Thursday, December 6, 2018

बीकानेर : विस्तार खाता कस्बाई शहर (16 फरवरी, 2012)

अपना यह कस्बाई शहर अब विस्तार खाने लगा है। कहने को आत्म-मुग्धता में हम इसे छोटीकाशी कहते रहे हैं। बिना उन दावों को खारिज किये जिसमें राजस्थान के ही फलौदी जैसे कस्बे से लेकर महानगर होने की दहलीज पर खड़े जयपुर जैसे कई शहरों और कस्बों के आत्ममुग्ध अपने-अपने शहर-कस्बे को छोटीकाशी कहते रहते हैं।
अपने शुरुआती वाक्य ‘विस्तार खाता’ पर पुनः आता हूं। विस्तार खाना एक नकारात्मक स्थानीय कहावत है, घाव में रस्सी पड़ कर फैलने के संदर्भ में सामान्यतः इस का प्रयोग होता है। अखबार देखते हैं तो चोरी, लूट, बलात्कार, हत्या और दुर्घटनाओं के समाचार पढ़कर जो भाव अपने शहर के संदर्भ में मन में आते हैं उनमें एक यह भी है कि अपना शहर अब ‘विस्तार खा’ रहा है। महानिरीक्षक से सिपाही तक की पूरी व्यवस्था के बावजूद यह सब होता है। जोधपुर, जयपुर, दिल्ली तक के अपराधों के आंकड़े आजकल कोई सिहरन पैदा नहीं करते, केवल टीवी, अखबारों की सुर्खी भर बनते हैं। तो क्या केवल पुलिस-प्रशासन ही इसके लिए जिम्मेदार है। या इसके लिए विकास की आधुनिक अवधारणा, सामाजिक संरचना और राजनीतिक ताने-बाने की भूमिका की पड़ताल भी जरूरी है। पुलिस अगर कुछ नहीं कर पा रही है तो क्या इसके लिए एकमात्र वही जिम्मेदार है? इस तरह के मुद्दों पर बिना किसी आग्रह के विचार की जरूरत है।
-- दीपचंद सांखला
16 फरवरी, 2012

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