Friday, April 14, 2017

गॉड इज ग्रेट!!! मारने वाले से बचाने वाला ज्यादा बड़ा है? (13 सितम्बर, 2011)

देश और प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के दो आरोपित बड़े नेताओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने दो अलग-अलग याचिकाओं पर व्यवस्था मात्र दी है, दोनों ही मामलों में दी गई व्यवस्था को क्लीन चिट कहना गलत व्याख्या करना होगा।
 दूसरी तरह से विचार करें तो यदि गुलबर्ग सोसायटी के मामले में सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी की वह याचिका, जिसमें उक्त मामले की निगरानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा करने की अपील की गई थी, यदि स्वीकार कर ली जाती तो क्या कांग्रेस इसे नरेन्द्र मोदी पर दोष साबित होना प्रचारित करती? और इसी तरह राजस्थान के फिलहाल चर्चित दारा मुठभेड़ मामले में दारासिंह की पत्नी सुशीला देवी की याचिका जिसमें उन्होंने पूर्वमंत्री और भाजपा विधायक राजेन्द्र राठौड़ के खिलाफ सीबीआई को पूरक आरोप पत्र पेश करने का आदेश देने की अपील की गई थी, को भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है। यदि इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुशीला देवी की याचिका स्वीकार कर ली जाती तो क्या राज्य कांग्रेस भी इस पर राजनीति करती?
सम्भवतः दोनों ही मामलों में कांग्रेस भी ठीक इसी तरह राजनीति करती जिस तरह अभी गुलबर्ग सोसायटी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था को नरेन्द्र मोदी को दी गई क्लीन चिट के रूप में प्रचारित करके भाजपा कर रही है, और दारा मुठभेड़ मामले में दी गई व्यवस्था को राजेन्द्र राठौड़ के मामले से मुक्त होना कह रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई दोनों ही व्यवस्थाएं दरअसल क्रमशः गुजरात की निचली अदालतों पर और दारा मामले में सीबीआई पर भरोसा जताने की है। दूसरे नजरिये से देखें तो यह उचित ही है। यदि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोनों याचिकाएं स्वीकार कर ली जातीं तो इन दोनों पर भरोसा करना और अकारण ही असक्षम होने का संदे जाता।
निचली अदालत के फैसले और सीबीआई के अन्तिम नतीजों पर याचिकाकर्ताओं को लगता है कि यह उचित नहीं है तो ऊपरी अदालतों में जाने का विकल्प याचिकाकर्ताओं का कायम रहेगा।
चिंताजनक तो यह है कि जाकिया की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट को यह व्यवस्था देने में भी नौ वर्ष लगे हैं। इन्हीं मामलों में बाकी की पूरी न्यायिक प्रक्रिया भी इसी गति से चली तो! कहा भी जाता है कि देरी से मिला न्याय, न्याय नहीं रह जाता है।


                                     वर्ष 1 अंक 21, मंगलवार, 13 सितम्बर, 2011

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