Saturday, May 2, 2015

मोदी की आड़ लेते रामदेव

सांसद और विद्वान राजनेता केसी त्यागी द्वारा दिव्य फार्मेसी पर लगाए आरोपों पर योगधंधी रामदेव बजाय सफाई देने के पत्रकारों के सामने आक्रामक नजर आए। वे अपने शातिराना अन्दाज में यह कहते हुए प्रधानमंत्री मोदी की आड़ लेने से भी नहीं चूके कि फकीर के बहाने वजीर को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। ये चतुराई वे शायद इसलिए कर रहे हैं कि ऐसा कहने भर से वे किसी सरकारी कार्रवाई से बच जाएंगे। त्यागी के आरोप में यह कहीं से ध्वनित नहीं होता कि रामदेव के दवा के धंधे में मोदी की कोई शह है। रामदेव के काइयांपने की एक नजीर यह भी है कि उत्तराखण्ड के कांग्रेसी मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ उन्होंने अपनी नजदीकियां बना ली हैं। सभी जानते हैं कि रामदेव के बड़े आर्थिक हित उत्तराखण्ड में ही निहित हैं। वे ये अच्छी तरह जानते हैं कि उत्तराखण्ड में जिस दल की सरकार है उससे वैर रख के खोटे-खरे धंधे नहीं कर सकते। अधिकांश असहमतियों के बावजूद मोदी की अन्यों की कमजोरियों की समझ से इनकार नहीं किया जा सकता। मोदी जानते हैं कि किसको कब ठिकाने लगाना है और किसको कब चढ़ाना है। वे ऐसी कारस्तानियों में पारंगत हैं। संघ के वफादार सिपाही कहलाने वाले संजय जोशी से लेकर दिग्गजों में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसों के उदाहरण दिए जा सकते हैं। ऐसे में मोदी की नजरों में अब हाशिए को हासिल रामदेव कब ठिकाने लगा दिए जाएंगे, कह नहीं सकते। शुद्ध धंधेबाज रामदेव के धंधों में इतने छेद हैं कि सरकार चाहे केन्द्र की हो उत्तराखण्ड की, जब चाहे तब रामदेव की हवा निकाल सकती है।
चर्चा सांसद केसी त्यागी के इस आरोप से शुरू हुई कि प्रधानमंत्री मोदी ने जिस प्रदेश हरियाणा से 'बेटी बचाओ' मुहिम की शुरुआत की थी, उसी प्रदेश के ब्राण्ड ऐम्बैस्डर बने रामदेव के रिटेल आउटलेट से उन्हीं की फार्मेसी की बनी 'पुत्र जीवक बीज' नामक दवा बेची जा रही है। जवाब में रामदेव ने बड़ी बेशर्मी से त्यागी के लिए कहा कि शर्म आनी चाहिए कि उन्हें आयर्वुेद का ज्ञान नहीं है। रामदेव का बचावी दावा यह भी था कि आयुर्वेद में इसका वैज्ञानिक नाम ही 'पुत्रजीवा' है इसलिए वे आगे भी यह दवा पुत्रजीवक नाम से ही बेचेंगे। ऐसे में सवाल यह बनता है कि विज्ञान के सभी किए धरे को क्या हम तब भी वापरेंगे कि जब वह अनैतिक और अमानवीय हो। जैसा रामदेव कह रहे हैं वैसे 'बेटा' पैदा करने का नुसखा यह नहीं है। ऐसे में जब समाज पुरुष प्रधानता से बाहर निकलने को कसमसाने लगा है तब इस तरह के नामों में किंचित परिवर्तन संभव क्यों नहीं है। अधिकांशतया भारतीय समाज सदियों से पुरुष प्रधान रहा है। जब आयुर्वेद की खोज हुई, तब भी यह पुरुष प्रधान समाज ही रहा होगा। आयुर्वेद के इस बांझपने शुक्रक्षय के नुसखे से ऐसा ध्वनित भी होता है।
कई जातिसूचक शब्दों के सम्बोधनों को सरकार जब अपराध की श्रेणी में ले सकती है, ऐसे में आयुर्वेद जैसी अन्य विधाओं में भी लिंग-विशेष की महत्ता प्रतिपादित करने वाले शब्दों-नामों को क्यों नहीं बदल सकती?
रही बात रामदेव द्वारा मोदी की खूंटी पकडऩे की तो उन्हें शायद यह एहसास होने लगा होगा कि इस खूंटी से वे कभी भी छिटकाए जा सकते हैं। किसी वरिष्ठ सांसद ने इस ओर ध्यान दिलाया है तो रामदेव को उसे सम्मानजनक रूप से लेना चाहिए था।

2 मई, 2015

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