भंवरीदेवी प्रकरण में लगभग पूर्ण आरोप-पत्र कल सीबीआई ने अदालत में पेश कर दिया है। इसे लगभग इसलिए लिखा क्योंकि सीबीआई के हिसाब से इस प्रकरण की एक महत्त्वपूर्ण आरोपी इन्द्रा बिश्नोई और दो-एक अन्य अभी उनकी पहुंच से बाहर हैं। सामाजिक ताने-बाने से इस भंवरी प्रकरण को देखें तो यह स्त्री की दोयम हैसियत को अभिशापित इस समाज के दलित वर्ग से आई उस स्त्री की कथा है जिसकी अति महत्त्वाकांक्षी होने की रफ्तार को उसके सुदर्शना होने और सरकारी नौकरी में होने ने बेकाबू कर दिया था।
सीबीआई के आरोप-पत्र के अनुसार दो विपरीत सत्ताकांक्षियों-महिपाल मदेरणा की सत्ता में होने से जगी हवस और मलखानसिंह की सत्ता में भागीदारी की आकांक्षा की शिकार वह भंवरी ही हुई जिसके साथ दोनों के संबंध रहे होने का आरोप है। महिपाल और मलखान एक ही भौगोलिक क्षेत्र से आते हैं, सत्ता में क्षेत्रवार संतुलन को बनाये रखने के चलते बिना महिपाल के हटे मलखान मंत्री नहीं बन सकते थे। मलखान ने अपनी ही बहिन इन्द्रा की मदद और भंवरी की सहमति और तत्परता से भंवरी और महिपाल के अंतरंग क्षणों की सीडी बनवाई, यह सीडी ही भंवरी के काल का कारण बनी।
अब देखिये जिन मलखान ने सत्ता हासिल करने के लिए महिपाल को पदच्युत करने की साजिश रची उन्हीं मलखान को जब यह लगा कि स्वयं उनके समुदाय के प्रतिष्ठित खेजरली मेले में भंवरी अपनी एक बेटी के मलखान से होने की बात को बेपर्दा कर देगी तो यही मलखान उसी भंवरी को मरवाने के लिए महिपाल के साथ हो लिए जो खुद भंवरी के साथ की उस अंतरंग सीडी से ब्लैकमेल होने से परेशान थे। जबकि सीडी की साजिश के सूत्रधार मलखान ही थे। आपको यह कहानी उन कहानियों जैसी नहीं लगती है जो कभी बचपन या किशोरवय में शायद सुनी हो जिनकी विषय वस्तु राजमहलों के षड्यंत्रों से प्रेरित होती थीं!
कहने के मानी यही है कि देश की आजादी को पैंसठ वर्ष होने को हैं और इन पैंसठ वर्षों में अपने सामाजिक ताने-बाने में और सत्तारूपों में मोटा-मोट कोई बदलाव आज तक नहीं आ पाया है। अनुसूचित जाति और पिछड़ों के आरक्षण का तर्कहीन क्रियान्वयन तथा स्त्रियों को आरक्षण की कवायद के बावजूद कुछ प्रतीकात्मकों को छोड़ दें तो सभी सत्तारूप आज भी उच्च वर्ग, धनपतियों, भूपतियों और पुरुषों के पास हैं और इनका शिकार निम्नवर्ग, निर्धन, भूमिहीन और स्त्रियां ही होती आईं हैं, उन वर्गों से आने वाली स्त्रियां भी जिनको कोई न कोई सत्तारूप हासिल हैं।
बीकानेर मूल की जयपुर में कल ही अकाल मृत्यु की शिकार हुई एक स्त्री परवीन जिसकी मृत्यु के बारे में अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि उसे आत्महत्या को मजबूर होना पड़ा या उसे मार दिया गया! लेकिन इतना स्पष्ट जरूर हो गया है कि उसके मायके वाले और ससुराली दोनों ही परिवार संपन्न और समृद्ध हैं। सम्पन्नता के हिसाब से किसी भी प्रकार की कोई कमी न होने के बावजूद उसे या तो हिंसा का शिकार होना पड़ा या स्वयं उसे अपने प्रति हिंसक होना पड़ा। मात्र छब्बीस की उम्र में उसे अपनी जान गंवानी पड़ी! अब वह चाहे भंवरी हो या परवीन दोनों की नियति भिन्न होने के बावजूद परिणति एक ही हुई--मृत्यु। क्या यह दोनों ही घटनाएं समाज में स्त्री की दोयम हैसियत का खुलासा नहीं करतीं?
उक्त बातों का आधार सीबीआई के आरोप-पत्र, प्रथम सूचना रिपोर्ट, पीड़ित पक्ष और आरोपियों के बयान हैं। यह दोनों मामले न्यायालय में कौन-सी करवट लेते हैं, देखना होगा।
-- दीपचंद सांखला
1 मार्च, 2012
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