Thursday, July 13, 2023

पुलिस के सिपाही पर ज्यादती

 परसों बुधवार की घटना है, म्यूजियम तिराहे पर होमगार्ड का एक सिपाही ड्यूटी पर था। जीप चलाते मोबाइल पर बात करते हुए एक चालक को जब उसने टोका तो इतना नागवार लगा कि उसने होमगार्ड के जवान की केवल पिटाई की बल्कि उसके कान को चबा कर लहूलुहान भी कर दिया। इससे भी जीप चालक की हेकड़ी संतुष्ट नहीं हुई, वह सरिया लेकर सबक सिखाने को आतुर हो गया ताकि  होमगार्ड का जवान भविष्य में किसी के साथ भी इस तरह ड्यूटी ना करे।

9 फरवरी को सादुलसिंह सर्किल का एक दृश्य। इसी दिन यातायात पुलिस ने महात्मा गांधी रोड पर सादुलसिंह सर्किल तक इकतरफे यातायात की नई व्यवस्था लागू की। यातायात निरीक्षक (टीआई) स्वयं सर्किल पर तैनात थे। बावजूद इसके एक ऑटोचालक ने व्यवस्था के उल्लंघन की जुर्रत की। जब टीआई ने उस पर कार्यवाही के आदेश दिये तो ऑटोचालक का दुस्साहस देखिए कि उसने अपने किसी निर्भयकर्ता 'आका' को मोबाइल लगा टी आई को कहा, 'लो, बात करो।'

एक और घटना का जिक्र करना जरूरी है। लगभग एक वर्ष पहले की बात है, तौलियासर भैरूं मन्दिर चौराहे पर तब ऑटोरिक्शा अनधिकृत और बेतरतीब खड़े रहा करते थे, किसी की भी नहीं सुनते थे। ट्रैफिक पुलिस ने एक महिला सिपाही की वहां ड्यूटी लगा दी यह जानते हुए भी कि यहां के ऑटोरिक्शा वाले पुरुष कांस्टेबिल के भी ताबे नहीं आते हैं। वह महिला सिपाही दो-तीन दिन में ही इन ऑटोरिक्शा वालों से इतनी कुंठित हुई कि एक ऑटोरिक्शा के कांच (विंड स्क्रीन) पर डंडा दे मारा। कांच टूट गया। हालांकि महिला सिपाही की यह कार्यवाही गलत थी लेकिन ऑटोरिक्शा वाला भी क्या सही था? ऑटोरिक्शा वालों को यह कैसे बर्दाश्त होता, वे तो पुरुष सिपाहियों को भी दिन में कई-कई बार आईना दिखाते रहते हैं तब एक महिला सिपाही को इस तरह कैसे बर्दाश्त करते-हड़ताल कर दी-उस समय के पुलिस अधीक्षक ने भी खुद को बिना रीढ़ का होने का प्रमाण दिया-उस महिला सिपाही से उस ऑटोरिक्शा वाले से रू-बरू माफी मंगवाई। पुलिस अधीक्षक ने वस्तुस्थिति जानते हुए भी ऐसा करवाया जो उस महिला सिपाही के लिए ही नहीं पूरे पुलिस महकमे के लिए शर्मनाक था। ऐसी परिस्थितियों में इन पुलिस वालों से हम खरी उम्मीदें कैसे कर सकते हैं!

इन तीन घटनाओं का उल्लेख यहां यह बताने के लिए किया गया है कि पूरे पुलिस महकमे को ऐसे विभिन्न सत्तारूपों ने किस तरह से पंगु बना दिया है-यह सत्तारूप नेताओं के रूप में, यूनियनों के रूप में और अब तो एक और सत्तारूप शालीनता से आवृत पत्रकारों की हमारी जमात का भी है। हमारे पत्रकार भी सिपाहियों से मोबाइल पर किसी को छोडऩे का आग्रह करते देखे जा सकते हैं-पर पत्रकारों का स्वर अभी शालीन होता है। नेताओं के स्वर में अकसर जो हेकड़ी देखी जाती है-वह पत्रकारों में अभी नहीं आई है। यानी जिस किसी के पास भी किसी पावर का दावं है, उसे लगाने से वह नहीं चूकता।

उस जीप चालक को किसी अपने 'आका' का जोम था तभी उसने उस होमगार्ड को सबक सिखाने की ठानी। अब उस होमगार्ड को पुलिस से और अपने होमगार्ड के साथियों से यह नसीहत दी जा रही होगी कि ड्यूटी पर चुपचाप खड़े क्यों नहीं रहते हो-किसी से उलझना जरूरी है क्या?

9 फरवरी की घटना में उस ऑटोचालक को उसके आका ने नसीहत दी होगी कि सिपाहियों को तो मेरे फोन का डर दिखा दिया कर-अफसरों को नहीं।

अपराधी या अनियमितता करने वाले के जिस किसी के पास दावं बड़ा होता है वह अपनी पावली चला ले जाता है-लेकिन मदेरणा, मलखान, राठौड़, एडीजे एके जैन, आईजी पोन्नूचामी, एएसपी अरशद को सीखचों के पीछे देखकर इतना तो समझ ही लेना चाहिए कि न्याय के घर देर भले ही हो अंधेर नहीं है। जरूरत दृढ़ इच्छा- शक्ति के साथ न्याय के घर का लगातार दरवाजा खटखटाते रहने की है।

दीपचन्द सांखला

6 अप्रेल, 2012

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