Saturday, September 6, 2014

भादवे में बरसा सावन

'सीयालौ खाटू भलो, उनाळौ अजमेर, नागाणों नित रो भलो सावन बीकानेर' लोक में प्रचलित इस कही की मानसून को थोड़ी देर से सुध आई सो सावन सूखे इस शहर को भादवे में जमकर भिगोया है। दिन भी चुने तो वे, जिन दिनों शहर की बड़ी आबादी लोकदेवता बाबा रामदेव और पूनरासर बाबा को रिझाने केवल बे-छत होती है, बल्कि बहुत से लोग उनकी सेवा के लिए दाल, चीनी, आटा, बिस्कुट आदि-आदि लेकर टैंट में बैठे होते हैं।
खैर, सावन इस बार भादवे के अढ़ाई दिन जमकर बरसा। पदयात्रियों और उनके सेवादारों को जो भुगतना था, दो-तीन दिन भुगत लिए। लेकिन आम शहरी को इस बारिश को कितने दिन और भुगतना होगा, कह नहीं सकते। इस शहर की क्यों प्रदेश के सभी शहरों की सड़कें चाहे उन्हें स्थानीय निकाय यथा नगर विकास न्यास या नगर निगम या फिर सार्वजनिक निर्माण विभाग बनवाए, इनमें से कोई-सी भी सड़क ट्रांसपोर्ट प्लानिंग मानकों की बात तो दूर निर्माण सम्बन्धी मानक और गुणवत्ता पर भी बिना ध्यान दिए मात्र गाळा कढ़वाने की तर्ज बनवाई जाती है। बाकी दिनों में तो ये पोत चौड़े नहीं आते, पर थोड़ी बहुत बारिश होते ही उक्त विभागों की लापरवाहियां दिखने लगती हैं।
शहरी क्षेत्र में इसी सप्ताह हुई बारिश से भरे पानी ने सड़कों और नालियों की दशा ऐसी कर दी है कि 'सावधानी हटी और दुर्घटना घटीÓ सड़कों के खड्डे कुछ तो छह-छह, आठ इंच तक गहरे हो गये, उनमें यदि पानी भरा हो और बिना थोड़ी सावधानी बरते कोई दुपहिया वाहन चालक निकलना चाहे तो उसका दुर्घटनाग्रस्त होना निश्चित है। पिछले तीन-चार दिनों से ऐसी छिट-पुट घटनाएं दिन-रात घटित हो रही हैं। लेकिन तात्कालिक रोष प्रकटन के अलावा मजाल है कि इसके लिए जिम्मेदारों को जाकर उनकी ड्यूटी का कोई एहसास करवाए। जनप्रतिनिधि पहले तो बिना स्वागत-अभिवादन जैसे आयोजनों के शहर से गुजरते ही नहीं और गुजरें तो भी अच्छे चौपहिया वाहन से गुजरेंगे सो उन्हें इस सबका कुछ पता ही नहीं चलता।
ले-देकर जिले में एक पद है कलक्टर का! खुद उनकी जमात के वरिष्ठ इस पद पर काम का बोझ लगातार बढ़ाते रहे हैं। कलक्टर पर सैकड़ों कमेटियों की अध्यक्षी के अलावा शहर के प्रत्येक सार्वजनिक काम को सुचारु रखने की जिम्मेदारियां डाल रखी हैं। यहां तक कि निगम और न्यास में जनप्रतिनिधि नियुक्त हो तो भी उनके बेड़े को हांकने की जिम्मेदारी जिला कलक्टर पर है। कलक्टर यदि थोड़ा ड्यूटीफुल हो तो इन सबको हांकता रहता है, नहीं तो वह अपना टाइमपास करके गुजर जाता है।
वर्तमान जिला कलक्टर आरती डोगरा अपनी जिम्मेदारियां समय पर निभाने की कोशिश करती हैं लेकिन पार पटकना उनके अकेले के बस का नहीं है। फिर भी लगीं तो रहती ही हैं। कल ही बैठक लेकर बरसात से हुई शहर की दुर्दशा पर जिम्मेदारों को हड़काया। कहते हैं लगभग सात लाख की आबादी वाले शहर को साफ-सुथरा रखने के लिए सत्तरह अधिकारी मुस्तैद किए रखे हैं। मानवीय और गैर मानवीय संसाधन के अभाव में कुछ परिणाममूलक कर दिखाना आसान नहीं है। ऊपर से भ्रष्टाचार, हरामखोरी और विभिन्न विभागों में सामंजस्य का अभाव कोढ़ में खाज अलग करते हैं। ऐसे में कुछ खास हो पाने की उम्मीद करना बेकार है। रही बात सड़कों पर फैले पानी की सो दो-एक दिन धूप निकली तो वह आपमते सूख जायेगा। और खड्डे-गड्ढ़े तो आस-पड़ोस के निर्माण कार्य में से निकलने वाले मलबे से लोग-बाग स्वयं ही भर लेंगे। अन्यथा ट्रांसपोर्ट प्लानिंग के अनुसार होना तो यह चाहिए कि पानी सड़क पर रुके और पानी निकासी की पुख्ता व्यवस्था उसके निर्माण के समय ही कर दी जानी चाहिए, लेकिन बीकानेर ही क्यों पूरे देश की सड़कों का निर्माण बिना ट्रांसपोर्ट प्लानर से सहयोग लिए हो ही रहा है।

6 सितम्बर, 2014

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