Friday, April 21, 2017

गरीब कौन? ( 22 सितम्बर, 2011)

सुप्रीम कोर्ट में योजना आयोग द्वारा दिये हलफनामे में बताया गया कि वो गरीब किसको मानता है। आयोग का कहना है कि शहर में प्रतिदिन लगभग बत्तीस रुपये में और गांव में लगभग छब्बीस रुपये में गुजर-बसर करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। यानी इन राशियों से कम राशि में गुजर-बसर करने वाला प्रत्येक शहरी और ग्रामीण ही गरीब है।
इस तरह का गणित देश आजाद हुआ तब से ही सरकारें पेश करती आई हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि ऐसे आंकड़ों के बिना तो कोई योजना बन सकती है और ना ही बजट।
बीपीएल योजना शुरू होने के बाद इन आंकड़ों का महत्त्व सीधे आमजन के लिए इसलिए हो गया कि इस योजना का लाभ उन्हीं परिवारों को हासिल हो सकता है जो कि इस राशि से नीचे गुजर-बसर करते हैं।
यह बात अलग है कि बीपीएल योजना से सचमुच के गरीब को कितना लाभ मिल पाता है। सुनने में तो यह आता है कि बीपीएल सूची में कई ऐसे लोग नामांकित हैं जो इस गरीबी रेखा से नीचे तो दूर की बात वे इस रेखा से ऊपर इतने हैं कि उन्हें यह रेखा दिखाई तक नहीं देती। उन्हें यह लाभ लेते हुए ग्लानि नहीं होती कि वे उनका हक मार रहे हैं जिन्हें भरपेट पौष्टिक खाना भी उपलब्ध नही्ंरपहनने को पूरे कपड़े और सिर के ऊपर छत की बात तो बहुत दूर की है।
हो सकता है कि आप जहां रहते हैं वहां आपको ऐसे लोग नजर नहीं आते हों। अगर आपको देश का नागरिक और उससे भी ऊपर मनुष्य होने का अहसास हो तो कभी अपनी नजरों को इसका भी अभ्यस्त बनायें कि अपने देश की लगभग आधी से ज्यादा आबादी सचमुच में गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने को मजबूर है।
और अधिकतर गरीबों के लिए आज भी यह बत्तीस और छब्बीस रूपये प्रतिदिन का आंकड़ा एक सपने जैसा है।
अच्छा ही हुआ कि सुप्रीमकोर्ट को किसी सुनवाई में ऐसे अधिकृत आंकड़े की जरूरत पड़ी और योजना आयोग को देना पड़ा। मीडिया को यह मुद्दा मिल गया; इसी बहाने ही सही आम बुद्धिजीवी कुछ तो इस पर विचार करेंगे। अन्यथा यह सारी एक्सरसाइज बेचारा योजना आयोग हमेशा अकेले ही करता आया है।
वर्ष 1 अंक 29, गुरुवार, 22 सितम्बर, 2011

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