Monday, August 26, 2013

दुष्कर्म पर दोहरे मानदण्ड

देश और समाज में बहुत से अपराध और दुर्घटनाएं ऐसी हुईं जिनके लिए किसी को भी दोषी मुकर्रर नहीं किया गया सजा तो दूर की बात है। ऐसा इसलिए होता है कि या तो अनुसंधान ढंग से नहीं होता, हो जाता है तो गवाह अपना बयान बदल देते हैं। यह दोनों सकारात्मक हों तो देखा गया है कि पीड़ित खुद ही बदल जाता है। इस सम्बन्ध में कोई सर्वेक्षण हुआ कि नहीं पता नहीं, अगर होता है तो परिणाम दिलचस्प भी होंगे और चिन्ताकारक भी।
16 दिसम्बर को दिल्ली की सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद दिल्ली और उसके बाद देशभर में हुए उद्वेलन ने इतनी आश्वस्ति जरूर दी कि हमारी संवेदनाएं अभी पूरी तरह नहीं चूकी हैं। इसके यह मानी नहीं है कि 16 दिसम्बर के बाद वैसी घटनाएं हुई ही नहीं, लगातार हो रही हैं, अधिकांशतः तो दर्ज ही नहीं होती।
ऐसी घटनाओं की पुनरावृति के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार समाज में स्त्री की दोयम हैसियत है जिसके चलते या तो भुगतभोगी खुद ही जब्त कर लेती है और उसने किसी को कह दिया, किसी निकटस्थ को पता लग गया तो वह दुनियादारी की सीख दे देगा। इसके बावजूद भी देशभर में प्रतिदिन बलात्कार और दुष्कर्म के सैकड़ों मामले दर्ज होते हैं।
मुम्बई में हाल ही में एक फोटो पत्रकार युवती के साथ जो घिनौनी हरकत हुई उसके तुरन्त बाद ही पुलिस और वहां की सरकार मुस्तैद देखी गई और पांचों आरोपियों को कल तक गिरफ्तार भी कर लिया। इस के बाद से ही 16 दिसम्बर की घटना के बाद उठे सवाल फिर खड़े होने लगे और राज को पूछा जाने लगा कि उसने जिन कदमों की तब घोषणा की, उन्हें अभी तक क्रियान्वित क्यों नहीं किया गया। ऐसा पूछना जायज ही है। इन आठ महीनों में सरकार ऐसी घटनाओं को  कम करने के उन उपायों को लागू करने में तत्पर नहीं दिखी, जिनकी घोषणा उसने की, एक हजार करोड़ का फंड, फास्टट्रेक कोर्ट जैसे राहत और उपाय जरूरी थे और हैं। यह सब लागू होने के बाद ऐसी घटनाएं रुक ही जायेंगी, नहीं कहा सकता लेकिन कानून के राज का भय कायम होना जरूरी है, जो फिलहाल लगातार कम होता जा रहा है। असल उपाय तो आदमी का मन बदलना है जिसके बदलने की मंशा हाल फिलहाल तो नहीं दिखाई देती, इसीलिए राज का भय जरूरी है।
दुष्कर्म और बलात्कार के मामलों को लेकर हमारी दोहरी मानसिकता लगातार देखी जा सकती है। किसी परिचित, रिश्तेदार, प्रभावी और दबंग द्वारा ऐसा करने पर कानून व्यवस्था, मीडिया और उन सभी झण्डाबरदारों कोसांप सूंघ जाता हैजो अन्यथा मुखर रहते हैं। प्रवचनकार आसाराम का उदाहरण ताजा है। मुम्बई बलात्कार में भी जो तुरत-फुरत कार्रवाही हुई वह प्रथम सूचना रिपोर्ट पर ही हुई लेकिन ठीक उसके बरअक्स आसाराम पर कार्रवाई करने में तत्परता नहीं देखी जा रही है। समाचार है कि आसाराम के आदमी लगातार प्रयासरत हैं कि आरोप लगाने वाली युवती और उसके परिजन शिकायत वापस ले लें। आसाराम ना केवल इधर-उधर घूम रहे हैं बल्कि गाहे-बगाहे मीडिया के सम्मुख प्रकट होकर सफाई भी दे रहे हैं। कहने को कहा जा सकता है कि सजा तो कोर्ट देगा, लेकिन उससे पहले की तहकीकात और हिरासत की जरूरत ना होती तो 16 दिसम्बर और मुम्बई की हाल ही की घटना के दोषी भी आसाराम की तरह बाहर घूम-फिर सकते थे। इस तरह के दोहरे मानदण्डों के चलते ही ऐसे कुकृत्य करने और करने की मंशा रखने वालों को अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार वहम होता है कि वह बच जाएगा या उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। इस तरह का वहम ना हो तो समाज में ऐसी घटनाओं में कमी सकती है। इसलिएसमरथ को नहिं दोष गुंसाईजैसी पंक्ति की समाज में मान्यता और प्रतिष्ठा दोनों कम होना जरूरी है अन्यथा ऐसी घटनाओं का होना कम नहीं होगा।

26 अगस्त, 2013

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