Monday, April 10, 2017

फर्ज को समझें या ऐसी घटनाओं के अभ्यस्त हो जायें (8 सितम्बर, 2011)

बुधवार की सुबह दिल्ली के हाईकोर्ट परिसर में एक बम धमाका हुआ जिसमें बारह मौतें होने की पुष्टि हो चुकी है। इससे पहले भी इसी वर्ष 25 मई को इसी हाईकोर्ट परिसर में एक कम ताकत का धमाका हो चुका है। कहने को तो कहा जा रहा है कि 25 मई का धमाका कल बुधवार को हुए धमाके की रिहर्सल था। रिहर्सल अगर साबित होती है तो इसे सुरक्षा एजेंसियों की बहुत बड़ी चूक माना जायेगी।
घटना के तुरन्त बाद पक्ष-विपक्ष के बड़े कहे जाने वाले सभी नेता और कई मंत्री उन अस्पतालों में पहुंच गये जहां घायलों का इलाज चल रहा था। इस तरह पहुँचना भी हमारे यहाँ एक रस्म की तरह निभाया जाने लगा है। नेताओं द्वारा बिना यह सोचे कि उनके वहां जाने से उनके साथ निभाई जाने वाली ढेर सारी औपचारिकताएँ और स्टेट्स सिम्बल की तरह ओढ़ी हुई सुरक्षा व्यवस्था उन घायलों के इलाज में कितनी बड़ी बाधा बन सकते हैं।
होना तो यह चाहिए कि उन घायलों को किसी भी तरह की मदद पहुंचाने में ये नेता अपने को सक्षम पाते हों, तो बिना किसी दिखावे के वे जहां भी हों वहीं से कुछ करने की उन्हें जुगत करनी चाहिए। वे ऐसा कर भी सकते हैं।
अब होगा यह कि किन्हीं दो-चार अधिकारियों की लापरवाही तय करके दिखावटी सजा मुकर्रर कर दी जायेगी। दिखावटी इसलिए कि बहुत कम उदाहरण होंगें जिसमें सजा पाये यह अधिकारी बहाल नहीं हो गये हों।
असल में अपने देश में हो यह रहा है कि वोट डालते समय मतदाता अपने फर्ज को पूरा नहीं करते। वोट डालने से पूर्व हमें यह देखना चाहिए कि कई प्रकार के भ्रष्ट आचरणों में लिप्त आपका उम्मीदवार आपके वोट का असल में हकदार है क्या।
कई अनैतिक उपायों और कालेधन के बल पर जीत कर जाने वाला नेता क्या पूरी ईमानदारी से अपना फर्ज अदा कर पायेगा। जिन साधनों से वो जीत कर ऊपर जायेगा क्या उन्हीं सब साधनों को वो अपने भविष्य के लिए जमा नहीं करेगा। और यह सब होगा तो क्या वो अपने अधीनस्थ अफसरों, नेताओं को फर्ज अदा करने को बाध्य कर सकेगा।
इसी तरह ऊपर के भ्रष्ट आचरण से प्रेरित और अपनी ड्यूटी और फर्ज से लापरवाह ये अफसर और छुटभैया नेता अपने से नीचे के लोगों को फर्ज अदा करने को प्रेरित कर सकेंगे?
आम आदमी को अपने परिवार के प्रति, समाज के प्रति, देश के प्रति और इस चराचर जगत् के प्रति फर्ज को समझना होगा और उस पर अमल भी करना होगा। फर्ज किसी भी प्रकार और स्तर पर स्वार्थ से परे होता है। अन्यथा जो कुछ यह हो रहा है उसके प्रति हमें अभ्यस्त हो जाना चाहिए।

                                       वर्ष 1 अंक 17, गुरुवार, 8 सितम्बर, 2011

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