Friday, August 23, 2013

पुलिस का ट्रैफिक महकमा

लगता है बीकानेर पुलिस को अपने ढर्रे की या छवि की बड़ी चिन्ता है, परसों के इसी कॉलम में पुलिस की सकारात्मक सक्रियता का उल्लेख करना उसके ट्रैफिक महकमे को शायद नागवार लगा। तभी महात्मा गांधी रोड पर कल ही उसने असलियत दिखा दी। प्रेमजी पॉइंट पर कल की घटना में बिना नम्बर की एक बाइक पर बिना हेलमेट के युवकों की पुलिस से हुई कहा-सुनी ने इतना तूल पकड़ा कि ना केवल कई घंटे वहां का बाजार बंद रहा बल्कि व्यापारी भी दो फाड़ हो गये, अन्यथा ये व्यापारी आजकल संगठन के रूप में कम और गिरोह के रूप में व्यवहार ज्यादा करने लगे हैं। रेल फाटकों की समस्या के हर समाधान का विरोध इसकी बानगी है।
बात आज पुलिस महकमे की ही कर लेते हैं उसमें भी यातायात यानी ट्रैफिक पुलिस की। विनायक ने पहले भी लिखा है कि कम से कम बीकानेर में तो ट्रैफिक पुलिस की जरूरत नहीं क्योंकि पिछले दस सालों से यह पुलिस अपनी ड्यूटी से च्युत होती देखी गई है। पिछले दो वर्षों से तो स्थिति ऐसी है कि यह ट्रैफिक महकमा सिवाय अधिकृत-अनाधिकृत उगाही के कुछ करता ही नहीं है। शहर के नो एण्ट्री के कई रास्तों के बारे में कहा जाता है कि मात्र पचास रुपये पकड़ाते हुए वहां से कोई भी भारी वाहन बेधड़क गुजर सकता है। इस रीत से अनभिज्ञ कोई भारी वाहन वाला तब फंस जाता है जब वह निर्धारित जगह चढावे से चूक जाता है और धरा जाता है। तब पचास में एक और बिन्दी लगते देर नहीं लगती। बाजार में पचास के नोटों की कमी की बात पर एक चुटकला प्रचलित हैजावो, नो एण्ट्री की चौकियों से चाहे जितने ले आओ।अलावा इसके हेलमेट बेल्ट चैकिंग के अधिकृत और अनाधिकृत उगाही के विभिन्न थानों के अपने अलग टारगेट हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए ट्रैफिक पुलिस से अलग ये भी गाहे-बगाहे खड़े मिल जाएंगे।
उक्त सब लिखने के यह मानी कतई नहीं है किविनायकहेलमेट और बेल्ट लगाने का विरोधी है। इनका उपयोग किया ही जाना चाहिए। आम वाहन चालक यातायात के इन सामान्य नियमों का स्वतः पालन करने लग जाये तो हो सकता है बीकानेर के इस ट्रैफिक महकमे का ध्यान कुछ जरूरी सुधारों और उपायों की तरफ जाये। जैसे चौराहों पर बने पुलिस पॉइंट पर खड़े होकर यातायात को सुचारु करवाना, रेलवे फाटक बंद होने पर यातायात को सही तरफ खड़े रहने और फाटक खुलने पर सही तरफ से ही चलने को प्रेरित या मजबूर करना। विभिन्न चौराहों-तिराहों पर सवारियां उतारने-चढ़ाने के लिए बेतरतीब खड़ी होती बसों, जीपों और ऑटो रिक्शाओं को तरतीब में रखना। गाड़ियों पर अनाधिकृत रूप से लगी लाल-नीली लाइटों को हटवाना, नम्बर प्लेटों की दुरुस्तगी देखना, मालवाहनों और लोडिंग ऑटो रिक्शाओं को सवारी ढोने से रोकना, सवारी गाड़ियों-ऑटो रिक्शाओं में तयशुदा से ज्यादा सवारियां होने पर कार्रवाही करना। स्कूली वाहनों की नियमानुकूलता और सुचारुता की निगरानी करना। काले कांच के वाहनों को चलन से बाहर करना क्योंकि चलती और कोने-कोचरों में खड़ी ऐसी गाड़ियों में पीना-पवाना और व्याभिचार भी शहर में अब होने लगे हैं। शहरी यातायात के लिए एक तरफा व्यावहारिक रास्तों की तलाश और उनका पुख्तगी से संचालन आदि-आदि कितनी ही ऐसी ड्यूटियां ट्रैफिक पुलिस की गिनाई जा सकती हैं जिन्हें निभाते इस महकमे को पिछले लम्बे अर्से से नहीं देखा है। अगर उक्त सब ड्यूटियां बीकानेर पुलिस का ट्रैफिक महकमा पूरी नहीं कर रहा है तो फिर वह करता क्या है? बीकानेर पुलिस की यातायात शाखा का (अब तो सर्किल भी हो गया है,) संस्थापन खर्च ही सालाना करोड़ों में होगा, सार्वजनिक धन की इस बर्बादी के बिना ही हाल-फिलहाल जैसा ट्रैफिक तो इस शहर में चल ही सकता है।

23 अगस्त, 2013

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