Thursday, May 21, 2015

मोदी सरकार का एक वर्ष : जश्न किस बात का

अच्छे दिनों की उम्मीदें जगाकर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आए नरेन्द्र मोदी औपचारिक तौर पर संसद में एनडीए यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता हैं लेकिन उनकी कार्यशैली राष्ट्रपति प्रणाली की सी ही है। पिछले वर्ष 16 मई को लोकसभा चुनावों के परिणाम आए और छब्बीस मई को नरेन्द्र मोदी ने अपने तथाकथित मंत्रिमंडल के साथ पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। इसके एक वर्ष पूर्ण होने पर सप्ताह भर का जश्न चल रहा है। वैसे जश्न किसी उपलब्धि पर होता है। मोदी सरकार की कोई उल्लेखनीय उपलब्धि गिनाई नहीं जा सकती। जश्न इस बात का भी नहीं मान सकते कि सरकार साल भर जैसे-तैसे चल गई। ऐसा तभी होता है जब वैसे गठबंधन की सरकार हो जिसमें दर्जनों दल शामिल होंलम्बे अरसे से ऐसा ही होता रहा था, खुद वाजपेयी के नेतृत्व वाली पिछली एनडीए की सरकार में भी।
मोदी सरकार की क्या यह उपलब्धि मानें कि उन्होंने अपने चुनाव अभियान के दौरान जो भी वादे किए और भ्रम दिए उन सब पर उन्होंने 'जुमले' का रैपर चढ़ा दिया और जनता में कोई उद्वेलन तक नहीं हुआ। यदि यही उपलब्धि है तो कम-से-कम मोदीनिष्ठों के लिए तो जश्न मनाना बनता हैमहंगाई, भ्रष्टाचार, किसानों द्वारा आत्महत्या, स्त्रियों पर अत्याचार आदि-आदि सब अपनी ऊध्र्व गति के साथ बदस्तूर जारी हैं। मुक्त बाजार के हवाले की गत को प्राप्त पेट्रोल-डीजल की दरों पर भी मोदी और उनके निष्ठावानों ने आवाम को कम गुमराह नहीं किया। भारतीयों का कालाधन विदेशों में कितना है? योगध्ंाधी-रामदेव से लेकर मोदी और संघ के निष्ठावानों के अपने अलग-अलग आंकड़े आज जुमले में तबदील हो हवा में तैर रहे हैं। मुफ्त के पन्द्रह-पन्द्रह लाख रुपये के लालच में जिन्होंने भाजपा और उनकी सहयोगी पार्टियों को वोट दिए वे अपने को ठगा-महसूस भी कर रहे हैं, कह नहीं सकते। हम अधिकांश भारतीय 'नेकीÓ कर भाग्य को सौंप देते हैं। ये भाग्य भी उद्वेलन पर बड़ा सेंसर है।
भारत जैसे देश का राज इस तरह मिल जाना मोदी के लिए केवल हक्का-बक्का होने के लिए पर्याप्त है बल्कि इस सफलता की चूंध से वे एक साल बाद भी नहीं निकल पा रहे हैं। वे केवल अपने पिछले जीवन को भूल चुकें हैं, जिसकी कहानियां सुना-सुना कर भारतीय वोटरों को वे भ्रमित करते रहे। बल्कि कई दिनों का भूखा जिस तरह खाने का कुछ दीखते ही टूट पड़ता है वैसे ही मोदी अपने पिछले जीवन की वे सभी कमियां और लालसाएं फिलहाल पूरी करने में जुटे हैं। कहते हैं इस एक वर्ष के दौरान उन्होंने शायद ही कोई पोशाक दुबारा पहनी हो। मोदी की पहचान बन चुका आधी बाजू का कुरता फिर भी दो-पांच बार दिख गया लेकिन लगा वह भी नया-सा ही। 2002 के गुजरात दंगों का जिम्मेदार मानकर अमेरिका ने बारह वर्ष तक मोदी को वीजा क्या नहीं दिया, लगता है अब इन पांच वर्षों में वे एक सौ बीस देशों को नाप कर उसका बदला केवल दुनिया से बल्कि अपने देश से भी लेने पर तुले तुले हों।
इन यात्राओं से कुछ खास हासिल इसलिए नहीं होना, चूंकि सभी देश अब दुकानदार हो लिए हैं और चतुर-सुजान भी। अधिकांश इसमें माहिर हैं कि पूरी वसूली के बिना दिया कुछ भी नहीं जाए।
घोटालों में सरताज साबित हुई कांग्रेस नीत संप्रग की सरकार कानून-कायदों में जो भी संशोधन लाती जनहित के नाम पर उनकी ढेबरी टाइट रखने में लगी रहने वाली भाजपा अब मोदी के नेतृत्व में उन सभी कानूनों को नीम चढ़ा कर लागू करने में भी संकोच नहीं कर रही है। भू-अधिग्रहण कानून इसका बड़ा उदाहरण है।
हां, यह जश्न उन धनाढ्यों के लिए तो हो सकता है जिन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव से पहले मोदी को चढ़ाने में निवेश किया था। अडानी-अंबानी जैसों को मोदी सुपर चक्रवृद्धि ब्याज के साथ चुकारा करवाते दिख रहे हैं।
मोदी सरकार का एक साल यह भय देने के लिए पर्याप्त है कि जनता अगले चुनावों में गुस्से में फिर से कांग्रेस को ठीक बताने का मन बनाने लगी है। चार वर्ष बाकी हैं, मोदी चूंध से यदि नहीं निकले तो यह आम-आवाम की निराशा का बड़ा कारण होगा। लोकतंत्र में राज हेकड़ी से नहीं चलते हैं, यही समझने की जरूरत मोदी और मोदीनिष्ठों को है।

21 मई, 2015

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