लोक में एक कथा प्रचलित है– कुछ ज्यादा ही मोटी तोंद के एक व्यवसायी दोपहर के भोजन के बाद आराम के लिए लेटे हुए थे। बेहद गर्मी थी सो बदन के ऊपरी हिस्से पर कपड़े नहीं थे-सेवक पंखी से हवा कर रहा था। अचानक व्यवसायी ने देखा कि एक चींटी उनकी तोंद के ऊपर से गुजर रही है-वह हैरान-परेशान हो गये। व्यवसायी की इस मन:स्थिति को और देर बाद तक उन्हें अनमना देखा तो सेवक से रहा नहीं गया। पूछ बैठा कि चींटी ही तो गुजरी है, इससे इतनी परेशानी क्यों? व्यवसायी ने जवाब दिया, पगले! आज तो चींटी गुजरी है, कल हाथी भी गुजरने को होगा। चिन्ता रास्ता बनने की है-चींटी के गुजरने की नहीं।
इसका मतलब उस सेवक को समझ में आया या नहीं-नहीं पता। लेकिन हमारे शहर के पुलिस महकमे और उनके कप्तान-एसपी को समझ न आये यह ज्यादा चिन्ताजनक है। उक्त सेठ की सी सावचेती एसपी और पुलिस महकमे में दिखाई देनी चाहिए। परसों रात को महात्मा गांधी रोड के ऐन प्रेमजी पॉइंट पर योजनाबद्ध-पूरे सरंजाम और इतमीनान से हुई चोरी तो यही बताती है कि हमारे इस पुलिस महकमे का इस शहर से कोई सरोकार नहीं है।
इसी 29 अगस्त को रांगड़ी चौक के आंगड़िये के यहां हुई लूट पर 30 अगस्त के और इससे पहले 14 अगस्त के ‘विनायक’ के दोनों सम्पादकीय जिले के पुलिस महकमे पर ही हैं। उन्हीं बातों को दोहराना पाठकों के साथ न्याय नहीं होगा लेकिन स्थिति यदि ढाक के तीन पात की सी है तो कुछ बातें पुन: आएंगी ही!
14 अगस्त के सम्पादकीय में राजस्थान के पुलिस महकमे के स्लोगन ‘अपराधियों में डर और आमजन में विश्वास’ के आधार पर बात की थी जिसका जवाब खीज कर पुलिस महकमा यह दे सकता है कि ‘वे दांत तो हमारे दिखाने भर के हैं।’ लेकिन अभी 29 अगस्त की गोधूलि शाम को जिस निर्भयता से लूट हुई तब हमने एसपी को बेरुतबा बताते हुए यह भी लिखा था कि इस महकमे का आधा काम तो उनके अफसरों की धाक से हो जाता है।
परसों रात की चोरी हमारी उस बात को पुष्ट करती है कि शहर में पुलिस महकमे और उनके कप्तान की कोई धाक नहीं है अन्यथा शहर के कान-नाक प्रेमजी पॉइंट पर चेजारे और खाती की अटकलों के साथ होने वाली यह चोरी, पुलिस की धाक होती तो होती नहीं और होती तो जिन चेजारे-खाती की अटकलों के साथ चोरों ने कई घंटे लगाकर उसे अंजाम तक पहुंचाया-पहुंचने से पहले वे पकड़े जाते या भाग छूटते। क्योंकि प्रेमजी पॉइंट ऐसा तिराहा है जिस पर न केवल पूरी रात आम-दरफ्त रहती है बल्कि प्रेमजी की बन्द दुकान पर पुलिस-होमगार्ड और चौकीदार जवान बैठे रहते हैं, और उस सूनी रात में चेजारे-खाती के औजारों की आवाज दूर तक सुनाई नहीं दी हो समझ से परे है!
गोपालगढ़ कांड के बाद लगता है सूबे के मुख्यमंत्री आइएएस-आइपीएस जैसे आला अधिकारियों को हड़काने-पुचकारने को लेकर सूनपात में चले गये हैं। न उनको यह समझ में आ रहा है कि किस अफसर की किस छवि को निगलें और किसकी किस छवि को उगलें। लेकिन सूबे के गृह राज्यमंत्री को क्या हो गया कि उनके गृह जिले की कानून और व्यवस्था की स्थिति लगातार बद से बदतर होती जा रही है-उन्हें समझना चाहिए कि पुलिस अफसरों की ड्यूटी इतनी भर ही नहीं है कि उनके बीकानेर आने पर उन्हें सेल्यूट मार दें। उन्हें यह समझना इसलिए भी जरूरी है कि जाट के मुख्यमंत्री होने की आकांक्षाओं को पूरा करने वालों की कांग्रेस की सूची में अब उनका नाम भी लिया जाने लगा है।
— दीपचन्द सांखला
05 सितम्बर, 2012
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