Thursday, August 1, 2013

राहुल उवाच के बीकानेरी मायने

बीकानेर शहर के कुछ नेताओं को ड्राईंग रूम पर्सनल्टी कहा जाता रहा है, इस उपमा के वृहत्तर रूप में कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी देखा जा सकता है। वे जब-जब भीमास लीडरहोने की कोशिश करते हैं तब-तब असफल होते हैं। लौट कर फिर बंद भवनों-कमरों की राजनीति करने लगते हैं। उन्हें बताए जाने पर कि लोकतंत्र में मास लीडर होना ज्यादा जरूरी है, तब वे फिर लौटने की कोशिश करते हैं। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी में जो स्थिति संगठन मंत्री की होती है वैसी-सी स्थिति कांग्रेस में राहुल गांधी की है।
सुना है राहुल ने कल राजस्थान के कांग्रेसी खेवणहारों की क्लास ली। क्लास बंद कमरे में थी सो यह पता नहीं चला कि राहुल के सामने बैठों में अधिकांश की भाव भंगिमाएं क्या थी। यह कयास इसलिए भी रोचक हो सकता है कि ये सभी हर क्षेत्र में राहुल से ज्यादा परिपक्व होंगे, लेकिन पारिवारिक अनुकूलता के चलते बिना किसी अनुभव के बावजूद राहुल उनकी क्लास ले रहे हैं।
ऐसी किलेबंदियों में होने वाली बैठकों की बातें घूम-फिर कर मीडिया तक पहुंच जाती हैं और प्रकाशित-प्रसारित भी हो जाती हैं। शत-प्रतिशत ना सही, मोटा-मोट विवरण वैसा ही होता है, जैसा घटित होता है। कल के राहुली मिजाज का विश्लेषण बीकानेर के सन्दर्भ में करें तो जिले की चुनावी बिसात की गोटियां काफी कुछ इधर-उधर होती दिखती है। क्योंकि जिस तरह के संकेत राहुल ने दिए हैं उसमें टिकट के दावेदारों के तो क्या स्वयं अशोक गहलोत द्वारा तय चुनावी समीकरण इधर-उधर होते दिखते हैं। जिन बसपाइयों और निर्दलीयों ने सरकार को चलाए रखने के लिए गहलोत को समर्थन दिया, सबसे ज्यादा पानी उन्हीं की उम्मीदों पर फिरता दिखता है। राहुल गांधी कह चुके हैं कि बाहरियों (आउट साइडर) के आते ही या बुला कर टिकट नहीं दिया जाना चाहिए और यदि यह भी तय हो गया है कि उम्मीदवार के चयन का मानक ऐके एन्टनी के तय मानकों पर आधारित होगा तो इन दोनों बातों की क्रियान्विति ना केवल अशोक गहलोत की बल्कि संगठन अध्यक्ष डॉ. चन्द्रभान की चौसर खुर्द-बुर्द करेगी।
एन्टनी कमेटी के मानक लागू होते हैं तो जिले में सबसे ज्यादा प्रभावित डॉ. बीडी कल्ला होंगे, जो स्वयं चुनाव समिति में मनोनीत हुए हैं। ऐसी स्थिति में कला बन्धु अपने ही किसी परिजन को आगे कर सकते हैं और ऐसा हुआ तो डॉ. कल्ला के किसी पुत्र के बजाय जनार्दन कल्ला के किसी बेटे का नाम आगे किया जायेगा और यदि टिकट उनके परिवार में ही रहता है तो तब देखना यह दिलचस्प होगा कि क्या डॉ. कल्ला उसी तरह की भूमिका निभाते हैं, जिस तरह की भूमिका जनार्दन कल्ला, डॉ. कल्ला के लिए निभाते रहे हैं, यह तो हुई बीकानेर (पश्चिम) की बात।
अब बीकानेर (पूर्व) सीट की बात कर लेते हैं। पिछले चुनाव में लगभग चालीस हजार से हारे तनवीर मालावत तय नये मानकों के चलते टिकट दावेदारी की दौड़ से बाहर हो जाते हैं तो बीकानेर (पूर्व) के लिए कांग्रेस को कोई नया चेहरा तलाशना होगा। भाजपा की झोली में लगभग जाने वाली इस सीट के लिए कांग्रेस की किसी बाहरी चेहरे की तलाश की मुहिम को राहुल की बातों से धक्का लग सकता है और खुद कांग्रेस के पास जिले में ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो इस सीट को निकाल ले जाने का दावा कर सकें।
संभावित राहुली मानकों में बीकानेर (पश्चिम) सी स्थिति ही खाजूवाला की है। अन्यथा कांग्रेस इस सीट को निकालने के लिए कोई बाहरी चेहरा उतारना चाह सकती थी।
उक्त राहुली उवाच का सबसे दिलचस्प असर जिले की नोखा सीट पर हो सकता है। वहां से निर्दलीय जीते कन्हैयालाल झंवर सूबे की सरकार में संसदीय सचिव हैं और वहां से हारे कांग्रेसी रामेश्वर डूडी भी इस सीट के लिएदीना के लाल’ (मैं तो वही खिलौना लूंगा, मचल गया दीना का लाल) बने हुए हैं। इसका एक समाधान तो यह हो सकता था कि झंवर को जिले की किसी अन्य सीट से कांग्रेसी उम्मीदवार के रूप में लड़ाया जा सकता है। राहुल की कही के लागू होने के बाद ऐसा संभव नहीं होगा। लूनकरणसर और श्रीडूंगरगढ़ की सीटों पर टिकट को लेकर कांग्रेस में कोई खास खींचाताणी नहीं है तो सामने भारी भरकम देवीसिंह के चलते कोलायत कांग्रेस में यह खींचातानी दिखावे भर की होगी।
भवनों और बन्द कमरों की बैठकों के बाद राजस्थान के घाघ नेता जब मैदान में उतरेंगे तो राहुल की ऐसी अव्यावहारिक डोरियों से मुक्त होकर उतरेंगे, ऐसी संभावना ही ज्यादा है। क्योंकि राहुल को बहला दिया जायेगा कि चुनाव जीतने के लिए यह सब जरूरी है और प्रदेश में सरकार होगी तो 2014 के लोकसभा चुनावों में भी अनुकूलता रहेगी।

1 अगस्त, 2013

1 comment:

Astrologer Sidharth said...

मुझे तो राहुल गांधी और बीकानेर के किसी पाटे पर बैठे महाराज में अधिक अंतर नहीं लगता।


एक बार बोलता है ऐसा करना चाहिए

फिर पता चलता है कि ऐसा नहीं किया जा सकता

तो बोलता है

वैसा कर लेना चाहिए...


ये ऐसा वैसा करके 41 साल निकाल दिए अब रिटायरमेंट में जुम्‍मा जुम्‍मा दो दशक बचे, कैसे भी बीत ही जाएंगे... ;)