Friday, July 21, 2023

चेतन होते कल्ला, चुंधियाये अधिकारी और बगला विपक्ष

 इस घोर कलिकाल में हाजी मकसूद अहमद को दाद देनी चाहिए कि वे नुगरै नहीं निकले। हाजी मकसूद नगर विकास न्यास अध्यक्ष क्या बने कि डॉ. कल्ला की छवि को प्राणशक्ति मिल गई। ....इस उल्लेख का मकसद नजर लगाना नहीं बल्कि हाजी मकसूद को इसका पूरा श्रेय देना है, राज्य वित्त आयोग की अध्यक्षी को नहीं। —25 जनवरी, 2012

'चेतन होते कल्ला' शीर्षक से विनायक के 25 जनवरी, 2012 को प्रकाशित इस सम्पादकीय का स्मरण कल फिर हो आया। अवसर था शहर के सैटेलाइट अस्पताल में एक साथ हुए दो शिलान्यासों और लोकार्पण कार्यक्रम का। इस सैटेलाइट अस्पताल में एक कॉटेज यूआईटी ने बनवाया है, सेमिनार हॉल यूआइटी बनवायेगी, जिसका शिलान्यास भी कल हुआ है और राजस्थान हेल्थ सिस्टम डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तहत बनने वाले 'सीसीयू वार्ड' का शिलान्यास भी कल के आयोजन में शामिल था। शहरवासियों के लिए बढ़ने वाली इन जन सुविधाओं का राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष द्वारा लोकार्पण और शिलान्यास पर सभी को प्रसन्नता हो सकती है, है भी।

लेकिन यह आयोजन आज की बात का हेतु इसलिए बन रहा है कि 'चेतन होते कल्ला' से हाजी मकसूद चुंधियाएं तो समझ में आता है लेकिन प्रमुख चिकित्सा अधिकारी और यूआईटी सचिव यदि चुंधिया जाएं तो चिन्ताजनक है। शिलान्यास और लोकार्पण के शिलालेखों पर शहर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जनार्दन कल्ला का नाम होना समझ से परे है।

यूआइटी में सचिव की यह जिम्मेदारी है कि यदि अध्यक्ष चुंधियाए तो तुरत आगाह करना चाहिए-लेकिन लगता है वर्तमान समय में आगाह करना, टोकना-बरजना सभी ने छोड़ दिया है। यहां तक कि विरोधी दलों के नेताओं ने भी, जिनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे इस तरह की बातों का विरोध करें। लेकिन एक अरसे से देखा जा रहा है यह पक्ष-विपक्ष सभी नूरा-कुश्ती में मशगूल हैं और तमाशबीन बनी जनता इसे देखने को मजबूर! यह विपक्षी नेता या तो तब बोलते हैं जब उनका कोई अहित हो रहा हो या दूसरा पक्ष उसका हित सधने पर मौन रह कर या आंख मूद कर सहयोग न कर रहा हो-या फिर ये तब बोलते हैं जब दोनों पक्षों के हित टकरा रहे हों या अहम्। वैसे हमारे शहर में नाक तो कई नेताओं की आपस में अड़ी रहती है। शायद देवीसिंह का कल का धरना भी नाक अडऩे की ही उपज हो।

खैर! बात पर लौटते हैं। यूआइटी ने कॉटेज पर धन लगाया वह सार्वजनिक या सरकारी धन है। यूआइटी सेमिनार हॉल जिस धन से बनवायेगी वह भी सार्वजनिक धन है। राजस्थान सरकार का चिकित्सा, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग अपने राजस्थान हेल्थ सिस्टम डेवलपमेन्ट प्रोजेक्ट के अंतर्गत सीसीयू वार्ड बनवायेगा वह भी सार्वजनिक धन से बनेगा-तब इन शिलालेखों पर जनार्दन कल्ला का नाम किस हैसियत से है...समझ से परे है! क्या यूआइटी सचिव और सैटेलाइट अस्पताल के प्रमुख चिकित्साधिकारी से पूछने वाला कोई नहीं है? विपक्षी नेता तो नहीं पूछेंगे-क्योंकि आजकल शायद सबकी नाड़, दूसरे की अंगुलियों से दबी रहती है!!

—दीपचन्द सांखला

10 जुलाई, 2012

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