Thursday, April 27, 2017

फटकार काल या टकराव काल/मनोकामना पूर्ण राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री या..........(14 अक्टूबर, 2011)

फटकार काल या टकराव काल
कल ही राजस्थान हाईकोर्ट ने भंवरी देवी मामले में राज्य की सरकार को फटकारा है। न्यायिक इतिहास यदि कोई लिखा जा रहा है या लिखा जायेगा तो इस समय की घटनाओं का उल्लेख शायद फटकार काल के रूप किया जायेगा। इतिहासकार यदि हिन्दी साहित्य का रसिक हुआ तोउपालंभ काल भी कह सकता है, और इतिहासकार का जुड़ाव पत्रकारिता से हुआ तो हो सकता हैटकराव काल कहे। क्योंकि टीवी और अखबार ऐसी घटनाओं को कार्यपालिका (सरकार) और न्यायपालिका में टकराव के रूप में प्रचारित करते रहते हैं।
न्यायिक इतिहास में चाहे इस काल का उल्लेख किसी भी रूप में हो, वर्तमान में तो देश-प्रदेश के जागरूक नागरिक की उम्मीदों को यह कालउम्मीद से होने का अहसास कराता दीखता है। सुप्रीमकोर्ट भी इस समय केवल केन्द्र सरकार को बल्कि राज्य सरकारों को भी जब-तब अपनी सक्रिय उपस्थिति का प्रमाण देता रहता है। न्यायपालिका की इस सक्रियता के चलते केंद्र और राज्य की सरकारें भारी दबाव में भी दीखने लगी हैं। इसका एक बड़ा प्रमाण केन्द्रीय कानूनमंत्री सलमान खुर्शीद का वो बयान है जिसमें वे विकास और पूंजी नियोजन के नाम पर बड़े व्यापारियों को जेल भेजे जाने की वकालत करते दीखते हैं, चाहे उसने कैसा भी आर्थिक अपराध किया हो। क्या यह बयान उस आपराधिक कुचक्र को ही पुष्ट नहीं करेगा जैसा कि आजकल होने लगा है कि आपराधिक प्रवृत्तियों से धन कमाओ और व्यापार शुरू करो और व्यापार में चोटी तक पहुंचने के लिए आर्थिक अपराधों का सहारा लेते जाओ!
मनोकामना पूर्ण राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री या..........
कुछ लोगों ने राष्ट्रपति होने की तो कुछ ने प्रधानमंत्री होने की अपनी इच्छाएं जाहिर कर दी। और कई परार्थी दूसरोें को ही यह पद दिलाने में दुबले होते जा रहे हैं।
बहुत से ऐसे भी हैं जो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री आदि-आदि बनने की इच्छा तो रखते हैं लेकिन शायद हौसले की कमी या मौके की उडीक में ही पूरी जिन्दगी गुजार देते हैं और गुजार रहे हैं।
अब इंफोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति ने तो साफ-साफ ही कह दिया कि वे राष्ट्रपति बनना चाहते हैं। कई लोग अन्ना हजारे को राष्ट्रपति बनाना चाहते हैं जबकि वे लगातार आना-कानी कर रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी लंबे समय से पीएम इन वेटिंग हैं। बीच में उन्होंने यह पद छोड़ने की इच्छा जाहिर भी कर दी थी, पर शायद कल नारायणमूर्ति के बयान ने ही उन्हें दुबारा प्रेरित किया होगा। क्योंकि इस बार रथयात्रा में तो रथ साथ दे रहा है और ही पब्लिक का उत्साह। अन्यथा कल फिरमन मन भावै, मूंड हिलावे की तर्ज पर प्रधानमंत्री बनने को तैयार नहीं होते। कांग्रेस में तो इस पद की इच्छा जाहिर करना भी अपराध की श्रेणी में आता है, तभी जाहिरा तौर पर तो लगभग सभी कांग्रेसी राहुल को ही प्रधानमंत्री के रूप में देखने को उत्सुक और उतावले दीखते हैं।
बीजेपी में भी कई लोग लाइन लगा कर खड़े हैं। जैसे कोई लंबे-चौड़े प्रोमो के बाद सिनेमा हॉल में लगी नई फिल्म की टिकट लेनी हो। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, नरेन्द्र मोदी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली आदि-आदि और बहुत से इस फिराक में भी होंगे कि कब मौका मिले और कब इच्छा जाहिर करें। राजग सरकार में रहे वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने तो अपनी दावेदारी जाहिर ही कर दी है।

वर्ष 1 अंक 48, शुक्रवार, 14 अक्टूबर, 2011

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