‘विनायक’ अपने पहले के सम्पादकीयों में उपयोग किये उपमा अलंकार को बदल रहा है। रेल बायपास के मुद्दे को विनायक ‘लॉलीपोप’ बताता रहा है-लॉलीपोप तो चूसने पर रस तो देती है पर यह रेल बायपास का मुद्दा तो बीकानेर के लिए ‘बीटणी’ से ज्यादा नहीं हैं। सभी जानते हैं कि ‘बीटणी’ उस निपल लगी युति को कहते हैं जिसे मांएं अपने दूध पीते बच्चों को चुप्प कराने के लिए मुंह में दे देती हैं ताकि बच्चों को स्तनपान का आभास होता रहे। हालांकि डॉक्टर इस आदत को ठीक नहीं मानते, कुछ मांओं को जिन्हें ‘बीटणी’ उपलब्ध नहीं हो पाती, वे बच्चे को चूसने के लिए उसी का अंगूठा मुंह में देती हैं और कुछ ना समझ माँएं ऐसी भी होती हैं जो बच्चों से छुटकारे के लिए अमल (अफीम) का दाना तक बच्चों के मुंह में दे देती हैं-बिना यह जाने कि इससे उस बच्चे का कितना नुकसान हो जाएगा।
परसों जैसे ही राजस्थान के सी पी जोशी ने रेल मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार सम्भाला वैसे ही हमारे यहां के कुछ अति सक्रिय रेल बायपास की बीटणी फिर चूसने लगे। हालांकि शासन-प्रशासन की थोड़ी-बहुत समझ रखने वाले सभी जानते हैं कि इस तरह के कार्यभारों में मात्र रोजमर्रा के कामों को ही निपटाया जाता है-फिर भी कुछ लोग रेल बायपास का झुनझुना सीपी जोशी को भेजे बिना अपने को रोक नहीं पाये।
बेहद संजीदा लोकसेवक माने जाने वाले रामकृष्ण दास गुप्ता को कुंआरे होते हुए भी इस ‘बीटणी’ की युक्ति कैसे सूझी, हमारे लिए यह आज भी पहेली से कम नहीं है।
खैर प्रासंगिक बात पर ही आ लेते हैं-मान लें अगले सप्ताह के संभावित मंत्रीमण्डलीय फेरबदल में रेल मंत्रालय सीपी जोशी के पास ही रह जाता है तो शहर के तथाकथित हित चिन्तकों को रेल बायपास की इस बीटणी को छोड़ कर रेल सम्बन्धी कुछ सार्थक काम करवा लेने चाहिए। हालांकि जानते हैं कि आदत चाहे बीटणी की हो या अंगूठे की या फिर अफीम की, छुड़वाना मुश्किल होता है। अंगूठा चूसने वाले दो ऐसे व्यक्ति भी ध्यान में हैं जिनमें से एक अपनी युवावस्था तक सरे-बाजार उसे चूसते रहते थे और दूसरे अपनी चालीस पार की उम्र के बाद भी पूरी रात्रि अनायास ही अंगूठा मुंह में लेकर सोते थे।
मुद्दे से भटकाव बड़ी गलत आदत है-पर हमारी भी यह लाचारी है। अपने शहर में अशोक गहलोत और बीडी कल्ला के दाहिने-बायें के कांग्रेसी तो कई हैं-पर सी पी जोशी का अपने को खास बताने वाले एक-आध ही मिलेंगे। जयशंकर जोशी यदि सचमुच सीपी जोशी के खास हैं तो उनकी पूछ और पूंछ दोनों सीपी के रेलमंत्री बनने पर बढ़ जाने वाली है। उस स्थिति में जयशंकर जोशी या ऐसे ही कोई और सीपी का नजदीकी होने का दावा करने वाले हों, उन को चाहिए जेडआरयूसीसी जैसी छुटभइया पंचायतियों व बायपास जैसे ‘बीटणी’ आदतों को छोड़ शहर के लिए कुछ सार्थक करवाना चाहिए। जैसे बीकानेर के वर्कशॉप में सभी तरह के रेल डिब्बों की मरम्मत का काम शुरू करवाया जाना चाहिए ताकि शहर में रोजगार के अवसर बढ़ सकें, डीजल इंजनों का लोको शेड स्थापित करवाने का काम, जोधपुर लाइन पर बीकानेर मंडल का क्षेत्र बीकानेर आउटर सिग्नल से चीलो गांव तक बढ़वाने का काम (रियासत काल में बीकानेर रेलवे का क्षेत्र चीलो आउटर तक था), यदि ऐसा होता है तो बीकानेर मण्डल के कर्मचारियों की बहुत-सी समस्याओं का समाधान स्वत: ही हो जायेगा। बीकानेर से फुलेरा की ओर वाया मेड़ता रोड आने-जाने वाली सभी रेल गाड़ियों को बायपास से गुजारने तथा बीकानेर-जयपुर सुपरफास्ट इंटरसिटी को सचमुच की सुपरफास्ट इंटर सिटी बनाने का काम, जैसलमेर-हावड़ा ‘सोनारकिला सुपरफास्ट’ जैसे नाम से वाया बीकानेर, चूरू, दिल्ली जं. चलवाने का काम, पुरी-चेन्नेई-बेंगलोर गाडियों को जयपुर व जोधपुर से बीकानेर तक विस्तारित करवाने का काम, कोयम्बटूर एसी एक्सप्रेस का पनवेल के बाद मार्ग बदलवाकर वाया पूणे-बेंगलुरू चलवाने का काम, हरिद्वार और कालका की गाडियों को अलग-अलग चलवाने का काम, रेलवे स्टेशन की सैकिंड एन्ट्री के आगे के रेलवे क्वार्टरों हटवा कर यात्रियों की सुविधाओं को विस्तारित करवाने का काम-क्योंकि मैन एन्ट्री पर तो जितनी सुविधाएं है उन्हें जगह की कमी के चलते बढ़ाया नहीं जा सकता है, आदि-आदि।
सीपी जोशी के रेलमंत्री हो जाने पर सचमुच कुछ करवाना चाहते हैं तो उपरोक्त के अलावा भी कई सार्थक कामों की सूची बन जायेगी। जरूरत ‘बीटणी’ या ‘अंगूठा’ चूसना छोड़ सार्थक कामों में लगने की है।
— दीपचन्द सांखला
26 सितम्बर, 2012
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