Friday, April 28, 2017

मंत्रिमंडल या शिवजी की बरात ( 21 अक्टूबर, 2011)

लगता है राज्य के मुखिया अशोक गहलोत इन दिनों भारी दबाव में हैं। अन्यथा कल जयपुर के राज्य सूचना आयोग भवन के शिलान्यास समारोह में जो उन्होंने कहा, वे वो नहीं कहते।
कोर्ट में जजों द्वारा वादी-परिवादी के वकीलों से जो बातचीत होती है, सामान्यत, उस बातचीत का दस्तावेजीकरण नहीं होता है। भंवरीदेवी प्रकरण और आरक्षण में पदोन्नति के मामले में मीडिया में आजकल उस बातचीत को कोर्ट के आदेश और वक्तव्य के रूप में प्रमुखता से प्रकाशित और प्रसारित किया जाने लगा है।
अशोक गहलोत शायद इसी तरह की खबरों से खफ़ा हैं। इसलिए कल उक्त कार्यक्रम में मीडिया को नसीहत में कह गये कि कहीं ऐसी नौबत जाए कि कोर्ट में मीडिया के घुसने पर ही पाबंदी लग जाये। यह नसीहत कोर्ट देता तो उचित थी। क्योंकि मीडिया की भाषा, कई बार असंयमित होने का आभास देने लगी है। पर मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से जिस तरह से यह कहा है वह उचित नहीं जान पड़ता।

सामान्यत, धीर-गंभीर और नपे-तुले अंदाज में बोलने वाले अशोक गहलोत पिछले एक अरसे से खिजियाए या अधीर से नज़र आने लगे हैं। कुछ लोग इसकी वज़ह मंत्रिमंडल सहयोगियों की करतूतों को बताने लगे हैं। व्यंग्य में यह भी कहा जाने लगा है कि इस बार का उनका मंत्रिमंडल शिवजी की बरात साबित हो रहा है। इस व्यंग्यात्मक वक्तव्य से इसलिए सहमत नहीं हुआ जा सकता है कि शिवजी की बरात का जो भी रूप था वह उनकी इच्छा से था। इसी का ही परिणाम था कि शिवजी अपनी बरात पर खीजे और ही अधीर हुए थे। बरात के समय वह बरात ही उनके आनंद की वज़ह भी थी। अशोकजी का मंत्रिमंडल शिवजी की बरात है तो वे शिव हुए। उनके खीजने और अधैर्य से ही जाहिर है कि वे ना शिव हैं और ना ही उनका मंत्रिमंडल शिवजी की बरात। यह भी कि यह मंत्रिमंडल भी उनकी इच्छा से नहीं मजबूरी से है।

                                             वर्ष 1 अंक 54, शुक्रवार, 21 अक्टूबर, 2011

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