Wednesday, December 26, 2018

फिर फिर शहर कांग्रेस अध्यक्षी (5 मार्च, 2012)

पतंगों का त्यौहार अपने यहां आखातीज होता है। नई लटाई और नई पतंगों के बावजूद लूट की पतंग और लूट के मंजे के अपने मजे होते हैं। इस लूट की तनातनी में कोई पतंग फट जाती है और मंजे उलझ जाते हैं। फिर चेप-चाप कर पतंगें और सुलझा कर मंजे को लपेटने के भी अपने सुख होते हैं। देखा गया है कि कभी-कभार झुंझलाकर उलझे मंजे को किशोर फेंक भी देते हैं।
लेकिन अपने प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. चन्द्रभान अब किशोर छोड़ युवा भी नहीं रहे हैं ऊपर से छवि भी धीरज वाले और परिपक्व होने की है, सो बुरी तरह उलझे कुछ देहात-शहर अध्यक्षों के मामलों को सुलझाने की अपनी पुरजोर कोशिशों के बाद भी सुलझा नहीं पा रहे हैं। उनकी विडम्बना यही है कि उस किशोर जैसा विकल्प उनके पास नहीं है जो झुंझलाकर उलझे मंजे को फेंक देता है।
अपने शहर और देहात दोनों ही कांग्रेस अध्यक्षों के मामले भी ऐसे उलझे हैं कि सुलझने का नाम ही नहीं लेते हैं। उक्त दोनों ही अध्यक्ष पद अपने यहां के कुछ बड़े नेताओं की नाक का सवाल बन गये हैं। तभी तो एक से अधिक बार तारीखें देने के बावजूद वे इन पदों पर नियुक्ति की घोषणा नहीं कर पाते हैं। वैसे इन सब पदों पर मतदान द्वारा ही निर्णय होने चाहिए--लेकिन अब दोनों ही बड़ी पार्टियों (भाजपा-कांग्रेस) के अपने चाल चरित्र में यह संभव नहीं है। पिछले तीस से ज्यादा वर्षों से शहर की राजनीति करने वाले डॉ. बीडी कल्ला अपनी चलाने को एडी चोटी का जोर लगाये हुए हैं। मोतीलाल बोरा से मुलाकात कर उन्होंने इसे साबित भी किया है। बीकानेर शहर कांग्रेस को अपनी पारिवारिक कांग्रेस बनाये रखने की कल्ला की जिद का पता होने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस बेबस है--जिसके दो कारण समझे जा सकते हैं--एक तो कल्ला की लम्बी राजनीतिक सक्रियता के चलते पार्टी में उनकी कई दिग्गजों तक पहुंच है। उनकी इस पहुंच पर तो स्थानीय कल्ला विरोधियों का दावं नहीं चल सकता। लेकिन दूसरा जो कारण है उससे कल्ला विरोधी चाहे तो पार पा सकते हैं।
शहर अध्यक्षी के लिए मोटा-मोट तीन गुट बने हुए हैं कल्ला गुट, भानीभाई गुट और राजूव्यास-तनवीर मालावत गुट। पहले दो गुटों की ताकत तो अपने दम पर है पर तीसरे गुट की ताकत के तार मोतीलाल बोरा और तनवीर के अपने बनाये रिश्तों के चलते है। हालांकि भानीभाई और तनवीर गुटों के बीच संवाद है लेकिन वे दोनों ही अपनों पर अड़े हैं। वह इस शाश्वत वाकिये को भूल जाते हैं कि दो की लड़ाई में तीसरा फायदा उठा ले जाता है। शहर राजनीति में पार्टी की अंदरूनी लड़ाई में फिलहाल इन दोनों गुटों की लड़ाई कल्ला गुट से है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त की कूटनीति पर चलते होना यह चाहिए था कि दोनों एक होकर अपना काम निकाल ले जाते। लेकिन कल्ला विरोधी दोनों गुटों में इस राजनीतिक चतुराई की कमी के चलते देखा गया है कि कल्ला लाख विरोधों के बाद भी अपनी चलाने में सफल हो जाते हैं।
जो परिस्थितियां बन रही है उसमें राजू व्यास-तनवीर गुट यदि भानी भाई गुट के लिए त्याग करें तो ऐसा लम्बी पारी में उनके हित में जायेगा और अगर वे अड़े रहते हैं तो कल्ला इतने सक्षम तो हैं ही कि वे अपने ही किसी को इस पद पर ले आयेंगे।
-- दीपचंद सांखला
5 मार्च, 2012

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