Monday, July 17, 2023

अपने यहां की आंधी और अन्ना

 थार के इस रेगिस्तान में आंधियों के कई रूप देखने को मिलते हैं। कभी आसमान में चढ़ी इस आंधी से हौले-हौले बरसती रेत, तो कभी तेज हवा या तूफान से, आपके आस-पास से गुजरती-धकियाती रेत। रेत का उठाव कभी घना हो, तो काली आंधी। कभी आसमान में इतनी ही रेत कि सूरज का प्रकाश उसमें से अपने को गुजार भर ले तो पीली आंधी!

कभी क्षितिज पर ऐसा नजारा कि लगे चन्द मिनटों में यह आंधी पूरे शहर को अपने आगोश में भर लेगी। लेकिन कभी ऐसा भी होता है कि क्षितिज को छूती यह आंधी बिना शहर को छूए निकल जाती है। कुछ ऐसा ही एहसास करवाता भ्रष्टाचार की खिलाफत का अन्ना आन्दोलन मानो देश के उद्वेलन को छूकर निकल गया।

कल अन्ना फिर दिल्ली में एक दिन के अनशन पर थे-इस बार अन्ना के आन्दोलन की बेल ने योग प्रशिक्षक रामदेव को सहारे का तना माना है। क्या रामदेव भी तने की भूमिका निभा पाएंगे। जिनकी मंशा अपने व्यापार को फलाने-फुलाने को केवल सुर्खियां बटोरना भर है। रामदेव और उनके साथी बालकृष्ण पर और उनके ट्रस्टों पर आये दिन अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं। ऐसी नहीं तो इससे कुछ कम स्थिति अन्ना टीम के सदस्यों की है।

इन्हीं सब के चलते भ्रष्टाचार से धायी इस देश के आम-आवाम की उम्मीद का उफान तिरोहित होने में देर नहीं लगी। अन्ना फिर कल जब नई दिल्ली में संसद के पास रामदेव के साथ बैठे तो न तो लोगों का पिछले वर्ष अप्रेल और अगस्त जैसा उफान था और न ही उनमें वैसा उत्साह। मंच पर भी माला की उस डोरी का सर्वथा अभाव देखा गया जो फूलों को या मणियों को एक तरतीब में पिरोये रखती है।

लगता है अन्ना के पास विचार और विवेक का अभाव है। गांधी ने कहा है कि बिना शुद्ध साधनों के शुद्ध साध्य की उम्मीद नहीं की जा सकती है। ऐसा भाव न तो खुद अन्ना में है और न ऐसी प्रतिबद्धता टीम अन्ना में। रामदेव का मकसद केवल अपना व्यापार करना भर है। अत: उनसे कोई बड़ी उम्मीद करने का हेतु नजर नहीं आता।

पिछले एक वर्ष में अन्ना के आस-पास से उमड़ी उम्मीदों और नाउम्मीदों ने देश का सबसे बड़ा नुकसान यह किया कि यह देश फिर से किसी अन्य पर वैसे उफान और उत्साह के साथ भरोसा करेगा या नहीं।


दीपचन्द सांखला

4 जून, 2012


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