आज बारह
सितम्बर है—कोटगेट, फड़
बाजार क्षेत्र की अव्यवस्थाओं से सम्बन्धित उच्च न्यायालय को जवाब निकायों को आज ही देना है। बीकानेर नगर निगम और नगर विकास न्यास के अधिकृत अधिकारी चतुर और अच्छे पैरवीकार हुए एवं याचिकाकर्ता सजग न हुए तो माननीय न्यायाधीशों को संतुष्ट भी कर देंगे अन्यथा हो सकता है फटकार खाकर लौट आएं और पुन: छूं-छां और लीपापोती में लग जाएं। फड़ बाजार अपनी बे-नूरी के लिए
मजबूर है ही।
उधर कोटगेट क्षेत्र के लिए
स्थानीय निकायों के पास कुछ करने-धरने को नहीं।
ज्यादा से ज्यादा जो वे कर सकते थे—किया—कुछेक
मवेशियों को गाड़ी में डालकर कहीं छोड़ आए। किसी बाड़ाबन्दी में नहीं छोड़ा तो हो सकता है मवेशी लौट भी आएं होंगे! इन जीवों
को प्रकृति ने दूसरे अनजान स्थान के साथ अनुकूलता जल्दी न बना पाने का विकल्प न भी दिया हो तो इतना तो दिया ही है कि ये अपने अनुकूल या परिचित स्थान तक सामान्यत: लौट ही आते
हैं।
लौटने की बात
से ध्यान आया कि कोटगेट और सांखला फाटक की समस्याओं पर स्थानीय प्रशासन भी अण्डरब्रिज 'मोड'
पर फिर लौट आया है। संभागीय आयुक्त कल बीकानेर से सम्बन्धित प्रकरणों पर बैठक ले रहे थे सो उच्च न्यायालय के ताजा निर्देशों पर चर्चा करने की रस्म अदायगी कर ली और जिला कलक्टर आदि-आदि को कोटगेट
क्षेत्र सम्बन्धी समस्याओं का हल ढूंढऩे के निर्देश दे दिए हैं। वैसे लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह माना जाता है कि काम यदि कुछ नहीं किया जा रहा है तो कम-से-कम मंशाओं में तो होता दीखना ही चाहिए। प्रशासन सामान्यत: मंशा जताने की महारत
अकसर दिखाता ही है।
वैसे लगभग तीस वर्षों से इन
दोनों फाटकों की समस्याओं पर अब तक हुआ ही क्या है? बहुत लम्बा समय तो रेल
बाइपास जैसे सर्वथा अव्यावहारिक समाधान की कवायद में ही शहर का जाया कर दिया गया। अब जब ऐसा लगने लगा कि रेल बाइपास सम्भव नहीं तब जाकर इसके विकल्पों पर विचार किया जाने लगा है। हालांकि, कुछ लोग अभी तक बाइपास
की कडिय़ां ही पकड़े हैं।
एलिवेटेड रोड की योजना
वसुन्धरा राजे की पिछली सरकार ने बीकानेर के बाशिन्दों के सामने न केवल टिमटिमाई बल्कि लगने लगा कि सरकार इसके लिए गंभीर है—कुछ दिन कवायद चली। लोगों की मंशा
जानी गई अधिकांश ने सकारात्मक बताया। लेकिन महात्मा गांधी रोड के कुछेक व्यापारियों की समझ पर तात्कालिक स्वार्थ हावी हो गये और जनप्रतिनिधियों और नेताओं के माध्यम से उन्होंने इस योजना को दफ्तर दाखिल करवा दिया। शहर के नेता भी ऐसे हैं कि दस-बीस आदमी दिन-धोळे जाकर कह दें कि रात है तो रात भले ही न मानें, हाउ-जुजु होकर दिन को दिन कहने में झिझकने लगेंगे।
खैर,
एलिवेटेड रोड पर सरकार भी अब कान इसलिए नहीं दे रही कि समाधान अब उन्हें बहुत महंगा लग रहा है। हालांकि आजादी बाद के राज के लिए तो यह कहा जाने लगा है कि इसमें 'आले-सूखे सब बळले हैं।Ó ऐसे में जनता एकमते हो तो
एलिवेटेड रोड जैसा समाधान अब भी सिरे चढ़ सकता है। नहीं तो सरकार रेल अण्डरब्रिज के अलावा आपमते तो कुछ काढ़ के देने वाली नहीं। अण्डरब्रिज बनाने में भी जोर इसलिए आएगा कि हमेशा के लिए प्रभावित होने वाले दोनों तरफ के दुकानदार विरोध में होंगे ही। अलावा इसके एक तरफ कोटगेट छाती पर है सो उस तरफ की ढलान तय मानकों के अनुसार बैठ ही नहीं सकती। दूसरी ओर फड़ बाजार के दोनों प्रवेशद्वार बाधित होने हैं और फिर महात्मा गांधी रोड से सांखला फाटक की ओर जाने वाला मोड़ भी कम बाधा नहीं बनेगा। बीच बाजार के अण्डरब्रिज में न केवल आए दिन गन्दा पानी ठहरना है बल्कि बारिश के मौसम में इसे और भी विकराल हो जाना है। अण्डरब्रिज की पानी निकासी की पाइप लाइन दुरुस्त कितनी'क रहेगी? इस सूरसागर के प्रमाण से समझ सकते हैं—बरसाती पानी की निकासी
के लिए की गई जूनागढ़ की ओर की व्यवस्था जो हर बारिश में फेल हुई रहती है और बरसाती पानी सूरसागर में जाता ही है, कोटगेट अन्डरब्रिज का भरा
पानी भी इस सरकारी व्यवस्था में कितने दिन में निकलेगा, अन्दाजा लगाया जा सकता
है।
12 सितम्बर,
2014
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