Saturday, May 30, 2015

लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरे की घंटी

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान चेन्नै ने अपने यहां चल रहे अंबेडकर-पेरियार सर्किल नाम के विद्यार्थी समूह की मान्यता इसलिए रद्द कर दी कि उसने अपने एक आयोजन में केन्द्र सरकार की नीतियों की आलोचना की थी।  समाचार यह है कि इस सम्बन्ध में लिखित शिकायत किसी ने मानव संसाधन मंत्री को की, मंत्री ने संस्थान को हड़काया और संस्थान ने सर्किल की मान्यता रद्द कर दी। लोकतांत्रिक मूल्यों को ठेंगा दिखाने वाली ऐसी हरकतें यह सरकार आने के बाद लगातार हो रही हैं। ऐसा कुछ भी अशोभनीय होता है, केन्द्र की सरकार या भाजपा हाइकमान अथवा पार्टी नेताओं की ओर से उसकी या तो उपेक्षा की जाती है या औपचारिक खण्डन या विरोध कर इतिश्री मान ली जाती है। ऐसे भी उदाहरण हैं कि कुछ अन्तराल के बाद ऐसी अभद्रता करने वाले 'पुरस्कृत'  सम्मानित भी हो जाते हैं। केन्द्रीय राज्य मंत्री गिरिराज सिंह और साध्वी निरंजन ज्योति और सांसदों में साध्वी प्राची इसी के उदाहरण हैं। अलावा इसके कुछ केन्द्रीय मंत्री भी ऐसे हैं जो जब-तब अनर्गल या गैर जरूरी बात कहने से बाज नहीं आते। इनकी फेहरिस्त भी कम नहीं हैवीके सिंह, डॉ जितेन्द्रसिंह, मुख्तार अब्बास नकवी।
इस सब को देखकर पिछली सदी के आठवें दशक का पूर्वाद्र्ध याद आने लगता है। तब आए आपातकाल की इसी तरह की पदचाप का आभास किसी को नहीं हुआ क्योंकि इससे पहले का कोई उदाहरण नहीं था, ही किसी को आशंका थी कि इन्दिरा गांधी इतनी नीचे तक उतर जाएंगी। लेकिन परिस्थितियां कुछ अब जैसी सी ही थीं, हो सकता है साइलेंट हार्ट अटैक की तरह अब साइलेंट इमरजेंसी ही लगा दी जाए। जैसा कि इस कॉलम में पहले भी बताते रहे हैं कि कांग्रेस अब तलक जिन गलत कामों को झिझक और सहम कर करती थी, वही सब ये सरकार बेधड़क करती है और विरोध होने पर बेशरमी की हद तक तुरन्त कांग्रेस की नजीरें पेश करने लगती है। ऐसा करते भाजपाई यह भूल जाते हैं कि जनता ने इसलिए ही कांग्रेस को कितनी ही बार सत्ता से बाहर किया है और कांग्रेस की ऐसी करतूतों से तंग आकर ही भाजपा को मौका दिया गया है।
भाजपा की सरकार ने अपने एक साल को महिमा मंडित करने का जो अभियान चलाया है उसके तहत विभिन्न खबरिया चैनलों में भाजपा प्रवक्ताओं के तेवर विशेष आक्रामक हुए हैं, संभवत: ऐसा कुछ कर पाने को आड़ देने की रणनीति का ही हिस्सा हो। छप्पन इंचीय सीनाजोरी यह भी कि जो सरकार अपने द्वारा किए एक भी चुनावी वादे को पूरा करते नहीं दीख रही, उसके नुमाइंदे लोकतांत्रिक मूल्यों को ताक पर रखने में भी संकोच नहीं कर रहे।
इस एक वर्ष में जो-जो भी होने लगा हे उसमें 'लव जिहाद', 'घर वापसी', 'गोवंश मांस का विरोध' के अलावा गिरजाघरों और मसजिदों पर हमले होना चिन्ताजनक है। जबकि केन्द्र की इस सरकार से पहले की भाजपा सरकारों के समय ऐसी साम्प्रदायिक हरकतें कम होने के प्रमाणों को भाजपा अपने पक्ष में बताती अघाती नहीं थी। लगता है इस राज में भाजपा ने संभवत: अपनी इस रणनीति को भी तिलांजलि दे दी।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान चेन्नै के जिस फोरम की मान्यता रद्द की गई है वह दलितों से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि महाराष्ट्र के बाद नीचे दक्षिण का दलित उत्तर के दलितों की तरह ऊंघ में नहीं हैइस तरह अंबेडकर-पेरियार सर्किल की मान्यता रद्द करना लोकतांत्रिक मूल्यों पर तो चोट है ही, यदि यह सर्किल किसी राजनीतिक दल से संबंधित होकर कोई आधारभूत काम कर रहा है तो दक्षिणी राज्यों में भाजपा को लेने के देने भी पड़ सकते हैं।

30 मई, 2015

No comments: