Tuesday, August 20, 2013

श्रद्धा में हेकड़ी-तफरी की मिलावट

तालाब जैसे स्थिर और नदियों जैसे बहते स्रोतों के पानी की स्वच्छता को लेकर रिपोर्टें आए दिन मीडिया में आती रहती हैं और चेताया भी जाता रहता है कि इनका जल सभी तरह के जीव-अजीवों के लिए नुकसानदायक है इसके बावजूद श्रद्धा की आड़ लेकर नजरअन्दाजी की जाती रही है ना केवल नजरअन्दाजी बल्कि अब तो इन तमाम तीर्थों को तफरी का बड़ा हेतु भी मानने लगे हैं इसी तफरी बरताव के परिणाम केदारनाथ त्रासदी के रूप में भुगत चुके हैं तीर्थों, धार्मिक मेलों से श्रद्धा सिरे से गायब होती जा रही है और इन स्थलों तक पहुंचने के मार्ग हों या स्थान गरीब तीर्थ-यात्रियों के अलावा वहां अधिकांश अब तफरी के लिए ही जाने लगे हैं हो सकता है इसअधिकांशशब्द पर कइयों को आपत्ति हो लेकिन सच्चाई यही है
सावण के महीनों में ऐसे धार्मिक जल स्रोतों से जल लाकर स्थानीय शिव मन्दिरों में चढ़ाने की परम्परा पुरानी है लेकिनश्रद्धा सैलाबके नाम पर यह परम्परा विकराल होती जा रही है इस तरह की यात्राओं में शामिल अधिकांश श्रद्धा से कम और हेकड़ी और तफरी से शामिल ज्यादा होने लगे हैं तभी इन यात्राओं के दौरान भी दुर्घटनाओं और बदमजगियों के समाचार आये दिन देखने-सुनने को मिल जाते हैं यह तो तब है कि मीडिया में बैठे धर्मभीरू लोग इस तरह की खबरों को तवज्जो नहीं देते बिहार के धमाराघाट स्टेशन पर कल घटी दुर्घटना में 37 जाने चली गईं इस तरह की दुर्घटनाओं का एक कारण तफरी-हेकड़ी की जुगलबंदी को भी माना जा सकता है प्रशासन और रेलवे को उनकी लापरवाही और निकम्मेपन से बरी नहीं किया जा रहा है, वहां भी अपने इसी समाज के लोग हैं

20 अगस्त, 2013

1 comment:

Ek ziddi dhun said...

हेकड़ी ही तो इस श्रद्धा का फल है। यह भी न हो तो श्रद्धा किस काम की