Thursday, December 6, 2018

आत्महत्या (17 फरवरी, 2012)

कल दोपहर अठारह वर्षीय कोमल ने फांसी खा कर अपने जीवन को समाप्त कर लिया। खबरों में इस तरह का उल्लेख नहीं है जिससे जाहिर हो कि कोमल ने ऐसी कोई टीप छोड़ी हो जिसमें इस जघन्य करतूत के कारण का कोई उल्लेख हो। आत्महत्या एक ऐसा अपराध है जिसे करने वाला न्यायिक सजा का भागी नहीं होता। लेकिन उसके परिजन आजीवन मानसिक सजा के भागी जरूर बन जाते हैं। इसका दुरूपयोग भी होता देखा गया है, ऐसे कई मामले न्यायाधीन हो सकते हैं जिनमें हत्यारे अपने अपराध को छुपाने के लिए आत्महत्या करार देने की कोशिश करते हैं।
बात जब कोमल के बहाने से शुरू की है तो वहीं लौटते हैं। कोमल की शादी पिछले वर्ष ही हुई थी, पूरे बारह महीने ही नहीं हुए कि उसने अपना जीवन समाप्त कर लिया। इस दुर्घटना विशेष के लिए कौन दोषी है और किसे सजा मिलनी चाहिए, यह देखने और न्याय करने का काम कानून और व्यवस्था का है। इस तरह की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। ऐसा होता क्यों है, इस पर समाज स्तर पर चिंता की बजाय विचार की ज्यादा जरूरत है।  समाज स्तर पर यह ज्यादा विचारणीय इसलिए भी है कि कोई व्यक्ति आत्महत्या को ही समाधान कैसे मान लेता है? इस तरह की घटनाओं के बाद होने वाली चर्चाओं में आत्महत्या के सम्बन्ध में जो जानकारियां आती हैं उनमें कई बार बहुत मामूली या कई बार कुछ जटिल या बेहद जटिल कारण सामने आते हैं। यद्यपि इन्हें अन्तिम इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि भुक्तभोगी मौजूद नहीं रहता है। तथाकथित आधुनिकीकरण या तकनीक पर ही केवल दोष मढ़ना इसलिए उचित नहीं होगा क्योंकि समाज में इस तरह की घटनाएं हमेशा ही होती रही हैं। प्रत्येक व्यक्ति की अपने परिवार के और अपने समाज के प्रति जिम्मेदारियों की समझ में कमी भी क्या इस तरह की दुर्घटनाओं का कारण नहीं बनती? असीमित इच्छाएं और अपनी पात्रता से ज्यादा पाने की आकांक्षाएं भी इस तरह की घटनाओं की प्रेरक बनती देखी-सुनी गई हैं। समाज यदि विवेकपूर्ण तरीके से विचार करना शुरू करे तो इस तरह के हादसों के अलावा भी अन्य कई पारिवारिक-सामाजिक समस्याओं से निजात पायी जा सकती है।
-- दीपचंद सांखला
17 फरवरी, 2012

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