Thursday, April 27, 2017

स्त्री और उसके कार्यक्षेत्र/मिग-21 ( 08 अक्टूबर, 2011)

स्त्री और उसके कार्यक्षेत्र
कोई भी बड़े से बड़ा पुरस्कार, सम्मान या कोई प्रमाणपत्र सर्वोच्च नहीं होता है। इस तरह के पुरस्कार, सम्मान और प्रमाणपत्रों पर किन्तु-परन्तु लगते रहे हैं। और तो और महात्मा गांधी को नोबेल दिये जाने पर भी आज तक जितने किन्तु-परन्तु व्यक्त किये गये वह लगभग अकेला और उल्लेखनीय उदाहरण हैं। यहां तक कि नोबेल समिति द्वारा दो-तीन वर्ष पहले अधिकृत रूप से इस गलती को स्वीकार कर लेने के बाद भी यह किन्तु- परन्तु बन्द नहीं हुए हैं।
चाहे इन सम्मानों को अन्तिम कसौटी ना भी मानें, फिर भी इनके बहाने कई मुद्दों पर चर्चा और विचार होता रहा है और होता रहना भी चाहिए।
शुक्रवार को नोबेल शान्ति पुरस्कारों की घोषणा हुई है। इस बार का यह सम्मान तीन महिलाओं को संयुक्त रूप से दिया जाएगा। इनमें पश्चिम अफ्रीकी देश लाइबेरिया से दो और पश्चिम एशियाई देश यमन से एक है। सामान्यतः पुरुषों के कार्यक्षेत्र माने जाने वाले सत्ता, समाज, राजनीति और युद्ध इन्हीं क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए ही इन तीनों को सम्मानित किया जायेगा।
लगभग पूरी दुनिया में ही सदियों से स्त्रियों के लिए लगभग दोयम दर्जे का जीवन जीने को नियति माना जाता रहा है। केवल सामाजिक, राजनैतिक स्तर पर बल्कि धार्मिक स्तर पर भी। ईसाई और इसलाम में तो स्त्री के स्वतंत्र उद्भव को ही स्वीकार नहीं किया गया है, स्त्री की उत्पत्ति पुरुष की मात्र एक पसली से बताई गई है। भारतीय सनातन शास्त्र भी स्त्री-स्वतंत्रता के पक्ष में दिखाई नहीं देते, शास्त्र मानते हैं कि स्त्री को अपनी विभिन्न वय में पिता, पति और पुत्र के कहे अनुसार ही चलना चाहिए। ऐसा इसलिए कि स्त्री अकेले अपने शील की रक्षा में अक्षम होती है। यह स्त्री शील की रक्षा किनसे, उन्हीं से ही जिन्होंने यह तय किया है? ना तो दूसरे प्राणियों से और ना ही दूसरे ग्रहों के प्राणियों से! पुरुषों के शील भंग का अंदेशा कभी रहा है और ना ही कभी होगा।
हां, मनोविज्ञान जरूर मानता रहा है कि व्यक्ति अपनी अक्षमताओं को आड़ देने में वर्जनाओं का भी सहारा लेता है। पिछली एक-डेढ़ सदी से पुरुषों का एकाधिकार माने  जाने वाले क्षेत्रों में भी स्त्रियां अपना लोहा मनवाने लगी हैं। देखते हैं अगली एक-आध सदी में स्त्रियां बराबरी के अपने हक को हासिल करना संभव कर लेगी या थोड़ा ज्यादा समय लगेगा।
मिग-21
कल शुक्रवार को एक और मिग-21 ध्वस्त हो गया। सुखद यह रहा कि मिग के दुर्घटनाग्रस्त होने से पहले ही उसका पायलट सुरक्षित निकलने में कामयाब रहा। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 सालों में भारतीय वायुसेना के कुल 31 मिग-21 विमान ध्वस्त हो चुके हैं। वो तो इनके पायलट इतने चौकन्ने रहते हैं कि इन ध्वस्त विमानों को आबादी क्षेत्र पर गिरने से बचाते हैं, और खुद भी बचते हैं। ऐसा भी हुआ कि क्षण भंगुर उस समय में आबादी क्षेत्र को बचाने में पायलट को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। माना जाता रहा है कि मिग-21 पूर्णतया सुरक्षित विमान नहीं है। शेष बचे मिग-21 विमानों को वायुसेना के ब़ेडे से निकालना भारत जैसे विकासशील देश के लिए क्या महंगा साबित होगा?


वर्ष 1 अंक 43, शनिवार, 08 अक्टूबर, 2011

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