Thursday, April 27, 2017

किस्से बनाने की............../हड़बड़ी में टीम अन्ना! (10 अक्टूबर, 2011)

किस्से बनाने की..............
कुछ अच्छे कहे जाने वाले राजाओं के किस्से अलग-अलग तरह से लोक में प्रचलित हैं। उनमें से एक तरह का किस्सा कई शासकों के संबंध में समान रूप से मिलता है। वह यह कि राजा अपनी प्रजा की सुध लेने और अपने शासन की असलियत को जानने के वास्ते वेश बदल कर प्रजा में पहुंच जाता था। यदि वे ऐसा नहीं करते तो ये किस्से भी नहीं बनते। पिछली सदी के आठवें दशक में भी एक किस्सा बनाया हरियाणा के चौधरी बंशीलाल ने। वे तब केन्द्र में रेलमंत्री थे। एक दिन वे खांटी हरियाणवी वेश में पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के रिजर्वेशन काउंटर पर पहुंच गए, ‘बेचारे रिजर्वेशन कलर्क बे-हक का अनजाने में अपने आका से भी मांग बैठे, बाद इसके ऐसे मामलों में कुछ दिनों तक सावचेती बरती गई, फिर वही ढाक के तीन पात! जब लगभग हर सक्षम बे-हक पर अपना हक बनाने पर आमादा हों तो ऐसी घटनाएं, किस्से बनाने को ही घड़ी जाती लगती हैं।
कल की ही बात है कि राहुल गांधी अचानक गोपालगढ़ पहुंच गए, जहां कुछ दिनों पहले एक ही समुदाय के 10 जने प्रशासनिक हिंसा की भेंट चढ़ गये थे। राहुल गांधी को तो राज्य की अपनी पार्टी की सरकार की सूचनाओं पर भरोसा था और ही अपनी पार्टी के प्रतिनिधिमंडल की रिपोर्ट पर, जिस पार्टी में उनकी हैसियत नम्बर दो की मानी जाती है। यह भी कि इसी गोपालगढ़ के पीड़ितों का एक प्रतिनिधिमंडल भी अपनी व्यथा-कथा दिल्ली जाकर राहुल गांधी को सुना आया है। अब देखने की बात यह है कि अपनी मात्र डेढ़ घंटे की बाइक सवारी से राहुल ने क्या हासिल किया है?
हड़बड़ी में टीम अन्ना!
लगता है भ्रष्टाचार से त्रस्त जनसमूह की अन्ना से बनी उम्मीदों को उन्हीं की टीम पचा नहीं पा रही है। भ्रष्टाचार के विरोध में अन्ना को मिले भारी जन समर्थन की खुमारी में टीम अन्ना बिना आगा-पीछा सोचे हड़बड़ी में दिखाई देती है। पहले तो बिना यह सोचे कि देश की चुनाव प्रणाली में एक का विरोध उसके प्रतिद्वंद्वी का समर्थन हो जाता है, हिसार के लोकसभा चुनाव में केवल एक पार्टी की खिलाफत का एलान कर दिया। वहां कांग्रेस की दोनों प्रतिद्वंद्वी पार्टियां भी कितनी दूध की धुली हैं जिसे जांचने का उपकरण अभी तक ईजाद नहीं हुआ है। इन तीनों प्रतिद्वंद्वी पार्टियों को आप अच्छी तरह जानते हैं, एक कांग्रेस, दूसरी ओम प्रकाश चौटाला की इनलोद और तीसरी भजनलाल की हविपा। अब अन्ना टीम इन तीनों में से किसी का भी विरोध करती है तो क्या वह विरोध भ्रष्टाचार के विरोध की श्रेणी में आएगा?
अन्ना टीम के अरविंद केजड़ीवाल ने कल यह भी कहा कि केवल अन्ना बल्कि देश का प्रत्येक नागरिक संसद से ऊपर है। एक आदर्श स्थिति में तो केजड़ीवाल गलत नहीं हैं। लेकिन देश ने जब एक संविधान सम्मत संसदीय कार्य प्रणाली अपना ली और उसको चुनने की एक तय लोकतान्त्रिक प्रक्रिया भी है, उस स्थिति में इस तरह का आह्वान क्या अराजकता को न्योतना नहीं होगा? अपने देश की कुव्यवस्था को अंततः तय चुनावी प्रक्रिया से व्यवस्थित किया जा सकता है। चूंकि, यह रास्ता आसान नहीं है तो टीम अन्ना उसका शार्टकट आजमाने में लगी है, बिना उचित-अनुचित का विचार किये।
वर्ष 1 अंक 44, सोमवार, 10 अक्टूबर, 2011


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