नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी,
जोधपुर में अध्ययनरत मुकुल व्यास की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने फड़ बाजार, कोटगेट, महात्मा
गांधी रोड व स्टेशन रोड क्षेत्र में व्याप्त समस्याओं को लेकर बीकानेर नगर निगम और नगर विकास न्यास प्रशासन को न केवल हड़काया बल्कि इसी बारह सितम्बर तक उल्लेखित समस्याओं से निजात दिलाने के सुधारों की क्रियान्विति के प्रमाण प्रस्तुत करने को भी कहा है। उम्मीद है दोनों ही स्थानीय निकाय या तो इस समयावधि को बढ़वाने में सफल हो जायेंगे या फिर कोई स्थाई समाधान न कर कुछ व्यवस्थागत चेपों के प्रमाण लेकर प्रस्तुत हो जायेंगे। याचिकाकर्ता यदि ढीले पड़ गये और माननीय न्यायाधीश सावचेती से चौकस नहीं रहे तो मामला रफा-दफा होते देर नहीं लगेगी। प्रमाण चाहिए तो कोटगेट
और सांखला फाटक की समस्याओं का ले लो। पिछले दो-एक महीने
से ऐसा ही लग रहा है कि शहर को इस समस्या से निजात मिल गई है। इस समस्या के हाकों को जैसे सांप सूंघ गया हो। इन फाटकों से सम्बन्धित न कोई मांग, न कोई
विज्ञप्ति और न ही कोई आन्दोलन की चेतावनी। अखबार वाले भी उस जुमले में भरोसा तो करते हैं पर बदलाव के साथ यानी मुद्दई सुस्त तो गवाह चुस्त की जगह मुद्दई सुस्त तो गवाह सवा सुस्त!
उल्लेखित क्षेत्रों में गाय-गोधों और साफ-सफाई जैसी सामान्य समस्याओं से निजात
दिलाने के लिए किन्हीं बड़े प्रयासों की जरूरत नहीं है। निकाय यदि धार ले और क्षेत्र के बाशिन्दे और दुकानदार इतना भर तय कर लें कि पॉलिथिन का प्रयोग न करेंगे और न करने देंगे और सड़कों और गलियों में गन्दगी नहीं डालेंगे तो सफाई-कर्मी का काम
स्वत: ही आसान हो जायेगा। खाद्य और अखाद्य, दोनों तरह के कचरे
के लिए निर्धारित स्थानों पर डिब्बे रखवाए जाएं जिनको समयबद्ध तरीके से दिन में दो बार खाली करवाने की व्यवस्था होनी चाहिए। अखाद्य को नगर निगम उठाये और खाद्य कचरे को उठाने और उसे मवेशियों तक पहुंचाने का जिम्मा गो-सेवी या कहें
मवेशी-सेवी संस्थाएं उठाएं। यदि ऐसा संभव कर लिया जाय तो जहां मवेशियों को खाद्य का बड़ा हिस्सा नि:शुल्क मिलने लगेगा वही गलियों-सड़कों
पर कचरा नहीं होगा तो नालियां अपने आप ही निर्बाध बहने लगेंगी। रही बात ट्रैफिक सुधार की सो वह तो इन रेल फाटकों की समस्या के व्यावहारिक हल पर एकमते होकर उसे सिरे नहीं चढ़ायेंगे तब तक यूं ही भुगतते रहना होगा। मान तो अब यह भी लेना चाहिए कि रेल बाइपास जैसा समाधान विचारणीय ही नहीं है।
बात फड़ बाजार की करें
तो इसके लिए 'विनायक' बहुत
पहले समाधान सुझा चुका है, उसके लिए प्रशासन को आसान
और मुश्किल दोनों तरह की कार्यवाही करनी होगी, आसान तो यह
कि सभी दुकानदारों से आगे के अतिक्रमण हटवाने होंगे और मुश्किल यह कि फड़ बाजार के कुचीलपुरा मुहाने पर बड़ी कार्यवाही कर दोनों तरफ के पट्टेधारियों को उनके मूल पट्टे की हद तक लौटाना होगा। दोनों तरफ के अधिकांश पट्टेधारी दस से लेकर तीस फुट तक आगे बढ़ गये हैं। हो सकता है कुछ ने खांचाभूमि के नाम पर इन अतिक्रमणों को अधिकृत भी करवा लिया होगा, लेकिन ऐसे सभी को निर्ममतापूर्वक हटाना
होगा चाहे अधिकृतों को मुआवजा ही क्यों न देना पड़े। कुचीलपुरा मुहाने पर फड़ बाजार सड़क इतनी चौड़ी है कि उसके बीच में एक ऐसा प्लेटफार्म बनाया जा सकता है जिस पर फड़ बाजार के सभी ठेले वालों को नगर निगम निश्चित और व्यावहारिक किराए पर न केवल खड़े रहने की इजाजत दे सकती है बल्कि एक-दो ऐसे
स्थान भी निकाले जा सकते हैं जिन पर कम से कम दुपहिया वाहन की पार्किंग की गुंजाइश भी निकाली जा सकती है। लगभग तीन सौ मीटर लम्बे इस प्लेटफार्म की चौड़ाई कुचीलपुरे की ओर सौ फुट और दूसरी ओर जहां यह मार्ग संकरा होता है वहां बीस फुट रखी जा सकती है। नगर निगम इस प्लेटफार्म की आय से पूरे फड़ बाजार को स्वच्छ और दुरुस्त रख सकता है। इस तरह की व्यवस्था से फड़ बाजार का यातायात यदि सुचारु होता है तो कोटगेट, सुभाष रोड,
महात्मा गांधी रोड और पुरानी गजनेर रोड के मुख्य डाकघर की तरफ वाले हिस्से पर यातायात का दबाव काफी कम होगा। लेकिन यह तय है कि यह सुधारा स्थानीय जनप्रतिनिधियों, नेताओं और चौधर
करने वालों के बिना सहमत हुए नहीं होगा और शहर की अधिकांश समस्याएं हटना तो दूर की बात बल्कि इन्हीं सब के दृष्टि-अभाव और मंशा
न होने से ये समस्याएं पोषण भी पाती रही हैं।
यदि मुकुल व्यास जैसे दो-पांच चेतन हो जाएं तो संभावनाएं बनते भी देर नहीं लगेगी क्योंकि न्यायालय के आदेश के आगे इन राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों को निरवाले होने का बहाना मिल जाता है तो प्रशासन और स्थानीय निकाय की कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो अनुकूलता बनते भी देर नहीं लगती।
9 सितम्बर,
2014
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