष की जो आड़ देती रही
उसकी पोल भी धीरे-धीरे सामने आने लगी है। रिजर्व बैंक ने हाल ही में बताया है कि
संप्रग-2 सरकार के मुकाबले मोदी
राज में बैंक घोटाले तीन गुना बढ़े हैं, विकास दर बताने में जो घपले किये जा रहे हैं वह अलग है।
चार वर्षों बाद भी स्मार्ट सिटी, आदर्श गांव, उज्ज्वला योजना,
मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, स्टार्टअप आदि-आदि या तो धरातल पर कहीं दीख नहीं रहे हैं या
दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। इनके बजट का आधे से ज्यादा खर्च तो इनके विज्ञापनों पर
ही लगा दिया गया।
भ्रष्टाचार कम होने का ढिंढोरा सबसे ज्यादा पीटा जा रहा है। जबकि इस राज में
रिश्वत की दरें पिछले राज से तीन से चार गुना बढ़ी हैं, आम आदमी का वास्ता तो इसी से पड़ता है। 2 करोड़ युवाओं को प्रतिवर्ष रोजगार देने का
वादा था, पर 30 लाख रोजगार भी प्रतिवर्ष यह सरकार नहीं दे
पायी है। झूठे आंकड़ों से भरमाने के अलावा प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के मंत्री
कुछ कर नहीं पा रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री विलासिता का जीवन जीने के अलावा क्या
करते हैं, समझ से परे है।
उक्त सबके अलावा संघानुगामियों द्वारा फैलाई जाती रही गलत धारणाएं इस राज में
विस्फोटक होने लगी। राजग की सरकारें पहले भी रही हैं लेकिन ऐसी स्थितियां पहले कभी
नहीं आयी। मुस्लिम समुदाय के खिलाफ एक शताब्दी से घोले जा रहे जहर के दुष्परिणाम
सामने आने लगे। गाय के नाम पर मनुष्यों की हत्याएं होने लगी। संघ-विचार और मोदी के
खिलाफ बोलने वाले को बर्दाश्त नहीं किया जाता, असहिष्णुता चरम पर है। किसानों व सेवानिवृत्त सैनिकों को
केवल लॉलीपॉप थमाये जा रहे हैं। अच्छे दिनों के नाम पर शासन में आने वाले खुद इस
जुमले से अब बचने लगे हैं। जुमले की बात आई तो प्रत्येक भारतीय के खाते में 15 लाख आने के आश्वासन को खुद अमित शाह जुमला बता
चुके हैं। पाकिस्तान-चीन की छोडिय़े यहां तो नेपाल, म्यंमार, मालदीप जैसे छोटे
पड़ोसी देश भी आंखें दिखाने और मुंह मोडऩे लगे हैं। सीबीआइ, प्रवर्तन निदेशालय और इनकम टैक्स जैसे विभागों का उपयोग
विरोधियों की नकेल कसने में किया जा रहा है।
देश की जनता इतनी भोली है कि वह आजादी के सत्तर वर्षों बाद भी नेताओं के
भरमाने में आ जाती है। कांग्रेस का भरमाना लो-पिच का भरमाना था, मोदी-शाह हाइ-पिच पर भरमाते हैं, जनता है कि इनकी बातों में आ लेती है। ऐसा जब
तक चलेगा, ये नेता नहीं सुधरेंगे-फिर
वह चाहे किसी भी पार्टी का हो।
समय आ गया है कि भाजपा के संजीदा नेताओं को मुखर होना चाहिए, पार्टी की साख और देश के सौहार्द को बचाना
ज्यादा जरूरी है। मोदी और शाह को शासन और पार्टी से बेदखल करने की जुगत बिठानी
चाहिए, अन्यथा ये दोनों दीमक की
तरह पार्टी और देश को पूरी तरह जर्जर करने से नहीं चूकेंगे।
पाकिस्तान, अफगानिस्तान,
सीरिया आदि के वर्तमान हालात कट्टरपंथ और
तानाशाही के चलते ही हुए। क्या भारत को भी हम वैसा ही देखना चाहते हैं?
—दीपचन्द सांखला
07 फरवरी, 2019
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