Thursday, July 13, 2023

ये दुर्घटनाएं

 तीसे'क वर्ष पहले एक फिल्म आई थी हादसा। तब कहलाए जाने वाले खान-बन्धुओं-फिरोज, संजय और अकबर खान में से अकबर की यह फिल्म थी— इसका एक गाना उस समय काफी सुनने को मिलता था— 'बॉम्बे शहर हादसों का शहर है..........यहां रोज-रोज हर मोड़-मोड़ पे होता है कोई न कोई हादसा.....हादसा।

एक अरसे से सुबह का अखबार पढ़ते यह गाना अकसर याद आ जाता है। लगता है हमारा यह जिला भी हादसों का जिला हो गया है। अभी कल ही दो सड़क हादसों में आठ जानें चली गयीं। हादसों के कारणों पर बातचीत करते समय जो बातें सुनने को मिलती है उनमें यह भी है कि वाहन बहुत बढ़ गये हैं, लोग जल्दबाज हो गये हैं या ट्रैफिक नियमों का पालन वगैरह नहीं होता है। कारण तो मोटामोट यही देखने में आते हैं लेकिन ऐसा हो क्यों रहा है? इस पर हम गौर करें तो जानने में आता है कि तकनीक के आने से हमारी जीवन-शैली में जो व्यापक बदलाव आये हैं, उसके पूरी तरह समायोजित होने से पहले ही तकनीक को अपना लेना हो सकता है। बिना डिवाइडर की सड़कें, जिन पर किसी व्यक्ति या जानवर के सड़क पर आने की आशंका बनी रहती है, ऐसी सड़कों पर वाहनों को अनियंत्रित रफ्तार से चलाना दुर्घटनाओं को न्योतना है। बिना डिवाइडर की सड़कों पर अधीर हो कर ओवरटेक करना और रात्रि में नियमानुसार डिपर का प्रयोग न करना भी हादसों का एक बड़ा कारण है। वाहनों का अनधिकृत उपयोग जैसे कि सवारी गाडिय़ों में माल ढोना, माल ढोने की गाडिय़ों में सवारी ढोना भी कारण है। हमारे देश में इन राजमार्गों पर जब तक दोनों ओर जालियां नहीं लग जाती हैं, तब तक सड़कों पर 80-100 किमी. प्रति घंटा की रफ्तार से ज्यादा चलाने की वाहन चालकों को इजाजत नहीं दी जानी चाहिए अन्यथा जैसा कि ऊपर बताया गया है कि यहां की सड़कों पर बच्चे-बड़े या जानवर अचानक कभी भी आ जाते हैं, ऐसी स्थिति में तेज रफ्तार पर तत्काल लगाम लगाना लगभग असंभव होता है।

अलावा इसके ड्राइविंग लाइसेंस जारी करते समय मानकों का शायद ही कभी कड़ाई से पालन होता है— दूसरा, आजकल गाडिय़ों को अंधाधुंध चलाने वालों को यदि टोका या पकड़ा भी जाय तो वह टोकने वाले के कान काटने को उतारू रहते हैं। और पकड़े जाने पर कोई ना कोई 'आका' उन्हें छुड़वा देता है। आका नहीं भी हो तो आम हुए भ्रष्टाचार के चलते ले-देकर कुछ भी संभव किया जाने लगा है।

संवेदना की बात करना समय से बाहर की बात हो गई है। हमारी लापरवाही से किसी परिवार का ताना-बाना बिखर सकता है या बिखर गया, यह हमें राई-रत्ती भी परेशान नहीं करता। यहां तक कि खुद पर बीत जाने पर भी हम सबक नहीं लेते हैं।

कुल मिलाकर संवेदनाएं तो दूर, हममें किसी भी काम के लिए अब धीरज भी नहीं बचा है। खाने को फास्ट फूड चाहिए, चलाने को फास्ट गाड़ी चाहिए, और कुछ भी करवाने को फास्ट आका या धन जिसे लिक्विड मनी कहते हैं—चाहिए। लिक्विड मनी को ढलान की जरूरत होती है, फिर वह रास्ता खुद-ब-खुद बना लेती है और यदि इस लिक्विड मनी अवैध हो तो यह बेलगाम होते भी देर नहीं लगाती, फिर यह ठीक वैसे ही विनाश करती है, जैसे बाढ़ आई नदी करती है।

दीपचन्द सांखला

9 अप्रेल, 2012

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