लगता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक बार फिर हिन्दू कार्ड खेलने का मन पूरी तरह बना लिया है। संघ की राजनीतिक इकाई भाजपा लगातार इस कौशिश में है कि वह अपनी मातृ संस्था आरएसएस की अंगुली पकड़े बिना चलने का प्रयास करे, अपने बालिग होने की धाक बनाये-लेकिन माता है कि बार-बार अंगुली पकडऩे को सचेष्ट रहती है। भाजपा संघ की अंगुली छोड़ भी दे तो संघ भाजपा की कलाइ पकड़ अपने हिसाब से चलाने में लग जाता है और सफल भी होता है-शायद इसलिए कि भाजपा अपनी इस बत्तीस की उम्र में भी किशोरवय की समझदारी और आत्मविश्वास नहीं जुटा पायी है। पार्टी की उम्र पर व्यक्ति की उम्र की कसौटी स्वयं भाजपाइयों ने ही उस समय लगाई थी जब कांग्रेस की सवा सौवीं जयंती पर उसे बुढिय़ा कहा था!
भाजपा सांगठनिक तौर पर आज तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। वाजपेयी अचेतन में हैं-आडवाणी अपनी प्रासंगिकता खत्म करवा चुके हैं। मुरली मनोहर जोशी कभी अपनी हैसियत बना ही नहीं पाये। भाजपा की चलती गाड़ी में सवार सुषमा, जेटली, यशवन्त, जसवन्त आदि सभी पर संघ को भरोसा नहीं है। मातृ संस्था संघ के पितृसत्तात्मक मुखिया मोहन भागवत को 2014 के चुनाव परिणाम 'बिल्ली के भाग के छींके' के रूप में इसलिए दीख रहे हैं कि कांग्रेस लगातार सत्ता विरोध-एन्टी इन्कमबैंसी की शिकार होती लग रही है। भागवत को लगने लगा है कि अभी नहीं तो कभी नहीं। पिछले एक वर्ष से संघ भाजपा की कलाई गडकरी के माध्यम से कस कर पकड़े हैं, भाजपा की ऐसी स्थिति तब भी कभी नहीं रही जब वह जनसंघ के नाम से जानी जाती थी। कहते हैं पिछले वर्ष अगस्त से संघ यह तय कर चुका है कि 2014 के चुनावों में मोदी को पीएम-इन-वेटिंग के रूप में प्रोजेक्ट करेंगे-इस एजेन्डे को अब तक संभवत: इसलिए छिपाए रखा कि संघ को और भाजपा की कलाई बने गडकरी को यूपी चुनावों से कुछ उम्मीदें थी। उम्मीदें परवान नहीं चढ़ी तो संघ ने अपने छिपे एजेन्डे से पर्दा उठाना शुरू कर दिया है, इस एजेन्डे को उम्मीद से ज्यादा समर्थन उन क्षत्रपों-येदियुरप्पा और वसुन्धरा का भी देखा गया जो आये दिन न केवल पार्टी बल्कि संघ को भी शीशा दिखाने से नहीं चूकते।
संघ को यह भी अच्छी तरह मालूम है कि मोदी को पीएम-इन-वेटिंग घोषित करने पर उनके साथ जेडीयू भी नहीं रहेगी। तेलगुदेशम पहले ही अलग हो चुकी है, मोदी के नाम पर ममता भी बिदकेगी ही-ममता और चन्द्रबाबू दोनों को अपने-अपने राज्य में मुस्लिम वोट चाहिए-रही बात नवीन पटनायक और जयललिता की तो वो भी अपने ऊंट को उसी करवट बिठाते हैं जहां उन्हें कुछ फायदा दिखता हो।
मोदी के रूप में भागवत का दावं जुए से कम नहीं है। पहले तो यह कि वह गुजरात विधानसभा में पुन: बहुमत से आएं और उसके बाद वे भारतीय मन को सांप्रदायिक बनाने में सफल हों तब ही भागवत की बात बनेगी-जो मुश्किल लगता है-फिर भी भारतीय मन यदि सांप्रदायिक हो जाता है तो यह देश का दुर्भाग्य होगा-रही बात महंगाई और भ्रष्टाचार की तो वह तो भाजपा राज में भी यूं ही चलते रहेंगे। क्योंकि जिस सुरंग में देश प्रवेश कर गया है उसमें यह व्यवस्था यूं ही चलनी है। येदियुरप्पा, शिवराज, वसुंधरा, निसंग और मोदी सभी के राज वैसे ही चले हैं, जैसे कि कांग्रेसियों के।
—दीपचन्द सांखला
28 मई,
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