कुछ लोग होते हैं जो ऊपरी टीम-टाम और बाहरी स्वच्छता का तो ध्यान धरते हैं लेकिन शारीरिक स्वास्थ्य की कोई परवाह नहीं करते। समय बीतने के साथ ऐसे लोग कई तरह की व्याधियों से घिर जाते हैं। लगभग ऐसी स्थिति अपने इस शहर बीकानेर की है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि आजादी बाद से आज तक बीकानेर को एक भी जनप्रतिनिधि ऐसा नहीं मिला जो इस शहर की जरूरतों को समझता हो! या इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि जो इस शहर से प्यार करता हो। कहने को तो इसे हवा में लगाया आरोप कहा जा सकता है लेकिन पिछले पैंसठ वर्षों पर दृष्टि डालें और प्रदेश के अन्य शहरों की बढ़ती जरूरतों और उनके पूरा होने की तुलना में बीकानेर की अध्ूरी रही जरूरतों पर बात करें तो शायद प्रत्येक जागरूक शहरी ‘विनायक’ की इस बात से सहमत होता दीखेगा!
उक्त के उल्लेख की अभी इसलिए जरूरत लगी कि समाचार है कि बीकानेर-कोयम्बटूर गाड़ी कल से चलने लगेगी और इसे हमारे सांसद अर्जुनराम मेघवाल हरी झण्डी दिखाकर रवाना करेंगे। वह रवाना करेंगे इस पर किसी को एतराज इसलिए नहीं कि मेघवाल क्षेत्र से सांसद हैं और रेलवे बोर्ड के दिशा-निर्देश हैं कि इस तरह के आयोजनों में स्थानीय सांसद और विधायकों को तरजीह दी जानी है, चाहे वह किसी भी दल से हों?
अर्जुन मेघवाल संसद में अच्छे स्कूली विद्यार्थी की भांति न केवल हाजिरी के पक्के हैं बल्कि शून्यकाल में मुद्दा उठाने में भी इनकी मास्टरी है। यद्यपि शून्यकाल में उठाए इन मुद्दों की कोई अहमियत नहीं होती। इस ऊपरी टीम-टाम के चलते उन्हें कई बार सम्मान हासिल हो गये हैं। लेकिन हमारे सांसद के लिए समझने वाली बात यह है कि इन सबसे इस शहर को या कहें इस संसदीय क्षेत्र को क्या हासिल हुआ? सांसद का जनसम्पर्क कार्यालय मुस्तैद है, क्यों न हो इन सभी के लिए इन्हें सार्वजनिक धन से भत्ता जो मिलता है। जनसम्पर्क का इनका यह कार्यालय सांसद की नित-प्रतिदिन की गतिविधियों से प्रेस (टीवी-अखबार) को अवगत करवाता है-इन टीवी अखबारों को चूंकि समय और पृष्ठों को भरना होता है सो वह इसे अपने दर्शकों-पाठकों तक पहुंचा भी देते हैं। लेकिन जिन गतिविधियों की खबरें सांसद के हवाले से अब तक आयी हैं उनमें से अपने सांसद की कौन-सी मांग का या मुलाकात का परिणाम इस क्षेत्र के हित में आया-इसकी पड़ताल करें तो परिणाम शून्य के लगभग ही मिलेगा।
इस कोयम्बटूर वाली गाड़ी की ही बात करें तो 14 मार्च के रेल बजट में इसकी घोषणा हुई और ‘विनायक’ ने अपने 15 मार्च के अंक में ही सुझा दिया था कि इस गाड़ी को घोषित पनवेल-रोहा-रत्नागिरि के रास्ते की बजाय पनवेल-पुणे-बेंगलुरू के रास्ते चलाए जाने से न केवल बीकानेर की तीन गाड़ियों (पुणे-बेंगलुरू-कोयम्बटूर) की मांग पूरी होगी बल्कि कोयम्बटूर की दूरी और समय भी कम होगा। अलावा इसके घोषित रास्ते से तो एक गाड़ी (बीकानेर-कोच्चुवेली) पहले से ही है। हमारी इस खबर पर स्थानीय जेडआरयूसीसी के नरेश मित्तल ने इस गाड़ी के ‘विनायक’ के सुझाए रास्ते चलवाने के लिए अपने स्तर पर काफी प्रयास किये-मित्तल के अलावा भी स्थानीय व्यवसायी मंचों व दलीय इकाइयों ने मांग उठाई। लेकिन हमारे सांसद ने सम्पर्क करने और समझाये जाने पर भी इस सम्बन्ध में कोई प्रभावी प्रयास किये हों, इसकी सूचना उनके जनसम्पर्क कार्यालय ने आज तक जारी नहीं की। अगर सांसद गंभीरता से प्रयास करते तो सकारात्मक परिणाम मिलते। हो सकता है उन्हें यह मुद्दा समझ में ही नहीं आया हो या उन्हें लगा होगा कि बीकानेर के यात्रियों को पुणे-बेंगलुरू के लिए रेलगाड़ी की जरूरत नहीं है।
— दीपचन्द सांखला
11 सितम्बर, 2012
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