Thursday, April 27, 2017

स्वअर्जित तमगे..../वाल्मीकि जयन्ती ( 12 अक्टूबर, 2011)

स्वअर्जित तमगे....
कल शाम आनन्द निकेतन में एक राजस्थानी कविता संग्रह का लोकार्पण था। आयोजन को भव्यता देने के लिए अध्यक्ष और विशिष्ट अतिथि बाहर से आमन्त्रित थे। पुस्तक पर टिप्पणी के लिए भी शहर के ही विशिष्ट माने जाने वाले प्रवासी साहित्यकार को बुलाया गया। हुआ यह कि पुस्तक पर टिप्पणी के शुरुआत में ही उन्होंने शहर की एक कॉलोनी को भ्रष्ट कह दिया। उसी कॉलोनी के एक साहित्यकार कार्यक्रम में मौजूद थे। उनको यह नागवार लगा जो जायज ही था। किसी भी समूह या भौगोलिक भू-भाग पर इस तरह की तोहमत लगाना परिपक्वता है और ना ही जायज। बीच-बचाव के नाम पर एक बुजुर्ग साहित्यकार बोले भी लेकिन उनकी मंशा बीच-बचाव की कम और वक्ता के बचाव की ज्यादा थी। उक्त कॉलोनी के बाशिन्दे साहित्यकार इसके विरोधस्वरूप उठ कर चले गए अन्यथा कार्यक्रम अच्छे खासे तमाशे में तबदील हो जाता। बायकाट करने वाले लेखक के जाने के बाद वक्ता ने अपने कहे पर तो माफी मांग ली, लेकिन बीच वक्तव्य में वे फिर बोल गये कि शहर के लोग संस्कृति के नाम पर पाटों पर अपना समय बरबाद करते हैं। इस पर एकबारगी सुगबुगाहट भी हुई लेकिन उन्होंने बर्दाश्त कर लिया। जबकि सामान्य नियम की मानिंद दिये गये इस वक्तव्य को भी उचित नहीं कहा जा सकता।
बाद में जब विशिष्ट अतिथि बोले तो उन्होंने भी बाय काट कर चले गये साहित्यकार का उपहास ही किया, जो अपरिपक्व और लगभग बचकाना था। साहित्यकार बनने पर स्वअर्जित पहला तमगा संवेदनशीलता का लगा लिया जाता है। उक्त तमाशे में उल्लिखित सभी पात्रों को कितना संवेदनशील मानेंगे आप़?
वाल्मीकि जयन्ती
आदिकवि माने जाने वाले महर्षि वाल्मीकि की कल जयन्ती थी। इसी उपलक्ष में कल उन पर कई कार्यक्रम भी हुए। अखबारों में उन कार्यक्रमों की खबरें इस नसीहत के साथ भी लगी हैं कि हमें उनके आदर्श अपनाने चाहिएं। इसी के साथ कल केविनायक और आज के अखबारों में जिले के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी रिश्वत के एक मामले में धरे जाने की खबर भी हैं। दुर्योग से उन अधिकारी का सरनेम भी वाल्मीकि ही है।

जैसा कि यहां पहले भी जिक्र हुआ है कि इन दिनों रोज ही इस तरह की कार्यवाहियां हो रही हैं। ऐसे मामलों के आरोपियों में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों की संख्या भी कम नहीं होती। इसकी चर्चा उनसे उच्च वर्ग के कहे जाने वाले लोग जातीय और वर्गीय दंभ के साथ करते भी हैं। इस रिश्वतखोरी में लगभग सभी वर्गों के लोग लिप्त देखे गये हैं। पकड़े जाने वालों में आनुपातिक तौर पर यदि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग ज्यादा हैं तो क्या इसकी वजह भी वर्गीय दंभ और अहम् ही नहीं है, यह एक शोध और अन्वेषण का विषय हो सकता है। यह उल्लेख किसी भी नाजायज कार्य को जायज ठहराने के भाव से नहीं किया गया है।

                                            वर्ष 1 अंक 46, बुधवार, 12 अक्टूबर, 2011

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