Friday, April 21, 2017

ट्रेन की छत पर मौतें और दो से ज्यादा बच्चे (26 सितम्बर, 2011)

पटवारी भर्ती की परीक्षा देने जा रहे युवक ग्वालियर-उदयपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस की छत पर सवार थे, लगभग आधी रात का समय था। रेल ओवरब्रिज आया, अंधेरे में दिखा नहीं। नौ युवक टकरा कर बुरी तरह घायल हो गये। दो घंटे बाद जब गाड़ी भीलवाड़ा पहुंची तब तक पांच जनों ने दम तोड़ दिया।
केरल प्रदेश की सरकारकेरल वीमंस कोड बिल 2011’ लाने जा रही है। जिसमें यदि तीसरा बच्चा होने की संभावना बनती है तो पिता पर दस हजार रुपये जुर्माना या तीन महीने की जेल की सजा दी जा सकेगी।
लगभग रोज एक खबर आती है जिसमें राजस्थान में कहीं कहीं कोई ना कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा जाता है। आज भी ह्रैझुंझुनूं जिले की मंडावा नगरपालिका का सफाई निरीक्षक दस हजार की रिश्वत लेते पकड़ा गया है।
उपरोक्त तीनों खबरों का ऊपरी तौर पर कोई सम्बन्ध नहीं है। लेकिन गहराई से विश्लेषण करें तो तार कहीं ना कहीं जुड़ते देखे जा सकते हैं। सुरक्षा उपायों को लेकर रेलवे की जिम्मेदारियों पर तो विचार और बहसें होती ही रही हैं और होगी ही।
पिछले चालीस वर्ष से भी ज्यादा समय से परिवार नियोजन का अभियान कई प्रलोभनों और अंकुशों के साथ चल रहा है। इसके बावजूद इन चालीस वर्षों में अपने देश की आबादी लगभग दुगुनी हो गई है।
पति-पत्नी के यदि दो ही संतानें हो तो आबादी एक प्रतिशत भी नहीं बढ़ेगी। यदि एक दंपती तीन संतान पैदा करे तो आबादी बढ़ाने में उनका दोष डेढ़ा और चार संतान पैदा करने पर यही दोष दुगुना हो जाता है। सामान्यतः, यह देखा गया है कि समाज में संतान पैदा होना तो दोष की श्रेणी में आता है लेकिन दो से ज्यादा संतान पैदा करना दोष माना ही नहीं जाता। हां, पढ़े-लिखे समझदारों में इसे भूल जरूर करार दिया जाने लगा है। जबकि बीसवीं शताब्दी में जनसंख्या का यह विस्फोट बड़ा दोष माना जाना चाहिए।
इस धरती पर सभी कुछ सीमित है। असीमित बढ़ती जनसंख्या से हमारी आने वाली पीढ़ियों को क्या वो सबकुछ सभी को मिल पायेगा्रजो आज हमें हासिल है?
आजादी के तुरन्त बाद के समय में ऐसी स्थितियां थी कि बहुत-सी नौकरियां थी्रनौकरियां करने वाले नहीं मिलते थे। एक आदमी अपनी रुचि से दो-दो, तीन-तीन नौकरियां बदल लिया करता था। अब 2363 पटवारी के पदों की परीक्षा देने के लिए सात लाख युवक प्रदेश के एक कोने से दूसरे कोने तक जैसा भी और जिस तरह का भी साधन मिले, पहुंचने की जुगत करते हैं। पता नहीं छोटे-मोटे तो कितने ही हादसे होते होंगे। सुर्खियों में बड़े हादसे ही आते हैं जैसे शनिवार रात का रेल ओवरब्रिज का हादसा!
क्या अब भी दो से ज्यादा संतान पैदा करने को भूल ही मानते रहेंगे या केरल में रहा है, वैसा कानून या उससे भी ज्यादा सख्त कानून को लागू करवाने को सरकार को बाध्य करेंगे।
अब रिश्वत लेकर रंगे हाथों पकड़े जाने का मामला ही लें। इतनी जद्दो-जहद के बाद नौकरी मिले, उसे कर्तव्य समझ करने की बजाय छठे वेतन आयोग की तनख्वाह मिलने के बाद भी रिश्वत लेना शर्मनाक नहीं है? हजारों लोग रोज रिश्वत लेते और देते हैं, पकड़ा तो एक-आध ही जाता है। शायद इसीलिए रिश्वत लेने-देने वालों का दुस्साहस बना रहता है।

वर्ष 1 अंक 32, सोमवार, 26 सितम्बर, 2011

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