Thursday, July 27, 2023

जिन की नुमाइंदगी कर रहे हो– उनका तो लिहाज करें

 बीकानेर के सम्भागीय आयुक्त ने कल शहर की यातायात व्यवस्था पर समीक्षात्मक बैठक ली। बैठक में जिला कलक्टर, पुलिस अधीक्षक, सीओ सिटी, एडीएम सिटी और आरटीओ सहित सरकारी अधिकारी और कुछ व्यापारिक नुमाइन्दे आमन्त्रित थे। आमन्त्रित व्यापारिक नुमाइन्दों में से केवल दो ही पहुंच पाए-जिला उद्योग संघ के राजाराम सारडा और राजस्थान उद्योग मण्डल के सम्भागीय अध्यक्ष सुभाष मित्तल। बैठक में जो भी निर्णय हुए उसकी सूचना सरकारी प्रेस नोट के मध्यम से मीडिया तक पहुंचा दी गई-मीडिया द्वारा इस प्रेस नोट को फोटो सहित पर्याप्त स्थान दिया गया जो आज के अखबारों में आम अखबारी पाठक के अवलोकनार्थ-पठनार्थ उपलब्ध था।

प्रेस नोट की भाषा और फोटो दोनों से साफ-साफ पता लगता है कि यह बैठक सम्भागीय आयुक्त के सामान्य कार्यक्रमों के तहत मात्र औपचारिक बैठक थी। इस बैठक में उल्लेखनीय कुछ हुआ हो ऐसा प्रेस नोट से प्रतीत नहीं होता है-इस तरह बहुत-सी बैठकें किसी किसी आला अधिकारी के सामान्य कार्यक्रमों में रोजाना होती ही हैं और प्रेस नोट भी जारी होते हैं।

आपकी उत्सुकता यह हो सकती है कि फिर कल की बैठक में ऐसा क्या हो गया कि उस पर एक सम्पादकीय न्योछावर कर दिया जाय। अखबारों में छपे इस बैठक के फोटो को देखें-सभी अधिकारी सम्भागीय आयुक्त की टेबल  से सटी कुर्सियों पर बैठे हैं और व्यापारिक समूहों के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष पीछे लगी कुर्सियों में बैक बेंचर्स के रूप में बैठे हैं। होना तो यह चाहिए था यदि सचमुच किसी मुद्दे पर गम्भीर बैठक हो रही है तो सभी को गोल टेबल पर समान हैसियत के साथ बैठाया जाना चाहिए था। कई बार ऐसा संभव नहीं भी हो तो कम से कम यह व्यवस्था तो की ही जा सकती थी कि व्यापार समूहों के आमन्त्रित नुमाइन्दों को अधिकारी आगन्तुकों के समान बिठाया जाता। यह बात केवल उनके सम्मान की नहीं है। उच्च अधिकारियों का इस तरह का व्यवहार उनकी इस मंशा को भी जाहिर करता है कि वे इन नुमाइन्दों को कितना गिनते हैं।

मित्तल-सारडा का तो पता नहीं पर आजकल हो यह रहा है कि विभिन्न जनसमूहों के कुछ नुमाइन्दे-नुमाइन्दगी कम करते हैं और इन पदों और उससे बनी हैसियत के माध्यम से अपने  व्यक्तिगत हितों को साधने का काम ज्यादा करते हैं-चूंकि यह उच्च अधिकारी ऐसे नुमाइन्दो के माजने से वाकिफ होते हैं तभी उनके साथ इस तरह के दोयम दर्जे का व्यवहार करने की छूट ले लेते हैं। अन्यथा सुभाष मित्तल और राजाराम सारडा की कोई कानूनी बाध्यता नहीं थी के वे वहां ऐसी अपमानजनक दोयम हैसियत में भी बैठे रहते। ये दोनों भूल गये कि वे वहां व्यक्तिगत हैसियत से नहीं बल्कि बड़े-बड़े व्यापारिक समूहों के नुमाइन्दों की हैसियत से गये थे। इन्हें अपने सम्मान का खयाल भी हो पर ये उनके सम्मान का खयाल तो करते जिनकी नुमाइन्दगी के बतौर वे आमन्त्रित थे। यह अधिकारी इन नुमाइन्दों को आमन्त्रित कर अहसान नहीं करते हैं-अन्यथा अकसर होनी वाली कई तरह की सरकारी बैठकों में जिनमें नागरिक नुमाइन्दों को बुलाना जरूरी नहीं होता, उनमें ये नागरिक नुमाइन्दों को कभी बुलाते तो नहीं है।

दीपचन्द सांखला

27 सितम्बर, 2012


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