यह सोशल
साइट्स नहीं होती तो बीकानेर के पाठक इस अजूबी खबर से वंचित हो जाते जिससे पता चला कि स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ का कुत्ता गायब हो गया। पुलिस की टीम उसे ढूंढऩे में लगी है, वह मिला
या नहीं इसका अभी पता नहीं। वे बड़े अखबार जो यहां से प्रकाशित होते हैं और दावा करते हैं कि राष्ट्रीय या प्रादेशिक दैनिक हैं, ऐसे किसी अखबार में यह खबर
ध्यान नहीं आई। दो-तीन महीना पहले उत्तरप्रदेश के हवाले
से दो बार यह खबर जरूर प्रकाश में आई कि वहां के शक्तिशाली मंत्री आजमखान की भैंस खो गई, दोनों ही बार
भैंस खोई और आजमखान की खोई। भैंस के आगे बीन बजाने की कहावत तो सुनी होगी और यह भी कि उत्तरप्रदेश में बिगड़ी कानून-व्यवस्था का रोवणा-रोवणे का असर अखिलेश यादव की सरकार के आगे भैंस के आगे बीन बजाने से कम साबित नहीं हो रहा है। कानून-व्यवस्था वहां की चाहे
कैसी भी हो पर दोनों ही बार उपाधीक्षक स्तरीय अधिकारी के नेतृत्व में पुलिस टीम भैंस ढूढऩे में लगी सो भैंस को तो मिलना था ही। 'बेचारे' आजमखान
ने मीडिया की कौन-सी भैंस
खोल ली थी सो दोनों ही बार भैंस खोने और मिलने पर खबरिया चैनल और अखबारों में राष्ट्रीय सुर्खियां मिलीं।
मान लें आजमखान और राजेन्द्रराठौड़ का
कोई अन्तर मीडिया नहीं मानता तो क्या फिर ये मीडिया वाले भैंस और कुत्ते में दुभांत बरत रहे हैं। क्या यह भी मान लें कि सभी पत्रकार सिने अभिनेता धर्मेन्द्र के सम्प्रदाय से हैं जो हर दूसरी फिल्म में कुत्ते का खून पीने की लालसा तैश में आ प्रकट करते हैं। जब-जब वफादारी
की बातें होती हैं तब-तब समाज
में उदाहरण कुत्ते का ही दिया जाता है और हम मीडिया वाले कुत्ते को दिखावे का सम्मान देने से नहीं चूकते। कुत्तों से सम्बन्धित जब खबर बनाते हैं तो पूरी सावचेती के साथ उसे कुत्ता लिखने से परहेज करेंगे और श्वान से सम्बोधित कर सम्मान देने का ढकोसला करेंगे। लेकिन आज जब उसे मंत्री राजेन्द्रराठौड़ के हवाले से असल सम्मान देने का अवसर आया तो खबरों से उसे इस तरह गायब किया जैसे गधे के सिर से सींग गायब हुए हों। गधे को लेकर कहावत तो यही है पर इसका प्रमाण शायद ही मिलता है कि गधों के भी कभी सींग होते थे।
कुत्ता तो बेचारा
आज भी कुत्ता ही रहा। बात कुत्ते की कर रहे हैं और भैंस बीच में आ जाती है तो कभी गधा दुलत्ती दे झाड़ता है। अपनी जयपुर तक की पहुंच को खंगाला तो पता चला अखबार वालों ने राजेन्द्र राठौड़ के कुत्ते को भी आज की खबरों में कोई खास भाव नहीं दिया। यानी पत्रकारों के लिए कुत्ता अपनी मौत मरने के लिए ही है फिर चाहे वह किसी खास का ही क्यों न हो।
इस बीच
सन्तोष इस बात का है कि भाजपा महिला मोर्चे की नेता डॉ. मीना आसोपा के घर
काम करने वाली महिला की नाबालिग बेटी कल जब मीना आसोपा के घर के बाहर अपने भाइयों के साथ खेल रही थी तभी गायब हो गई। कहा जा रहा है कोई उसका अपहरण कर ले गया। इसी क्षेत्र में ऐसा ही वाकिआ तीन-चार माह पहले भी हो
चुका है। रेलवे स्टेशन से तब गायब हुई उस नाबालिग लड़की का सुराग आज तक नहीं लग पाया। मीना आसोपा के यहां काम करके लड़की के परिजनों का इतना हक तो बनता ही है, और मीडिया
ने भी शायद इसीलिए जमकर स्थान दिया है। स्थानीय पुलिस की कल की मुस्तैदी से ये पंक्तियां लिखे जाने तक उक्त बालिका का पता भी लगा लिया गया है।
22 सितम्बर,
2014
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